वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
भले ही अलग-अलग राज्यों के ग्लोबल वैक्सीन टेंडर को अभी उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं मिल रही, लेकिन ये देश के लिए अच्छा है कि एकमात्र केंद्र सरकार के बजाय कई राज्य और निजी क्षेत्र वैक्सीन हासिल करने की कोशिश में हैं. सिर्फ केंद्र के भरोसे रहने का नतीजा हम देख चुके हैं. अर्थशास्त्री अजय शाह ने क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया से खास बातचीत में बताया कि सरकार की वैक्सीन पॉलिसी में सबसे बड़ी गलती क्या थी, और कब तक स्थिति सुधरने की उम्मीद है?
दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक देश भारत आज कोरोना टीकों की किल्लत झेल रहा है. ये हालत क्यों हुई और आगे क्या नजर आ रहा है? इसपर बेहद अहम जानकारियां दे रहे हैं अर्थशास्त्री अजय शाह.
केंद्र से इतनी उम्मीद ठीक नहीं
अब जब कई राज्यों में वैक्सीन की कमी हो गई है. कई राज्य 18-44 की उम्र वालों के लिए वैक्सीनेशन ड्राइव रोकने को मजबूर हो गए हैं, तो कुछ राज्यों ने वैक्सीन के लिए ग्लोबल टेंडर निकाले हैं. इसपर लोग कह रहे हैं कि केंद्र ने राज्यों को इंटरनेशनल मार्केट में आपस में प्रतियोगिता करने के लिए छोड़ दिया है. खरीदार ज्यादा हो गए हैं, इसिलए खरीदार नहीं कंपनियों को फायदा होगा. लोगों की राय है कि शायद केंद्र ग्लोबल टेंडर निकाले तो फायदा होगा.
इस रणनीति के बारे में अजय शाह याद दिलाते हैं कि हमने केंद्र के भरोसे रहकर देख तो लिया. हमने देख तो लिया कि वो रणनीति फेल हो गई. अजय वजह समझाते हैं कि हमारी सरकारों की सीमाएं हैं, वो अक्सर फेल हो जाती हैं. सबमरीन से लेकर सेना के लिए साजोसामान खरीदने में वो फेल होती हैं, लेट होती हैं. इसलिए अच्छा है कि वैक्सीन के लिए कई जगह से दिमाग और ऊर्जा लगे.
अजय के मुताबिक, ये वक्त इस बात का हिसाब लगाने का नहीं है कि ये किसकी जिम्मेदारी थी, इस वक्त पूरा फोकस होना चाहिए वैक्सीन पाने पर. राज्यों और निजी क्षेत्र को वैक्सीन तक पहुंचने में वक्त लगेगा क्योंकि अभी 17 अप्रैल को ही उन्हें कोशिश करनी की आजादी मिली है, लेकिन आखिर में इससे फायदा होगा.
वैक्सीन पॉलिसी की सबसे बड़ी गलती
अजय शाह समझाते हैं कि मूल समस्या है कि हमारी सरकार बहुत ज्यादा चीजों में दखल देती है. वैक्सीन पॉलिसी की सबसे बड़ी गलती ये थी कि सरकार ने निजी क्षेत्र को प्रयास करने नहीं दिया. ये भारतीयों के अधिकारों का भी हनन था.
“एक निजी कंपनी वैक्सीन ला सकती है. एक व्यक्ति उस कंपनी से कीमत चुका कर वैक्सीन लगवा सकता है. लेकिन सरकार ने इसकी इजाजत नहीं दी. ये अधिकारों का हनन था.”अजय शाह, अर्थशास्त्री
हुआ ये कि सरकार ने न खुद वैक्सीन की व्यवस्था की और न ही निजी क्षेत्र को प्रयास करने दिया. इसलिए जब भी हम सरकार को हर चीज में घुसने का अधिकार देते हैं तो इस तरह की परेशानियां आने की आशंका रहती है. आज ट्रैजिडी ये है कि जहां दुनिया के कुछ देशों ने अपनी 50-60% आबादी को वैक्सीनेट कर लिया है, वहीं महज 3% भारतीयों को कोरोना का टीका लगा है.
फिलहाल आयात ही उपाय
मांग उठ रही है कि जिन कंपनियों ने वैक्सीन बनाई है उन्हें पेटेंट छोड़ना चाहिए. भारत सरकार को भारत बायोटेक वाली वैक्सीन का लाइसेंस बाकी कंपनियों को भी देना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन का उत्पादन हो सके. लेकिन अजय आगाह करते हैं कि वैक्सीन बनाना बेहद जटिल काम है. इसकी क्षमता कम कंपनियों के पास है. लिहाजा लगता नहीं कि लाइसेंस दे देने से फौरी तौर पर कोई फायदा होगा. इसलिए फिलहाल तो आयात ही करना पड़ेगा.
3 महीने में सुधरेगी स्थिति
अजय शाह का अनुमान है कि 3 महीने के अंदर देश में वैक्सीन सप्लाई की स्थिति ठीक होगी. इसके पीछे उनकी दलील है कि,
- निजी क्षेत्र को वैक्सीन लाने की जो छूट दी गई है, उसका असर तब तक दिखना शुरू हो जाएगा.
- इंटरनेशनल मार्केट से कैसे वैक्सीन लाना है, इसका प्राइवेट कंपनियां कोई न कोई उपाय निकाल ही लेंगी.
- हर कंपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा रही है. दो तीन महीने में क्षमता में काफी इजाफा होगा.
- मार्केट में बड़े खरीदारों की जरूरत पूरी हो चुकी होगी. अभी से अमेरिका में खरीदारी कम हुई है.
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