बिहार (Bihar) की राजनीति में हमेशा से जाति हावी रही है. सभी पार्टियों का अपना जातिगत वोट बैंक है. जिसके दम पर राजनीतिक दल सत्ता का स्वाद चखती रही हैं. इन सबके बीच बाहुबली नेता आनंद मोहन (Anand Mohan) की रिहाई ने बिहार में फॉरवर्ड पॉलिटिक्स (Forward Politics) को हवा दी है. बताएंगे कैसे बिहार में अगड़ी जाति चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है? कैसे महागठबंधन और बीजेपी फॉरवर्ड वोटरों को साधने में जुटी है? तो साथ ही चर्चा करेंगे बिहार के जातिगत समीकरण की भी.
क्या आनंद मोहन की रिहाई एक सियासी फैसला है?
एक तरफ आनंद मोहन की रिहाई को लेकर बिहार सरकार के फैसले पर सवाल खड़े हो रहे हैं. तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कह रहे हैं कि रिहाई नियमों के तहत हुई है. हालांकि कुछ लोग इसे राजनीति से भी जोड़कर देख रहे हैं. कहा जा रहा है कि आनंद मोहन की रिहाई के पीछे की वजह- 2024 का लोकसभा चुनाव है.
90 के दशक में जब लालू, मंडल वोटों की सवारी कर रहे थे, तब आनंद मोहन अगड़ी जाति, विशेष रूप से राजपूतों के सबसे बड़े नेताओं के रूप में उभरे थे.
कोसी बेल्ट या कहें कि शिवहर, सुपौल, सहरसा और मधेपुरा सहित कम से कम चार निर्वाचन क्षेत्रों में आनंद मोहन और उनके परिवार का राजपूत और दूसरी सवर्ण जाति के मतदाताओं के बीच दबदबा है. आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद शिवहर से RJD विधायक हैं. वहीं उनकी पत्नी लवली आनंद भी सांसद रह चुकी हैं.
इसके साथ ही रवि कहते हैं कि अगर आनंद मोहन महागठबंध के साथ में रहते हैं तो 2024 लोकसभा चुनाव में इसका असर देखने को मिल सकता है.
वहीं वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि,
इसके साथ ही वो कहते हैं कि राजपूतों का झुकाव RJD की तरफ रहा है. ऐसे में आनंद मोहन की रिहाई के जरिए राजपूत वोटर्स को मोबलाइज करने की कोशिश हो रही है.
बिहार की जाति समीकरण
अब जरा आपको बिहार का जातिगत समीकरण समझाते है. populationu.com के मुताबिक, बिहार में करीब 5.7 फीसदी ब्राह्मण हैं, 4.7% भूमिहार हैं और 5.2% राजपूत हैं. यानी कि करीब 16 फीसदी सवर्ण वोट. यादवों की आबादी 14.4% है. वहीं कुर्मी 4%, कुशवाहा 8% हैं. प्रदेश में 17% के करीब मुसलमान हैं. वहीं 2% कायस्थ, 6% बनिया, 3% तेली, 2% मुसहर और 4% दुसाध हैं.
बीजेपी, JDU, RJD सहित अन्य पार्टियों का अपना-अपना वोट बैंक है. एक तरफ सवर्ण वोटरों पर बीजेपी का दबदबा है तो दूसरी तरफ मुस्लिम-यादव वोटर RJD के साथ माने जाते हैं. वहीं अति पिछड़ों के साथ-साथ लव-कुश समीकरण के जरिए नीतीश कुमार की रातजीनि को जोड़ा जाता रहा है. पासवान वोटर्स का झुकाव चिराग पासवान की ओर दिखता है.
त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा द्वारा क्यूरेट किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2020 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने सभी टिकटों का 24.5% राजपूत उम्मीदवारों को, 11.8% टिकट ब्राह्मणों को और 7.3% टिकट भूमिहारों को दिया था.
वहीं JDU ने ओबीसी उम्मीदवारों को 59, सवर्णों को 23, अनुसूचित जाति को 18, मुस्लिमों को 11, अनुसूचित जनजाति के एक सदस्य को टिकट दिया था. RJD ने यादव उम्मीदवारों को 31 प्रतिशत, मुसलमानों को 11 प्रतिशत, बाकी 58 प्रतिशत उच्च जातियों, गैर-यादव ओबीसी और अन्य जातियों के बीच बांट दिया था.
अगड़ी जाति के सबसे ज्यादा 34 विधायक बीजेपी के टिकट पर चुने गए. उसके बाद RJD के टिकट पर 13, JDU के टिकट पर 10 और कांग्रेस के टिकट पर 7 विधायक चुने गए थे.
क्या कहते हैं 2020 विधानसभा चुनाव के पोस्ट पोल सर्वे?
इंडियन एक्सप्रेस में 2020 बिहार विधानसभा चुनाव के बाद छपी पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक, NDA को 52% ब्राह्मण, 51% भूमिहार, 55% राजपूत और 59% अन्य अपर कास्ट ने वोट किया था. वहीं महागठबंधन को मात्र 15% ब्राह्मण, 19% भूमिहार, 9% राजपूत और 16% दूसरे सवर्ण जाति का वोट मिला था.
अगर यादव वोटरों की बात करें तो 83% वोट महागठबंधन के खाते में गए थे, जबकि NDA को मात्र 5% वोट ही मिले थे. 76% मुस्लिम वोटर्स ने महागठबंधन को वोट किया था, जबकि NDA को महज 5% वोट ही मिले थे.
वहीं 81% कुर्मी और 51% कोइरी वोट NDA को मिले थे, जबकि महागठबंधन के खाते में 11% और 16% ही आए थे. वहीं 58% अन्य ओबीसी/ईबीसी वोटर्स ने NDA के पक्ष में मतदान किया था. जबकि 22% दुसाध/पासवान वोटर्स ने LJP को वोट किया था.
बता दें कि 2020 विधानसभा चुनाव में बीजेपी और JDU ने साथ चुनाव लड़ा था. बीजेपी के खाते में 74 सीटें आईं थी और उसका वोट परसेंटेज 19.4% फीसदी था. वहीं जेडीयू को 43 सीटें मिली थी और उसका वोट परसेंटेज 15.7 फीसदी था. RJD ने 75 सीटें जीतकर सबसे ज्यादा 23.5% वोटों पर कब्जा जमाया था.
वहीं इससे पहले 2015 विधानसभा चुनाव में JDU और RJD ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. तब RJD को 80 सीटें मिली थीं, वहीं JDU ने 71 सीटों पर कब्जा जमाया था. वहीं बीजेपी मात्र 53 सीटों पर सिमट गई थी. इससे साफ है कि JDU और RJD के साथ आने से महागठबंधन मजबूत होती है.
बीजेपी को नुकसान के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि,
इसके साथ ही वो कहते हैं कि इस सबके बावजूद बीजेपी इस स्थिति को बदलने की कोशिश कर रही है और उसी लिए उसने कुशवाहा समाज से आने वाले सम्राट चौधरी को अपना अध्यक्ष बनाया है.
नीतीश कुमार की सियासत का आधार ओबीसी और अति पिछड़ी जातियों के साथ-साथ महादलित वोटों पर टिका है. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि,
बहरहाल, बिहार में सभी पार्टियां अपनी-अपनी जातिगत समीकरण को मजबूत करने में जुटी हैं. देखना होगा कि सवर्ण वोटर्स बीजेपी के साथ रहते हैं या फिर आनंद मोहन के नाम पर महागठबंधन इसे अपनी ओर करने में कामयाब रहती है.
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