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राम रहीम, कठुआ, बिलकिस बानो... बलात्कारियों से इतनी मुहब्बत कैसे और क्यों?

कठुआ में 8 साल की बच्ची के साथ गैंगरेप और हत्या के आरोपियों के समर्थन में तिरंगा रैली निकाली गई थी.

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बस एक सवाल पूछना है आप से. राजनीतिक दल, सरकारें और कुछ लोगों को बलात्कारियों से इतनी मुहब्बत कैसे और क्यों है? इस सवाल के जवाब से पहले एक सच्ची कहानी सुनिए.

साल 2012, दिसंबर का महीना, कड़ाके की ठंड, फिर भी हजारों लोग सड़कों पर थे. नारा सिर्फ एक- निर्भया के बलात्कारियों को मिले फांसी. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर उस पूरे सीन को पलट दिया जाता तो क्या होता, मतलब हजारों की भीड़ बलात्कारियों के लिए फांसी की नहीं बल्कि समर्थन में आ जाती तो क्या होता? हजारों की भीड़ कहती बलात्कारी मेरे समाज से है, मेरे धर्म का है, मेरी जाति का है. हजारों की भीड़ बलात्कारियों को माला पहनाती, आरती उतारती, तो क्या होता?

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जवाब है- होना क्या था निर्भया का गुनहगार सतसंग कर रहा होता, नेता लाइन लगाकर आशीर्वाद लेते, कोई माला पहना रहा होता.. कोई अपने जाति का बता रहा होता.

इस जवाब को सुनकर आप कहेंगे कैसी बेतुकी बातें कर रहे हैं हम. ऐसा कैसे हो सकता है? और कौन करेगा बलात्कारियों का महिमामंडन? नहीं यकीन है? तो आगे पढ़िए.

बलात्कारी कर रहा सत्संग, नेता हाथ जोड़े खड़े हैं

साल 2017 में डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत सिंह राम रहीम को पंचकूला के स्पेशल CBI कोर्ट ने 20 साल जेल की सजा सुनायी थी. राम रहीम सिरसा के डेरा सच्चा सौदा आश्रम में सेविकाओं के साथ बलात्कार का दोषी पाया गया था. इसके अलावा पत्रकार राम चंद्र छत्रपति और डेरा सच्चा सौदा के मैनेजर रणजीत सिंह की हत्या का दोषी भी है.

लेकिन विडंबना देखिए बलात्कार और हत्या का दोषी गुरमीत राम रहीम 40 दिन के पैरोल पर जेल से बाहर है. पैरोल का प्रावधान है. लेकिन ऑनलाइन सत्संग के लिए पैरोल मिला था? दिवाली पर म्यूजिकल वीडियो बनाने के लिए पैरोल मिला था?

जिस देश में स्टेन स्वामी जैसे लोग जमानत के इंतजार में जेल में दम तोड़ देते हैं वहां गुरमीत राम रहीम पर सरकार इतनी महरबान है कि हर चुनाव से पहले जेल से आजादी मिल जाती है.

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कैसे और क्यों बार-बार राम रहीम जेल से आ जाता है बाहर?

राम रहीम को साल 2021 में तीन बार और 2022 में भी तीन बार पैरोल और फरलो पर जेल से बाहर आने दिया गया.

संयोग देखिए राम रहीम को साल 2022 में पहली बार फरलो तब मिला जब पंजाब का चुनाव था. इसके बाद जून में हरियाणा जेल विभाग ने 30 दिनों के लिए पैरोल दे दिया. तब 19 हरियाणा निकाय चुनाव था. और अब 3 नवंबर को हरियाणा के आदमपुर विधानसभा में उपचुनाव होने हैं तब राम रहीम बाहर है.

शायद मेरी बातों पर कुछ लोग कहेंगे कि अरे कानून के हिसाब से सब हुआ है. ठीक बात है. लेकिन क्या कोई बलात्कारी से आशीर्वाद लेना चाहेगा? आम लोग तो छोड़िए बीजेपी के नेता गुरमीत के सामने हाथ जोड़े खड़े होकर आशीर्वाद मांग रहे हैं. 1

8 अक्टूबर को ही गुरमीत राम रहीम ने उत्तर प्रदेश के बागपत से एक 'वर्चुअल सत्संग' किया था. कथित सत्संग में बीजेपी नेत्री और करनाल की मेयर रेणु बाला गुप्ता ने गुरमीत राम रहीम को 'पिताजी' कहकर बुलाया. कहा आशीर्वाद दीजिए. यही नहीं हरियाणा विधानसभा के डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा भी राम रहीम का आशीर्वाद लेने पहुंच गए. इसके अलावा करनाल के बीजेपी जिला अध्यक्ष योगेंद्र राणा, डिप्टी मेयर नवीन कुमार और सीनियर डिप्टी मेयर राजेश कुमार भी शामिल हुए.

मतलब वोट के लिए बलात्कारी भी मंजूर है? क्या बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ वाले अपने इन नेताओं को पार्टी से निकालने का 'आशीर्वाद' देंगे? या फिर बाबा के सहारे वोटों का 'आशीर्वाद' ही सब कुछ है?

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एक और शर्मसार कर देने वाली घटना

साल 2002 में गुजरात दंगों के दौरान 19 साल की बिलकिस बानो का रेप हुआ था. बिल्किस तब पांच महीने की गर्भवती थी. दंगाइयों ने बिल्किस की दो साल की बच्ची की जान ले ली, बिल्किस के रिश्तेदारों सहित 14 लोगों की हत्या की गई.

विडंबना देखिए 15 अगस्त 2022 को जब देश 76वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले के प्राचीर से महिलाओं के सम्मान करने की नसीहत दे रहे थे, तब उनकी पार्टी की ही गुजरात सरकार बिलकिस बानो केस के सभी 11 बलात्कारियों और हत्यारों की सजा कम कर जेल से रिहा कर रही थी. जेल से छूटे तो आरती उतारी गई, माला पहनाया गया.

एक बात और, पहले तो बिलकिस बानो के गुनहगारों को जेल से रिहा करने पर सुप्रीम कोर्ट का हवाला दिया गया, लेकिन अब सच सामने है कि इन लोगों को रिहा करने का फैसला केंद्रीय गृह मंत्रालय की मंजूरी से हुआ. गृह मंत्रालय ने गुजरात सरकार को लिखा था कि उसे इन लोगों की रिहाई पर कोई आपत्ति नहीं है. इन गुनहगारों के अच्छे आचरण का हवाला दिया गया. आचरण इतना अच्छा था कि इसमें से कई लोग कई बार फरलो और परोल पर बाहर आते हैं लेकिन वक्त पर सरेंडर नहीं करते थे. इसमें से एक दोषी तो 122 दिनों की देरी से सरेंडर करता है. फिर भी इसका आचरण गुजरात सरकार को अच्छा लगा. वाह.

कठुआ रेप के आरोपियों के समर्थन में तिरंगा यात्रा

साल 2018 में जम्मू-कश्मीर के कठुआ में 8 साल की बच्ची के साथ पहले गैंगरेप फिर उसकी हत्या की वारदात सामने आई थी. तब भी कुछ लोगों ने दोषियों के समर्थन में तिरंगा रैली निकाली थी. मतलब बलात्कारी को बचाने के लिए कभी धर्म का इस्तेमाल तो कभी राष्ट्रवाद का सौदा.

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अभी हाल ही में नोएडा के ग्रैंड ओमेक्स सोसाइटी से एक वीडियो सामने आया था, जिसमें बीजेपी का कथित नेता श्रीकांत त्यागी एक महिला को गाली देता है, धमकी देता है, लेकिन अचानक एक समाज श्रीकांत के समर्थन में आ गया. बताइए महिला के साथ अभद्रता करने वालों को भी समर्थन? अफसोस. सोचिएगा और पूछिएगी नेताओं से और समाज से जनाब ऐसे कैसे?

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