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न पेंशन मिल रही है और न जवाब, DU के 1000 कर्मचारियों का बुरा हाल

हाई कोर्ट में पेंशन रिलीज करने को लेकर DU के कुछ प्रोफेसर ने याचिका दाखिल की, लेकिन अबतक एक भी सुनवाई नहीं हुई 

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एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम

पेंशन, एक कर्मचारी का मेहनत से कमाया फायदा है. ये संपत्ति की तरह ही है. संपत्ति का ये अधिकार छीना नहीं जा सकता- सुप्रीम कोर्ट 
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पेंशन पर सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों के बावजूद दिल्ली यूनिवर्सिटी के करीब 1,000 कर्मचारियों के रिटायरमेंट के बावजूद पेंशन नहीं मिल पा रही है.

क्या है इसकी वजह?

2014 में, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के उन सभी कर्मचारियों की पेंशन देने पर रोक लगा दी थी, जिन्होंने 1987 के बाद एकमुश्त रिटायरमेंट स्कीम से पेंशन स्कीम में शिफ्ट करने के लिए अर्जी लगाई थी.

1987 में सरकार ने चौथे वेतन आयोग के तहत यूनिवर्सिटी के टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ को पेंशन का विकल्प दिया. कुछ शिक्षकों ने पेंशन चुनी तो कुछ ने नहीं. जिन्होंने पेंशन विकल्प नहीं चुना उनके लिए यूनिवर्सिटी ने 989-98 के बीच फिर से विकल्प लेकर आई. तब कई लोगों ने पेंशन का ऑप्शन चुना.
डॉ राजेश मोहन, रिटायर्ड एसोसिएट प्रोफेसर (फिजिक्स)

यूजीसी के मुताबिक दिल्ली यूनिवर्सिटी ने अपने कर्मचारियों को 1987 के बाद पेंशन स्कीम में शिफ्ट करने की मंजूरी नहीं ली.

कोर्ट में सुनवाई नहीं

2017 में कुछ कर्मचारियों ने दिल्ली हाई कोर्ट में पेंशन को लेकर याचिका दाखिल की. एक साल बीत चुका है, लेकिन इस याचिका पर अबतक एक भी सुनवाई नहीं हुई है.

हम कोर्ट गए थे. ये पेंशन मंजूर करने नहीं बल्कि पेंशन जारी करने के लिए था. इस बात को एक साल हो चुका है.
मंजू नारंग, रिटायर्ड एसोसिएट प्रोफेसर (फिलॉसफी)

2016 में प्रोफेसर नारंग दिल्ली यूनिवर्सिटी से रिटायर हुईं. लेकिन अब तक उन्हें पेंशन का एक रुपया तक नहीं मिला है. वजह? वजह ये है कि 2014 में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) ने डीयू के 1100 स्टाफ की पेंशन रोक दी है.

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पेंशन क्यों नहीं दी जा रही?

दिल्ली यूनिवर्सिटी ने 1987 के बाद पेंशन के लिए एप्लाई करनेवालों को पेंशन देने के लिए UGC से इजाजत नहीं ली. अब, डीयू के 1100 कर्मचारी किसी और की गलती का नतीजा भुगत रहे हैं.

मैंने अपने कॉलेज के प्रिंसिपल को चिट्ठी लिखी है कि मुझे पेंशन नहीं मिल रही है. मैंने इस कॉलेज में 4 दशक से भी ज्यादा पढ़ाया है. प्रिंसिपल ने मुझे जवाब में लिखा,‘हमारे पास आपकी फाइल तैयार है, लेकिन हम यूनिवर्सिटी की स्वीकृति का इंतजार कर रहे हैं’. ये बहुत हताश करने वाला है क्योंकि कोई बात करने वाला ही नहीं है.
मंजू नारंग, रिटायर्ड एसोसिएट प्रोफेसर (फिलाॅसफी)
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ये दुखी करने वाला है

घर में अकेले कमाने वाले मुश्किल में हैं, फिर चाहे वो टीचिंग स्टाफ हों या नॉन टीचिंग. कम सैलरी की वजह से नॉन टीचिंग स्टाफ ज्यादा परेशान हैं. वो अपनी जरूरतें तक पूरी नहीं कर पा रहे. वो टीचर जो अकेले कमाने वाले थे वो भी परेशान हैं, क्योंकि उन्होंने बिना पेंशन के रिटायरमेंट प्लान नहीं किया था. वो खासी मुश्किल में हैं.
डॉ राजेश मोहन, रिटायर्ड एसोसिएट प्रोफेसर (फिजिक्स)

डीयू के 1100 के स्टाफ में 30% लोग नॉन टीचिंग हैं.

एक नॉन टीचिंग स्टाफ अशोक शर्मा ने एडमिन आॅफिसर के रूप में डीयू के कई विभागों में काम किया. वो 2016 में रिटायर हुए और तब से उन्हें कोई पेंशन नहीं मिली है. उनकी बेटी की शादी हो चुकी है और घर में वो अपनी पत्नी के साथ रहते हैं. उनकी पत्नी होममेकर है.

कोई बताने को तैयार नहीं कि पेंशन क्यों नहीं मिल रही है. चपरासी से लेकर असिस्टेंट रजिस्ट्रार तक को कुछ नहीं पता. यूनिवर्सिटी की ऐसी हालत पहले कभी नहीं देखी. हम किसी तरह घर चला पा रहे हैं. लगता है लोगों से उधार मांगना शुरू करना पड़ेगा.
अशोक शर्मा, रिटायर्ड एडमिन ऑफिसर

अशोक शर्मा के मुताबिक इससे कई परिवार प्रभावित हैं. उन्होंने अपने एक सहयोगी के बारे में बताया, ‘एक दीवान सिंह नेगी थे, रिटायरमेंट के बाद उनकी मौत हो गई. उनकी पत्नी को कैंसर है. बेटा धक्के खा रहा है. कहां से इलाज कराएं?’

ये बेहद हताशा जनक है कि इतनी मेहनत के बावजूद सिस्टम को आपकी परवाह नहीं है. वो पेंशन कैसे रोक सकते हैं? लोगों को यकीन नहीं होता कि डीयू में भी पेंशन रोकी जा सकती है.
मंजू नारंग, रिटायर्ड एसोसिएट प्रोफेसर (फिलाॅसफी)

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