पलायन हमेशा से बिहार के लिए एक बड़ा समस्या रही है, लाखों कामगार रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में जाते हैं और साल में एक या दो बार ही घर आ पाते हैं. ये मजदूर महीनों तक परिवार से दूर रहकर कमाते हैं, कुछ खर्च करते हैं और बाकी घर भेज देते हैं. मां-पिता का अपने बेटे, बीवी का अपने पति और बच्चों का अपने पिता से दूर रहने का दर्द शब्दों में बयान कर पाना मुश्किल है. उतना ही मुश्किल है उस कामगार का अपना घर-परिवार छोड़कर किसी परदेस में काम करना और दिन-रात उस पल का इंतजार करना जब वह अपनों को दोबारा देख पाएगा.
ऐसा भी नहीं है कि इनका मन करता है बाहर जाकर काम करने का लेकिन ये कामगार दो वक्त की रोटी कमाने परदेस जाते हैं और वहां 400-500 रुपए की दिहाड़ी पर काम करते हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि उन्हें काम नहीं मिलता, तब किसी तरह गुजारा करते हैं. उनके दिलोदिमाग में अपने घर पर समय से पैसे भेजने की चिंता रहती है. लेकिन उससे भी बड़ी तकलीफ घर से इतनी दूर रहकर काम करने की होती है.
लालू यादव की रैली के दौरान क्विंट को मिले मोहम्मद शमीम अख्तर, जो वेल्डिंग का काम करते हैं. शमीम ने कहा कि उन्हें सभी सरकारों से ये शिकायत है कि पूरे बिहार में कहीं भी कंपनी नहीं है इसलिए 400 रुपए कमाने दिल्ली, मुम्बई और चेन्नई जैसी जगहों पर जाते हैं. लेकिन वहां भी सही तरीके से रोजगार नहीं मिलता. शमीम ने कहा कि पहले रेल का किराया 400 रुपए था, अब 1500 रुपए हो गया है. सालभर में घर आने-जाने में ही 10 हजार खर्च हो जाता है.
शमीम ने कहा कि लालू यादव के शासनकाल में महंगाई कम थी, रोजगार ज्यादा था लेकिन नीतीश-मोदी के राज में महंगाई बढ़ गई. लॉकडाउन के बाद से ही बेरोजगार बैठे हैं, उससे पहले चेन्नई में 15 हजार महीना कमाते थे. पिछले चुनाव में लालू को ही वोट पड़ा था लेकिन मोदी जी ने ईवीएम में गड़बड़ी कर दी. मोहम्मद शमीम ने बोला कि अगर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनेंगे तो रेल का किराया कम होगा, रोजगार मिलेगा. नीतीश कुमार 15 साल से मुख्यमंत्री हैं, उन्हें सोचना चाहिए था कि बिहार का आदमी बाहर जाकर क्यों काम कर रहा है? हमें हर काम आता है लेकिन बिहार में कोई कंपनी ही नहीं है जो हमें रोजगार दे.
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