कर्नाटक में जारी हिजाब विवाद (Hijab Row) को लेकर कर्नाटक हाई कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने 10 फरवरी को सुनवाई के दौरान अपना अंतरिम आदेश दिया. अपने आदेश में कोर्ट ने बेंच का फैसला आने तक धार्मिक कपड़े पहनने पर रोक लगा दी है. साथ ही स्कूल-कॉलेज फिर खोलने के आदेश दिए हैं.
लेकिन इस अंतरिम आदेश पर कुछ सवाल उठते हैं:
कोर्ट ने कहा कि शांति बनाए रखने के लिए ये जरूरी है. क्या शांति व्यवस्था हिजाब पहनने वाली लड़कियों के कारण बिगड़ी थी या उनका जबरन विरोध कर रहे लोगों के कारण? ऐसे में हिजाब पहन कर आने पर रोक लगाना कितना सही है?
क्या अब शांति व्यवस्था कायम रखने की जिम्मेदारी हिजाब पहनने वाली लड़कियों की है?
अगर लड़कियां हिजाब पहनकर स्कूल कॉलेज जाती हैं तो किसे दिक्कत है? किसको नुकसान हो रहा है? अगर लड़कियां अपनी मर्जी के मुताबिक हिजाब नहीं पहन पाती हैं तो यहां पीड़ित कौन है?
क्या संविधान में सबको अपनी इच्छा के मुताबिक पहनने, खाने और बोलने का हक नहीं है?
क्या सीबीएसई बोर्ड परीक्षा के तुरंत पहले हिजाब या पढ़ाई चुनने जैसी नौबत से क्या लड़कियों का करियर खराब होने का डर नहीं है?
क्या है मामला?
जनवरी में उडुपी के एक प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में 6 लड़कियों को हिजाब के कारण क्लासेज़ करने से रोक दिया गया था. जब हिजाब पहनकर क्लास में बैठने की इनकी अपील को ख़ारिज कर दिया गया तो इन्होंने प्रदर्शन शुरू किया. मामला तब बढ़ गया जब इनके हिजाब के जवाब में कुछ छात्र भगवा शॉल पहन कर चले आए.
इसी तरह के मामले कर्नाटक के अलग अलग जिलों में भी हुए और मामला लगातार बढ़ता चला गया.
हिजाब पहनने से रोके जाने पर छात्राओं ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है. उनका कहना है कि हिजाब पहनना उनका संवैधानिक अधिकार है. लिहाजा उन्हें इससे रोका नहीं जा सकता.
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