‘भावांतर नहीं भाव चाहिए’
मंदसौर की धान मंडी में किसानों के एक ग्रुप ने लगभग चिल्लाते हुए हमसे ये बात कही, तो साफ हो गया कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले किसानों का गुस्सा शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी का बड़ा सिरदर्द बनने वाला है.
मध्य प्रदेश के इंदौर शहर से करीब 225 किलोमीटर और साढ़े चार घंटे का सफर तय करने के बाद क्विंट की टीम मंदसौर की धान मंडी पहुंची. सोयाबीन, प्याज और लहसुन की फसल बेचने आए किसानों ने साफ कहा कि मुआवजे, बीमा और लोन माफी के लॉलीपॉप से पॉलिटिकल पार्टियां उनका वोट नहीं हड़प पाएंगी.
बीजेपी सरकार हो या दूसरी पॉलिटिकल पार्टियां, किसी ने कुछ नहीं किया. पिछले साल (2017) को उन्होंने अपने फायदे के लिए बस सियासी मुद्दा बनाया और कुछ नहीं.
30-40 किलोमीटर दूर देवरी गांव से मंदसौर मंडी में सोयाबनी बेचने आए पन्ना लाल ने हवा में उंगली लहराते हुए हमसे ये बात कही.
पन्ना लाला 6 जून, 2017 को मंदसौर में हुए उस गोलीकांड की बात कर रहे थे जिसने किसान आंदोलन को नेशनल हेडलाइन बना दिया था. उस कांड में 6 किसानों की जान गई जिसके बाद उनका शांतिपूर्ण प्रदर्शन हिसंक आंदोलन में तब्दील हो गया.
‘फसल का सही भाव चाहिए’
लहसुन की खेप लेकर मंदसौर मंडी पहुंचे पारस चौधरी ने किसी रैली को संबोधित करने के अंदाज में कहा-
पहले अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाया अब शिवराज हमें गुलाम बना रहे हैं. इस बार बदलाव होगा.
किसानों की बातों में सब कुछ था- गुस्सा, निराशा, नाउम्मीदी और बदले का भाव. नागरी गांव से आए अनिल सोनी ने कहा-
एक आम इंसान उस तरह नहीं मरना चाहता जैसे 2017 में किसान मरे थे. लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं? एक तरफ तो सरकार हमें अन्नदाता कहती है और दूसरी तरफ जूता मारती है. मैं कांग्रेस को वोट दूंगा क्योंकि इस बार बदलाव जरूरी है.
सोनी ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की महत्वाकांक्षी भावांतर भुगतान योजना की बात छेड़ी. न्यूनतम समर्थन मूल्य और बाजार भाव में अंतर होने का नुकसान किसानों को ना हो, इसके लिए 2017 के मंदसौर कांड के बाद ये योजना शुरु की गई थी. सोनी ने कहा-
हमें ऐसी कोई योजना नहीं चाहिए. हमें सिर्फ अपनी फसल का सही भाव चाहिए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र कहते हैं कि साल 2022 तक किसानों की आमदनी दुगनी कर देंगे. लेकिन हमने जैसे ही ये सवाल किसानों से पूछा, एक साथ कई आवाजें गूंजीं- कैसे कर देंगे?
सरकार के खिलाफ खुले ऐलान और गुस्से का इजहार करते हुए ज्यादातर किसानों का कहना था कि वो या तो नोटा का बटन दबाएंगे या कांग्रेस को वोट देंगे. उनका ये भी कहना था कि अगर कांग्रेस ने भी उनकी दिक्कतें दूर नहीं की तो 2019 में वो उसका भी ‘हिसाब चुकता’ कर देंगे.
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