सेंटर टेबल, वाल पीसेज, शीशे, लैंप, झूमर - लगभग एक दशक तक दिल्ली एनसीआर (Delhi NCR) के लोग सुंदर घर की सजावट के सामान किफायती दाम में खरीदने के लिए गुरुग्राम (Gurugram) के सेक्टर 56 में बंजारा मार्केट आते थे.
तंग गलियों और दुकानों के करीब होने के कारण बाजार में आने वाले लोगों के लिए दुकानदारों के बुलावे और अपील को सड़क के पार से सुना जा सकता था.
5 अक्टूबर को भी चहल-पहल थी, दुकानदार पुकार रहे थे कि "आओ देखो!" हालांकि, अब एक आकर्षक कॉफी टेबल या एक नक्काशीदार आईने को बेचने की कोशिश करने के लिए बुलावा नहीं हो रहा था, बल्कि सरकार के विध्वंस अभियान के कारण एक मीडियाकर्मी को मलबे को दिखाने के लिए बुलाया जा रहा था.
घर की साज-सज्जा के अनूठे कलेक्शन के लिए मशहूर बंजारा मार्केट को अब हरियाणा सरकार की जमीन से बेदखली का सामना करना पड़ रहा है. हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HUDA) की जमीन पर अवैध रूप से खड़ी करीब 250 दुकानों और घरों को ध्वस्त कर दिया गया.
हालांकि, दुकानदारों का आरोप है कि अधिकारी बिना किसी पूर्व सूचना के आए थे. कई लोगों के लिविंग रूम को सुंदर बनाने में मदद करने वाले लोगों के घर और आजीविका अब दांव पर लगी हुई है.
'निजी सामान बचाने का समय नहीं मिला'
आलम गीर ने कहा, "वे एक दिन पहले आए और हमें खाली करने के लिए कहने लगे. उसके बाद हमने कुछ सामान हटाया, लेकिन वे अगले दिन एक बुलडोजर और अधिक संख्या में अधिकारियों के साथ लौट आए."
"ये छोटे बच्चे भूखे हैं, कृपया उनके चेहरे अपने कैमरे में कैद करें. वे कब तक भूखे रह सकते हैं? क्या अधिकारियों ने यह पूछने की भी जहमत नहीं उठाई कि क्या हमारे पास पीने के लिए पानी है? नहीं, उन्होंने नहीं किया. वास्तव में, उन्होंने हमारा सब कुछ नष्ट कर दिया. उन्होंने पास के फुटपाथ पर एक पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा, देखो, आप उस पेड़ के नीचे मेरा बिस्तर और तकिया देख सकते हो, मैं रात को वहीं सोया था."
पिंकी, जो 15 वर्षों से अधिक समय से बाजार में Handicraft Rugs बेच रही हैं, और अपने पति और चार बेटियों के साथ बाजार में रहती है, उसने विध्वंस के बाद की रात को हुई कठिनाइयों के बारे में बताया.
"वे आए और अचानक हमला कर दिए, हम डर गए, बच्चे भी डर गए. उन्होंने हमें अपना निजी सामान हटाने का कोई समय नहीं दिया. कुछ लोगों ने कुछ बचा लिया, जो नहीं कर सके उनका सामान टूट गया. "उन्होंने चूल्हे पर खाना पकाते हुए कहा, जो अभी भी उसके घर के एक कोने में बरकरार था. हालांकि, घर में अब कोई छत या दीवार नहीं थी.
पिंकी की भाभी फूला ने कहा, "हमने उनसे हमारे बिस्तर और अन्य सामान निकालने के लिए हमें 10 मिनट का समय देने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने हमें पकड़ लिया और बाहर फेंक दिया."
एक अन्य निवासी और दुकानदार जीतू, जो अपने क्षतिग्रस्त घर और दुकान के बाहर बैठे थे, उन्होंने कहा कि वे बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि उनका अधिकांश सामान नष्ट हो गया है.
उन्होंने कहा कि शुक्र है, कल बारिश नहीं हुई. आपको क्या लगता है कि अगर बारिश होती तो हम अपने बच्चों को कैसे बचाते? कल बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. देवताओं ने हमारे बारे में सोचा, लेकिन इंसानों ने नहीं सोचा. कल किसी ने आकर हमें खाना बांटा. बर्तन खराब हो गए हैं, हम क्या पकाएं और कौन सी थाली में खाएं?
तोड़फोड़ अभियान के दौरान बिजली के कनेक्शन भी काट दिए गए.
'दीवाली से पहले कर्ज लिया क्योंकि बिक्री ज्यादा होती है'
कई विक्रेताओं ने कहा कि त्योहारी सीजन से पहले, वे कर्ज लेकर अधिक उत्पाद खरीदते हैं, क्योंकि इस अवधि के दौरान बिक्री सामान्य से अधिक होती है.
"उन्होंने पहले कहा था कि हमें दिवाली तक नहीं ले जाया जाएगा. लेकिन वे आए और सामान बुलडोजर चला दिया. हमारी दिवाली भी बर्बाद हो गई है. हम कर्ज पर सामान खरीदते हैं, अब वह कहां जाएगा?"पिंकी का पति मोनू
फूला ने कहा कि हम दिवाली से पहले बेचने के लिए सामान खरीदते हैं क्योंकि हम उम्मीद करते हैं कि समय के दौरान बिक्री बढ़ जाएगी, लेकिन अब वे सभी चीजें नष्ट हो गई हैं. लोग 2 लाख, 3 लाख, 4 लाख रुपये की चीजें खरीदते हैं.
जीतू ने कहा कि हमें कोरोना के दौरान भी बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन हम इससे आगे निकल गए थे. हमने अपने खून और पसीने से बाजार को ऊपर उठाया और अच्छी तरह से चलने लगा था.
'अतिक्रमण नहीं करना चाहते, केवल पुनर्वास चाहते हैं'
दुकानदारों का कहना है कि अचानक जगह बदलना एक मुश्किल काम है क्योंकि उनके पास बहुत सारे फर्नीचर और घर की साज-सज्जा की चीजें हैं जिन्हें शिफ्ट करने की जरूरत है. वे यह भी मांग करते हैं कि सरकार उन्हें बाजार स्थापित करने के लिए एक वैकल्पिक स्थान प्रदान करे.
फूला ने कहा, "हम कहां जाएं? सरकार को हमें जाने के लिए एक वैकल्पिक जगह देनी चाहिए. हम जहां चाहें वहां जाकर बस जाएंगे. हम अपने बच्चों के जीवन को नष्ट होते नहीं देख सकते.
जीतू ने कहा कि देखिए, हम यह नहीं कह रहे हैं कि हम सरकारी जमीन पर रहना चाहते हैं. हम सरकारी जमीन पर कब्जा नहीं करना चाहते, लेकिन सरकार को कम से कम हमारा पुनर्वास तो करना चाहिए.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक दुकानदारों के दावों के विपरीत हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के अनुविभागीय सर्वेक्षण अधिकारी सत्य नारायण ने कहा कि अधिकारियों द्वारा कई नोटिस के बावजूद जमीन खाली नहीं की जा रही थी.
उन्होंने यह भी कहा कि ज्यादातर दुकानदारों ने अपना सामान दुकानों से हटा लिया था, जबकि कई ने शिफ्ट करने के लिए दो दिन का समय मांगा था, जो उन्हें दे दिया गया.
बंजारा मार्केट में लगभग दो दशकों से रह रहे परिवार अब एक अंधकारमय भविष्य की ओर देख रहे हैं. अधिकारियों द्वारा पुनर्वास का कोई विकल्प उपलब्ध नहीं होने के कारण, कई अब अपने गृहनगर लौटने के विकल्प पर विचार कर रहे हैं.
जीतू ने कहा, "हमारे बाजार में आने वाले ग्राहकों से हम उनसे अनुरोध करते हैं कि बाजार को बचाने के लिए आपके पास मुश्किल से दो दिन हैं. यदि आप इसे बचा सकते हैं, तो कृपया प्रयास करें, क्योंकि अधिकारी हमारे जैसे अशिक्षित लोगों की नहीं सुनेंगे."
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