वीडियो एडिटर: संदीप सुमन
वीडियो प्रोड्यूसर: मैत्रेयी रमेश/कनिष्क दांगी
कैमरा: अभिषेक रंजन
द क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया से खास बातचीत में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अर्थव्यवस्था की हालत, रोजगार और भारत में होने वाले निवेशों पर कहा कि ‘पहली बार पूरी दुनिया में हमारे आंकड़े भरोसे लायक नहीं हैं, UPA के वक्त में आंकड़े भरोसे लायक थे, थोड़े एडजस्टमेंट के साथ ऑफ बजट बौरोइंग में, लेकिन उनके आंकड़ों पर कोई भरोसा ही नहीं कर पा रहा है.’
कई एक्सपर्ट्स बजट के आंकड़ों पर ट्रांसपेरेंसी की बात कर रहे हैं इस पर आपका क्या कहना है?
आप ट्रांसपेरेंसी पूछिए, लेकिन कई मंत्री और मैं भी कई बार आंकड़े छुपाते हैं, मैं इससे इनकार नहीं कर रहा हूं कई बार जरूरत पड़ती है लेकिन इस सरकार ने तो सभी हदें पार कर दी.
क्या पहली बार ये मान रहे हैं कि आंकड़े छिपाए जाते हैं?
मैंने खुद कहा है कि ऑफ बजट बौरोइंग हुई है, जो एनालिस्ट हैं और रेटिंग एजेंसी है, उस स्टेटिक को उसमें शामिल करती हैं, इस पर सवाल उठता है, उन्होंने बेसियर चेंज कर दिया, जो ठीक है, उन्होंने कार्यप्रणाली बदल दी, डिफ्लेटर बदल दिया, पहली बार पूरी दुनिया में हमारे आंकड़े भरोसे लायक नहीं हैं, UPA के वक्त में आंकड़े भरोसे लायक थे, थोड़े एडजस्टमेंट के साथ, ऑफ बजट बौरोइंग में, लेकिन उनके आंकड़ों पर कोई भरोसा ही नहीं कर पा रहा है, जो भारतीय अर्थशास्त्री विदेश में हैं उन्हें भारत सरकार पर भरोसा नहीं है चीन से हमारी तुलना 6 साल पहले होती थी.
अब अगर वो डिसइन्वेस्टमेंट या निजीकरण का प्लान लाते हैं तो क्या ये बैंक की स्थिति सुधारने के लिए काफी है?
वो निजीकरण क्यों कर रहे हैं? पहले मुझे वो बताएं, समस्याएं दूर करने के लिए, निजीकरण करना कोई रामबाण नहीं है, निजीकरण करने के लिए जरूरी है उद्देश्य मैं समझ सकता हूं कि आप कहें ‘हमें एयर इंडिया का निजीकरण करना है, क्योंकि एयर इंडिया लगातार घाटे में चल रही है, मैं ऐसी एयर लाइन नहीं चला सकता तो कोई प्राइवेट कंपनी आए और उसे चलाए’ मैं समझता हूं ये लेकिन आपको एक तेल की कंपनी का निजीकरण क्यों करना है? आपको कारण बताना चाहिए.
ये एक आरोप है कि वो ये समझते नहीं हैं या फिर ये भी हो सकता है कि वो ये समझते हैं लेकिन अभी उनकी प्राथमिकता ये नहीं है?
उनकी प्राथमिकता हिंदुत्व है मैं ये मान लेता हूं कि उनकी दूसरी या तीसरी प्राथमिकता इकनॉमी है, अगर वो तीसरी प्राथमिकता भी है, तो भी वो मैक्रो इकनॉमी नहीं समझते हैं, इस सरकार में टैलेंट की कमी है इसका जवाब बहुत आसान है अगर आपके पास टैलेंट नहीं है तो किसी को नियुक्त कीजिए, देशभर में या विदेश में भी ऐसे कई लोग हैं जो पूरी तरह काबिल हैं आपके लिए, अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए या कम से कम आपको सुझाव देने के लिए
इन सभी का नतीजा ये है कि ,देश में बेरोजगारी बढ़ गई है, क्योंकि नौकरियां नहीं बना पा रहे हैं
ये स्थिति और खराब इसलिए हो सकती है, क्योंकि बिजनेसमैन अब डीलेवरेज हो चुके हैं, कर्जा है उनपर, कर्मचारियों को हटा रहे हैं ये OYO को देखिए, OYO से करीब हजार लोगों को निकाला गया सॉफ्टवेयर कंपनियों से लाखों लोगों को निकाला गया है ऑटोमोबाइल सेक्टर से भी कई लाख लोगों को निकाला गया है जब आप डिलेवरेजिंग करते हैं, कर्जे में होते हैं, तो आपको मजबूरन नौकरियां हटानी पड़ती हैं लोगों को निकालना पड़ता है
ये फैक्ट है कि सरकार ग्रोथ को खुद नहीं चला सकती प्राइवेट सेक्टरों को ये करना पड़ता है लेकिन प्राइवेट सेक्टर के साथ जो संबंध है वो बहुत खराब है, ये ऐसा है उद्यमिता की भावना को खत्म कर रहा है और अब ये फैक्ट है, उन्हें उनका आत्मविश्वास फिर से जगाना चाहिए
नहीं, उन्हें उनका एटीट्यूड बदलने की जरूरत होती है, मोदी एक कंट्रोलर की तरह हैं वो इंस्टिंक्टिव लिबरलाइज नहीं हैं वो कंट्रोलर हैं, उन्हें हर चीज को कंट्रोल करना अच्छा लगता है, सब पर नजर रखना चाहते हैं इसलिए उन्होंने इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को बहुत ज्यादा पावर दी है एक्साइज डिपार्टमेंट, कस्टम डिपार्टमेंट, एजेंसियों को दी है और सब जुझारू हो गए हैं, हर किसी को नोटिस दे रहे हैं रेट्रोस्पेक्टिव टैक्सेशन, 10 साल पुराने, 6 साल पुराने रिटर्न को फिर खोल रहे हैं कहते हैं ‘ये एकाउंट बताओ-वो अकाउंट बताओ’ चल क्या रहा है? इसलिए कई बिजनेस डरे हुए हैं, किसी भी चीज में घुसने से वो कहते हैं कि हां, हम तो पैसों के ढेर पर बैठे हैं हम अब नई चीज शुरू करने का जोखिम क्यों उठाएं? हम वहीं बैठे रहेंगे
विदेशी निवेशकों से क्या सुनते हैं आप?
विदेशी निवेश सिर्फ स्टॉक मार्केट में पैसे लगा रहे हैं ये FII है न कि FDI वो स्टॉक मार्केट में पैसे लगा रहे हैं स्टॉक मार्केट ऊंचाईयों पर है लेकिन जमीन पर हालत ये है कि कई नौकरियां जो छोटे व्यापारों पर निर्भर करती हैं वो स्टॉक मार्केट में नहीं दिखता है और कोई पैसा वहां नहीं लगा रहा है.
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