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धू-धू कर जल रहे उत्तराखंड के जंगल, इस तबाही पर ग्राउंड रिपोर्ट

इस साल जंगल में आग लगने की 1400 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं, जिसमें तकरीबन 2000 हेक्टेयर जंगल स्वाहा हो गए

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वीडियो एडिटर: विशाल कुमार

वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी

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उत्तराखंड के जंगल एक बार फिर धू-धू कर जल रहे हैं. इस साल जंगल में आग लगने की 1400 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं. तकरीबन 2000 हेक्टेयर जंगल स्वाहा हो गए हैं. पिछले कई सालों से लगातार गर्मियों में उत्तराखंड के जंगलों में भयानक आग लग रही है और इसके लिए एक संगठित आपदा प्रबंधन तंत्र या प्रशासनिक योजना की कमी स्पष्ट रूप से दिख रही है.

पिछले एक महीने से उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल दोनों इलाकों में जंगल में आग की दर्जनों घटनाएं हुईं हैं. जिसकी सूचना हर रोज वन विभाग और प्रशासन को मिल रही है. जंगल में आग के लिए ग्रामीणों की लापरवाही, चीड़ के पेड़ों का ज्यादा होना और उनकी ज्वलनशील पत्तियों का बिखराव एक बड़ा कारण है. किसी भी लापरवाही से लगने वाली आग चीड़ की पत्तियों के साथ बहुत तेजी से फैल जाती है. पहाड़ों में चिलचिलाती धूप और पानी की कमी इस वक्त आग में घी का काम कर रही है.

आदिवासी और वन अधिकारों के लिए काम कर रहे जानकार बताते हैं कि वनों पर स्थानीय लोगों के हक-हकूकों को छीना जाना भी बार-बार आग लगने की वजह है. इससे स्थानीय लोग अपने अधिकारों के छिन जाने के बाद जंगलों की सुरक्षा में कोई रुचि नहीं लेते. इसके अलावा वन विभाग में फैला भ्रष्टाचार भी इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार है. पहाड़ में अंधाधुंध निर्माण कार्य, भू-जल का दोहन और प्राकृतिक जल स्रोतों का खत्म होना भी आग लगने का कारण है.

वैसे देश भर में जंगल में लग रही आग की घटनाएं पिछले एक दशक में तेजी से बढ़ी हैं.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2011 से 2017 के बीच जंगलों में आग की घटनाओं में 2.5 गुना की बढ़त हुई. 2017 में जहां जंगल में आग की 13,898 घटनायें हुईं वहीं 2017 में कुल 35,888 घटनायें दर्ज की गईं.

लोकसभा में पिछले साल सरकार ने एक सवाल के जवाब में जो जानकारी दी, उससे ये भी पता चलता है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा वो राज्य हैं जहां हर साल आग लगने की सबसे अधिक घटनाएं हो रही हैं.

पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञ बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन, धरती का बढ़ रहा तापमान और लंबा खुश्क मौसम भी इस समस्या की वजह है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल उत्तराखंड में अब तक 35 लाख से अधिक की संपत्ति का नुकसान हुआ है. लेकिन सूत्र बताते हैं कि जंगल में लगी इस भयानक आग से होने वाला नुकसान करोड़ों रुपये में है.

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वन संपदा को होने वाले नुकसान के साथ बार -बार लगने वाली आग से जैव विविधता को बड़ा खतरा पैदा हो गया है.

कुमाऊं के नैनीताल और अल्मोड़ा और गढ़वाल के टिहरी, पौड़ी और देहरादून से आग की सैकड़ों घटनाओं की खबर पिछले एक पखवाड़े में ही आई है. महत्वपूर्ण बात यह है कि वन संपदा के लिए समृद्ध कहे जाने वाले उत्तराखंड में हर साल जंगलों में भयानक आग लग रही है. इसके बावजूद ऐसा नहीं लगता कि सरकार ने इसके आपदा प्रबंधन के लिए कुछ खास कदम उठाये हैं.

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