ADVERTISEMENTREMOVE AD

कुंभ में बिछड़े लोग परिवार तक कैसे पहुंचते हैं? पूरा सिस्टम जानिए

कहानियों के अलावा असलियत में भी एक तौर-तरीका है,जिससे कुंभ में भूले-भटके लोगों को उनके परिवारवालों से मिलाया जाता है

Published
छोटा
मध्यम
बड़ा

वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी

वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कुंभ के मेले में मिलने-बिछड़ने की कहानियां आपने बॉलीवुड फिल्मों में खूब देखी होंगी. लेकिन इन कहानियों के अलावा असलियत में भी एक तौर-तरीका है, जिससे कुंभ में भूले-भटके लोगों को उनके परिवारवालों से मिलाया जाता है. ऐसे बिछड़े लोगों को मिलाने के 2 तरीके बनाए गए हैं. पहला मैनुअल है, दूसरा है कम्प्यूटराइज्ड.

कुंभ में हर बार की तरह इस बार भी खोया-पाया विभाग बनाया गया है जो पूरी तरह कंप्यूटराइज्ड है, साथ ही 'भूला-भटका' विभाग भी इस कुंभ में काम करता है.

0

कंप्यूटराइज्ड तरीका

इस प्रक्रिया में पुणे की 'काश आईटी सल्यूशन' कंपनी उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ मिलकर कंप्यूटराइज्ड तरीके से गुम हुए लोगों को ढूंढने का काम कर रही है.

  • पहले गुम हुए व्यक्ति का नाम, उम्र उसका पहनावा दर्ज होता है
  • वो किसके साथ कुंभ में आए हैं उनका नाम उम्र और पहनावा भी दर्ज होता है
  • आखिरी बार भटका हुआ शख्स अपने साथी या परिवार के साथ कब और कहां थे, ये भी जानकारी ली जाती है
  • इसके बाद कुंभ के खोया-पाया विभाग सेंटर के 12 सेंटर पर जानकारी अपलोड होती है
  • इसे स्क्रीन पर फ्लैश किया जाता है
  • इस दौरान गुम हुए व्यक्ति का खाना और उसकी देखरेख के लिए वॉलंटियर मौजूद होते हैं
खोया-पाया केंद्र उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग के संपर्क से बनाये हुए हैं. इलाहाबाद शहर में हमारे 15 सेंटर हैं, जिसमें 12 सेंटर कुंभ में हैं और 3 शहर में है. कोई भूले-भटके आता है तो उनकी डिटेल हमारे डेटा ऑपरेटर लेते हैं. जैसे ही लॉस्ट एंड फाउंड की एंट्री पंजीकरण सॉफ्टवेयर में होती है उस समय पूरे मेला क्षेत्र में LED स्क्रीन पर फ्लैश किया जाता है- उसकी (गुम हुए व्यक्ति) फोटो, उसकी उम्र, उसका पहनावा. इसके साथ कंप्यूटराइज अनाउंसमेंट होती है.
मनीष झा, काश आईटी सल्युशन लिमिटेड, पुणे

दूसरा तरीका

इसमें गुम हुए व्यक्ति का नाम उम्र और पहनावे के बारे में जानकारी ली जाती है. फिर उसे मेले के अलग-अलग जगह लगे लाउडस्पीकर में अनाउंस किया जाता है और ये प्रक्रिया 1946 से चली आ रही है.

हमारे पिताजी पंडित राजाराम तिवारी ने 1946 में भूले-भटके शिविर स्थापित किया था. यहां हमारे करीब 150 कार्यकर्ता भूले-भटके लोगों को परिजनों से मिलाते हैं. उनका नाम अनाउंस किया जाता है. उनको भोजन दिया जाता है. उनको घर तक पहुंचाने कि सुविधा हम करते हैं. इस आधुनिक युग में भी लोग यहां गंगा नहाते हैं और अपने लोगों को भूलते हैं. आज हमारे पास रिकॉर्ड 550 लगभग महिला-पुरुष और 4 बच्चे हम मिलवा चुके हैं.
भोलानाथ तिवारी, अध्यक्ष, भूले-भटके शिविर

कुंभ में इन दोनों तरीकों से भूले-बिसरे लोगों को अपनों से मिलवाया जा रहा है. खबरें ये भी थीं कि कुंभ के दौरान RFID का इस्तेमाल होगा, लेकिन अब तक मेले में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×