वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
कैमरामैन: शिव कुमार मौर्य
बलात्कार करने की इजाजत कौन सा धर्म देता है? क्या रेपिस्ट की भी कोई जात होती है? नहीं, वो इंसान कहलाने के लायक भी नहीं हैं. फिर किस मानिसकता के साथ कठुआ गैंगरेप केस के आरोपियों के बचाव में प्रदर्शन करने लोग उतर आए?
क्या 8 साल की मासूम बच्ची के साथ गैंगरेप के आरोपियों का समर्थन सिर्फ इसलिए हो सकता है, क्योंकि वो हिंदू हैं और दरिंदगी की शिकार बच्ची मुसलमान थी?
भूख से तड़पती, नशीली दवाओं के डोज की वजह से सुन्न पड़ गई वो मासूम न चीख सकती थी, न कुछ महसूस कर सकती थी. हर दिन उसके साथ रेप किया जा रहा था. जब उसका सुन्न शरीर 6 लोगों की हैवानियत शांत करने लायक नहीं बचा, तो उसको मार डाला गया.
जम्मू-कश्मीर के कठुआ की रहने वाली 8 साल की मासूम बच्ची. उसके साथ हुई दरिंदगी की वजह बना उसका धर्म. हैरानी की बात ये है कि अपने धर्म का दबदबा बनाने के मकसद से जो उसके साथ दरिंदगी कर रहे थे, उन्होंने उसके रेप के लिए मंदिर को चुना.
पुलिस की चार्जशीट बताती है कि रेप मंदिर के भीतर हुआ. मुख्य आरोपी मंदिर का पुजारी है. बाकी वहशी, पुजारी का बेटा और भतीजा. शुरुआत में जिसे महज रेप की एक घटना समझा जा रहा था, उसके तार जब सुलझना शुरू हुए, तो सबकी नजरें शर्म से झुक गईं.
बताया गया कि कठुआ के रसाना गांव में हिंदू परिवारों की बकरवालों से अतिक्रमण और आबादी में घुसपैठ के चलते लड़ाई होती रहती है. कुछ हिंदुओं ने बकरवाल समुदाय को सबक सिखाने की ठानी और इसके लिए बच्ची को टारगेट किया गया. उसके कुनबे को हटाने के लिए साजिश रची गई थी. सबक सिखाने की पूरी कवायद का मास्टरमाइंड रिटायर्ड राजस्व अधिकारी और मंदिर का पुजारी सांजी राम था. उसने लड़की के अपहरण की योजना बनाई, ताकि इस घटना के बाद बकरवाल समुदाय खौफ में आ जाए और वो कठुआ छोड़कर चले जाएं.
प्लान के तहत 10 जनवरी को घोड़ों को चराने के लिए आसपास के जंगलों में निकली बच्ची को किडनैप कर लिया गया. घरवालों ने हीरानगर पुलिस से बच्ची के गायब होने की शिकायत दर्ज करवाई. मां-बाप मारे-मारे घूमे. बदहवास. लेकिन बच्ची नहीं मिली. 7 दिन गुजर गए. 17 जनवरी को जंगल में बच्ची की लाश मिली.
इस बीच हर दिन मंदिर के भीतर भूखी बच्ची के साथ रेप हुआ. उसे नशीली गोलियां दी गईं. एक बलात्कारी को मेरठ से कठुआ ‘वासना संतुष्ट’ करने के लिए बुलाया गया. बच्ची का गला घोंटकर मारने की कोशिश हुई, कामयाबी नहीं मिली, जब लगा कि जान अभी बाकी है तो सिर पर पत्थर से वार किए गए, ताकि बचने की कोई गुंजाइश न रहे. और उस 8 साल की नन्ही सी जान ने दम तोड़ दिया.
शहर के एक हिस्से में मां-बाप और बकरवाल समुदाय ने इंसाफ की आस में प्रदर्शन किया. जानकारी बढ़ी तो प्रदर्शन और बड़े हुए. जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई. एसआईटी बन गई और जांच 9 अप्रैल को पूरी भी हो गई. गैंगरेप और हत्या के केस में 8 आरोपियों के खिलाफ मामला तय हो गया.
लगा कि अब इंसाफ बस होने को है, रास्ता तो बन ही गया है. लेकिन इस उम्मीद ने बहुत जल्द दम तोड़ दिया. जिसकी कहीं कोई उम्मीद नहीं थी वो हो गया. यानी आरोपी बलात्कारियों के पक्ष में प्रदर्शन. मतलब सच में? यकीन नहीं होता कि हम इतना नीचे भी गिर सकते हैं.
दिल दहला देने वाले मामले को अचानक मजहब के तंग खांचों में फिट करने की कोशिश होने लगी. सड़कों पर बलात्कारियों के बचाव में प्रदर्शन होने लगे. इस सबको लीड कर रहे थे पीडीपी-बीजेपी सरकार में मंत्री लाल सिंह चौधरी और चंद्र प्रकाश गंगा. हैरानी यहीं नहीं रुकती. जम्मू बार एसोसिएशन के वकील तक सड़कों पर तिरंगा लहराते उतर आए. उन्हें लगता है कि सिर्फ एक खास मजहब को निशाना बनाया जा रहा है.
हमने स्कूल में सीखा था, तिरंगे का मतलब. ये देश का झंडा है. देश, जो हर मजहब के लोगों से मिलकर बनता है. फिर ये तिरंगा बलात्कारियों के समर्थन में उतरने वाली भीड़ का झंडा कैसे हो सकता है?
इस घटना के बारे में जानना और याद रखना बहुत जरूरी है, ताकि इंसान होने का भ्रम बाकी रहे. ताकि मजहब तिरंगे की आड़ में हर शर्म न छिपाई जा सके. क्योंकि रेप से बड़ा अधर्म और रेपिस्ट से बड़ा अधर्मी शायद कोई नहीं हो सकता.
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