2014 में यूपी में बीजेपी के जीत की हवा पश्चिमी यूपी से चली और पूर्वांचल तक आते-आते आंधी में बदल गई. मोदी के नाम और मुजफ्फरनगर कांड के कारण जबरदस्त ध्रुवीकरण हुआ, जिसका सीधी फायदा बीजेपी को मिला. लेकिन पांच साल बाद तस्वीर बदली है. ध्रुवीकरण का असर अब भी है लेकिन SP-BSP के गठबंधन के कारण 2014 वाली बात नहीं है.
गठबंधन ने यहां के मुस्लिमों और अपने परंपरागत वोटबैंक को गोलबंद किया है. इसलिए दूसरे चरण में जिन आठ सीटों पर चुनाव हो रहे हैं उनमें आधे से ज्यादा पर गठबंधन कड़े मुकाबले में है. कांग्रेस भी एक सीट पर अच्छी फाइट में है.
सेकेंड फेज में बुलंदशहर, आगरा, फतेहपुर सिकरी, अलीगढ़,हाथरस, नगीना, अमरोहा और मथुरा सीटों पर वोटिंग होगी. बीएसपी 6 सीटों पर लड़ रही है. एसपी-आरएलडी ने एक-एक उम्मीदवार उतारे हैं. बीजेपी और कांग्रेस आठों सीटों पर लड़ रही हैं. 2014 में इन सभी सीटों पर कमल खिला था.
क्या है इस बार की चुनावी गणित?
आठ में से चार सीट आगरा, हाथरस, बुलंदशहर और नगीना एससी के लिए रिजर्व हैं. पहले बात ताजनगरी आगरा की. पिछली बार दलित वोटों के कारण बीजेपी जीती, लेकिन इस बार दलितों की नाराजगी के कारण बीजेपी ने अपने सांसद रमाशंकर कठेरिया को बदलकर एसपी सिंह बघेल को उतारा है. यहां हमेशा हारने वाली बीएसपी इस बार SP के साथ आने से मजबूत स्थिति में है. 3 लाख बनिया वोटर और शहरी सीट होने का फायदा बीजेपी को हो सकता है.
क्या है जातीय समीकरण?
आगरा से ही सटा फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट है. राजपूतों का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर की वापसी ने चुनाव को दिलचस्प बना दिया है. राजबब्बर के कारण यहां बीजेपी के सामने सीट बचाने की चुनौती है. बीजेपी ने इस बार अपने सांसद बाबूलाल का टिकट काटकर राजकुमार चाहर को मैदान में उतारा है. तो वहीं BSP भी महागठबंधन के सहारे इस सीट पर काबिज होने की कोशिश में है. लेकिन यहां सभी पार्टियों का मुकाबला कांग्रेस से माना जा रहा है.
बुलंदशहर.. जो गोवंश को लेकर हुए बवाल के बाद से ही सुर्खियों में है. राष्ट्रवाद के रथ पर सवार बीजेपी को फिर से ध्रुवीकरण का भरोसा है तो वहीं बीएसपी बीजेपी की गणित बिगाड़ने में जुटी है. बुलंदशहर में 77 फीसदी हिंदू हैं तो 22 फीसदी मुस्लिम.
गोवंश बवाल के बाद मुस्लिम गठबंधन के पक्ष में दिख रहे हैं. बीजेपी की मुश्किल सिर्फ मुस्लिम वोटर्स ही नहीं बल्कि सांसद भोला सिंह की परफॉरमेंस भी है.
नगीना सीट पर करीब सवा छह लाख मुस्लिम वोटर हैं जो निर्णायक रोल निभाते हैं. सवा तीन लाख दलित वोटर भी हैं सो बीएसपी के गिरीश चन्द्र मजबूत हैं. BJP ने फिर से यशवंत सिंह को उतारा है, जिन्हें पिछली बार दलितों ने भी हाथों-हाथ लिया था.
दूसरी तरफ कांग्रेस ने पूर्व सांसद ओमवती को टिकट दिया है, जिनकी सवर्णों वोटरों में पकड़ है. अगर मुस्लिम वोट न बंटे तो बीएसपी का हाथी तेजी से दौड़ेगा.
हाथरस में BJP ने चार बार के सांसद रहे किशन लाल दिलेर के बेटे राजवीर सिंह दिलेर को टिकट दिया है. एसपी ने रामजी लाल सुमन को तो कांग्रेस ने त्रिलोकीराम दिवाकर को उतारा है. यहां जिसके साथ दलित-जाट होते हैं जीत उसकी होती है. ऐसे में गठबंधन का पलड़ा यहां भी भारी दिख रहा है. आरएलडी के साथ आने से एसपी को जाट वोटों का भी फायदा मिलेगा.
अलीगढ़ में बीजेपी और बीएसपी में कड़ा मुकाबला है. यहां 3.5 लाख मुस्लिम वोटर हैं लेकिन किसी बड़ी पार्टी ने मुसलमान को टिकट नहीं दिया. बीएसपी और कांग्रेस ने जाट उम्मीदवार उतारे हैं. बीएसपी उम्मीदवार अजीत बालियान के साथ दलित, मुस्लिम और जाट हैं.
बीजेपी ने बनिया, ब्राह्मण और ठाकुर वोटों पर पकड़ वाले सतीश कुमार गौतम को फिर से उतारा है. हालांकि उनके खिलाफ कार्यकर्ताओं में नाराजगी है. जो यहां की लड़ाई में बड़ा फैक्टर होगा.
अमरोहा लोकसभा सीट के 5 लाख मुस्लिम, 2.5 लाख दलित और 1 लाख गुर्जर वोटर जिसके पक्ष में गए, जीत उसकी. बीएसपी के दानिश अली यहां मजबूत हैं. BJP सांसद कंवर सिंह तंवर तभी जीत सकते हैं जब वो दलित वोटों को गठबंधन की तरफ जाने से रोकें और मुस्लिम वोट बंटे.
मथुरा लोकसभा सीट पर करीब चार लाख जाट वोटर हैं. ब्राह्मण, राजपूत और दलित वोट ढाई-ढाई लाख हैं. करीब डेढ़ लाख मुस्लिम हैं. आरएलडी के प्रभाव वाली इस सीट पर 2014 में हेमा मालिनी जीती थीं. मुकाबले में आरएलडी के नरेंद्र सिंह हैं. लेकिन बीजेपी से नाराज होने के बावजूद जाट हेमा मालिनी के पक्ष में है इसलिए उनका पलड़ा भारी लग रहा है.
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