ADVERTISEMENTREMOVE AD

दिल्ली के रोहिंग्या कैंप में रह रहे लोग नहीं जाना चाहते म्यांमार

पिछले महीने 7 रोहिंग्याओं को म्यांमार वापस भेजने के कारण रोहिंग्या शरणार्थी कैंप में डर का माहौल है. 

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD
‘हमें डर है कि वो हमें (भारत सरकार) वापस बर्मा भेज देंगे. वो जितने चाहें फॉर्म भरवा सकते हैं, हम तैयार हैं. किसी और देश में भेज दें, कोई दिक्कत नहीं है बर्मा की बात आती है तो डरते हैं. वहां हिंसा होती है, नौकरियां नहीं मिलतीं’ 
मोहम्मद (बदला हुआ नाम)

क्विंट से बातचीत में मोहम्मद ने अपनी आपबीती बताई. हम यहां इस शख्स का नाम आपको इसलिए नहीं बता रहे हैं क्योंकि वो खुद पुलिस, सरकार और मीडिया से डरा हुआ है, साथ ही अपना नाम और कैंप जाहिर नहीं करना चाहता.

रोहिंग्या शरणार्थियों में डर और शक का माहौल:

पिछले महीने 7 रोहिंग्याओं को म्यांमार वापस भेजने के कारण रोहिंग्या शरणार्थी कैंप में डर का माहौल है. कैंप के 240 निवासियों का भी यही मानना है. कैंप की महिलाएं किसी भी मीडियाकर्मी को देखते ही अपना चेहरा ढक लेती हैं, यहां तक की बच्चे भी मीडिया से खौफ खाते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

फॉर्म भरने से क्यों डरते हैं कैंप में रहने वाले

इस कैंप में डर का कारण सिर्फ रोहिंग्याओं को म्यांमार भेजना ही नहीं है, यहां चिंता की सबसे बड़ी वजह ये है कि पिछले दो हफ्ते से पुलिस कैंप के लगातार दौरे कर रही है और ' 'राष्ट्रीयता जांच फॉर्म' बांट रही है.

हमने कोशिश की ये फॉर्म न भरें लेकिन बड़े पुलिस अधिकारी आए और कहा कि ये सरकारी फॉर्म है. रिकॉर्ड के लिए रखने हैं बहुत अच्छे से उन्होंने समझाया कहा कि ये फॉर्म हमें बाहर भेजने के लिए नहीं हैं लेकिन हम डरे हुए हैं.
*शख्स अपना नाम नहीं बताना चाहता है

'राष्ट्रीयता जांच फॉर्म' के जरिए केंद्र सूचनाएं इकट्ठा कर रहा है. क्विंट को फॉर्म पढ़ने की परमिशन मिली. फॉर्म के साथ म्यांमार एम्बेसी का कवर लेटर भी है जो कई कैंपों में लोगों को परेशान कर रहा है.

एक ह्यूमन राइट्स एडवोकेट ने क्विंट को बताया- 'हाल ही में जारी किए गए फॉर्म सेकंड वेरिफिकेशन का हिस्सा है. पहला वेरिफिकेशन नवम्बर 2017 में किया जा चुका है. लेटर के मुताबिक म्यांमार एम्बेसी ने फॉर्म गृह मंत्रालय को भेजा है.' उन्होंने आगे कहा,

‘फॉर्म के साथ लेटर पर इसलिए संदेह हो रहा है क्योंकि ये फॉर्म म्यांमार एम्बेसी ने जारी किए हैं. आप सोच सकते हैं कि अगर किसी शरणार्थी से फॉर्म भराए जा रहे हैं और वो उनके देश की एम्बेसी ने जारी किए हैं साथ ही देश से उन शरणार्थियों के डिटेल भी मांगी जा रही है तो ये शक पैदा करने वाला है.

शरणार्थियों के मुताबिक, अगर उन्हें दोबारा म्यांमार भेजा गया तो वो जिंदा नहीं बचेंगे

बर्मा में 2012 से 1 लाख से ज्यादा लोग अभी भी कैंप में हैं. वो नहीं चाहते कि हम जिंदा रहे. ऐसे में हम वापस जाना क्यों चाहेंगे?
*शख्स अपना नाम नहीं बताना चाहता है

रिफ्यूजी कैंप में रहने वाले ये लोग अब किसी हालत में वापस नहीं जाना चाहते लेकिन हमारी सरकार इन पर अब सख्ती के मोड में नजर आ रही है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×