ये जो इंडिया है ना... इसे 1947 में आजादी मिली, और कंगना रनौत (Kangana Ranaut) को 2021 में, पद्मश्री. भारत को अपने स्वतंत्रता संग्राम पर गर्व है और कंगना को अपने पद्मश्री पर गर्व होना चाहिए. ना इंडिया को आजादी भीख में मिली, ना ही कंगना पद्मश्री के लिए भीख मांगने गईं. दोनों कहानियां हैं मेहनत की, एक दशकों लंबे चले राष्ट्रीय आंदोलन की, और दूसरी एक व्यक्ति के प्रयासों की.
लेकिन शालीनता दिखाने के बजाय कंगना ने अपने पुरस्कार के बाद ये कहते हुए बेअदबी चुनी - कि 1947 में भारत और महात्मा गांधी को जो मिला वो आजादी नहीं थी, बल्कि अंग्रेजों की भीख थी. अब मेरी बेटी 16 साल की है, वो 2024 में वोट देगी और वो उस भारत को समझने की कोशिश कर रही है, जिसमें वो रहती है.
उसने कंगना की टिप्पणी के बारे में ऑनलाइन पढ़ा और उसका सवाल था, हमें कंगना रनौत को गंभीरता से क्यों लेना चाहिए? ये तथ्यों को नहीं बदलता है, या भारत के बेहतरीन इतिहास को नहीं बदलता है, तो उनके इस विचार के बारे में चिंता क्यों करें? आखिर कौन हैं कंगना रनौत?
दुर्भाग्य से - हमें कंगना रनौत को गंभीरता से क्यों लेना चाहिए- ये हम सभी के लिए एक महत्वपूर्ण सवाल है. क्योंकि उनकी आवाज अकेली नहीं है, ये कई आवाजों के एक बढ़ते कोरस में सबसे तेज आवाज है. आप एक तर्कहीन आवाज को नजरअंदाज कर सकते हैं, आप एक आवाज को नजरअंदाज कर सकते हैं जो भारत के इतिहास से अनजान है. लेकिन आज कई कई आवाजें हैं...
एक दिन गांधी पर हमला, अगले दिन नेहरू पर हमला, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों के बीच काल्पनिक मतभेद पैदा करना - बोस को नजरअंदाज किया गया था, पटेल को उनका हक नहीं मिला, अम्बेडकर बनाम गांधी.. वगैरह.. वगैरह..
लेकिन इससे भी ज्यादा एक और चिंता की बात है - वो ये कि कंगना रनौत मानती हैं कि उन्हें ये पद्मश्री इन बयानों के लिए मिला है. एक वीडियो में उन्होंने साफ कहा कि उनका पद्मश्री दूसरे भारतीयों को 'जिहादी' और 'आतंकवादी' और 'खालिस्तानी' कहने के लिए था. लेकिन उन्हें पद्मश्री देने वाले लोगों ने कंगना को गलत नहीं बताया. उसे करेक्ट नहीं किया जो कि एक साफ संकेत था. इसलिए, कंगना ने और आगे बढ़कर कहा कि हमें 1947 में भीख मिली, आजादी नहीं. फिर भी, वरुण गांधी और महाराष्ट्र के एक बीजेपी नेता को छोड़कर, सरकार, बीजेपी, या संघ की ओर से कोई टिप्पणी नहीं की गई.
एक बार फिर किसी ने उन्हें गलत नहीं बताया, जबकि इस बार उनका निशाना राष्ट्रपिता और हमारा पूरा स्वतंत्रता संग्राम था. कंगना से ये पूछने की जिम्मेदारी कार्टूनिस्ट पर छोड़ दी गई कि क्या हम भीख के 75 साल मना रहे हैं या आजादी के, ये बताना संगीतकारों पर छोड़ दिया गया कि जब भगत सिंह को फांसी दी जा रही थी, उन्होंने ना भारत की आजादी के लिए, ना अपने जीवन के लिए अंग्रेजों से भीख मांगी.
हम इसे अपमानजनक ट्वीट्स और सोशल मीडिया पोस्ट्स में, न्यूज चैनलों पर चिल्लाने वाले मैचों में, राजनीतिक भाषणों में, सब जगह देखते हैं. कुछ लोग इन बातों को लोकर पॉलिटिक्स में आगे बढ़ने के लिए इस्तेमाल करते हैं, कुछ न्यूज चैनलों पर आमंत्रित होने के लिए, या पार्टी के स्टार प्रचारक बनने के लिए, या फिर चुनाव टिकट पाने के लिए.
कुल मिलाकर देखा जाए तो... ये भारत के इतिहास के तथ्यों को बदलने की कोशिशें हैं. हमारे इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने की कोशिशें हैं. जब ऐसा छोटे व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता है, बिना तथ्यों के हमारे स्वतंत्रता संग्राम को बकवास बताना, गांधी जी का अपमान करना… तो ये गहरे चिंता का विषय बन जाता है, जिस पर हमें बार-बार सवाल उठाना चाहिए.
तो इस चुप्पी से कंगना को क्या संदेश जाता है? यही, कि इसे जारी रखिए! गांधी जी पर हमला करने की अनुमति है. भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर भी हमला करने की अनुमति है. हजारों स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा जेल में बिताए गए सभी वर्षों का उपहास, लाठियों और गोलियों का उपहास, जिसमें हजारों लोग मारे गए…आपको सभी की अनुमति है!
कोई देशद्रोह का आरोप नहीं, कोई यूएपीए नहीं, बल्कि कंगना के साथी उनसे कह रहे होंगे... की बस मैडम, ये सब कहने के बाद, आप तो अब पद्म भूषण के लिए तैयार हो जाइए! ये नफरत करने वाली ब्रिगेड के लिए भी एक संकेत है - कंगना को अपना रोल मॉडल समझिए!
लेकिन सच ये है कि मंगल पांडे, झांसी की रानी, तिलक, गोखले, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, बोस, पटेल, नेहरू, मौलाना आजाद, अंबेडकर, सावरकर और गांधी ने भी, कभी भीख नहीं मांगी. हमें आजादी का तोहफा देने के लिए ये ब्रिटिश राज को घुटनों पर ले आए, भीख नहीं, बेशकीमती तोहफा थी, 1947 की आजादी. और हां, ये जो इंडिया है ना, वो इन सभी का एहसानमंद है. और ये दुखद है कि कंगना को हमारे नायकों का अपमान करने की पूरी छूट मिली हुई है.
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