ADVERTISEMENTREMOVE AD

मुंबई लैंडस्लाइड: आशियाना ही नहींं जिंदगी भी 'जमींदोज'

Chembur Landslide के एक महीने बाद लोगों का सवाल- 'क्या मरने के बाद मदद मिलेगी?'

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

मुंबई में 18 जुलाई 2021 को भारी बारिश के बाद चेंबूर के न्यू भारत नगर में हुए भूस्खलन में 20 लोगों की जान चली गई और कई लोग घायल हो गए.

भूस्खलन के बाद राज्य पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे मौके पर पहुंचे और पीड़ित लोगों को पुनर्वास का आश्वासन भी दिया. वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने उन परिवारों को 2 लाख का मुआवजा देने का ऐलान किया, जिनके सदस्य की हादसे में मौत हो गई.

अब इस हादसे को एक महीने से ऊपर हो चुका है, द क्विंट ने पीड़ितों से बात कर उनकी तकलीफ जानने की कोशिश की. कई लोगों का कहना है कि उन्हें राज्य या केंद्र सरकार से ठोस मदद नहीं मिली है.

हादसे के बाद पीड़ितों की जिंदगी

21 साल की प्रियंका अग्रिहारी ने भूस्खलन में अपने पिता और 3 भाइयों को खो दिया. उनका कहना है कि जब भी वो हादसे को याद करती हैं तो कांप जाती हैं.

'शुरुआत में हमें कुछ पता नहीं लगा, हमारे किचन की छत से पानी टपक रहा था, हमने ये नहीं सोचा था कि हमारा घर ढह सकता है. कुछ देर बाद मैंने मां को किचन की स्थिति बताई तो मां ने कहा कि सब कुछ छोड़कर मैं घर से बाहर आ जाऊं.'

मेरे 3 भाई और पिता उस वक्त घर में सो रहे थे. फिर एक दम से सब कुछ तबाह हो गया, हमारा घर ढह गया. पानी इतनी तेजी से आया कि मैं भी बह गई. मेरी मां और परिवार के बाकी सदस्य वहीं फंस गए. आज भी जब वो मंजर याद आता है तो कांप जाती हूं
प्रियंका अग्रिहारी, स्थानीय, चेंबूर
ADVERTISEMENTREMOVE AD

मुंबई सिविक बॉडी के मुताबिक 22 हजार लोग 291 भूस्खलन संभावित क्षेत्र में रहते हैं. हर साल हमें ऐसी घटना देखने को मिलती है जहां भारी बारिश से कहीं दीवार गिर जाती है तो कहीं घर ढह जाते हैं. 2019 में मलाड के कुरार गांव में इसी तरह के हादसे में 31 लोगों की जान चली गई थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

निर्मला तायडे़ का घर भी भूस्खलन में नष्ट हो गया. पुनर्वास के लिए उन्हें मजबूरन मारोली चर्च के BMC की स्कूल में रहना पड़ रहा है.

वो बताती हैं- 'जब प्रशासन के लोग रजिस्टर लेकर आए थे कि किसे पुनर्वास की जरूरत है और किसे मिला है, तब मेरा बेटा काम से कहीं बाहर गया था. दूसरे दिन जब हम प्रशासन के पास गए तो उन्होंने हमें बताया कि हमारा नाम लिस्ट से हटा लिया गया है'

'क्या सरकार हमें तब बचाने आएगी जब हम ही मर जाएंगे? हम यहां इस स्कूल में काफी वक्त से रह रहे हैं, लेकिन हमें नहीं पता कि हम यहां कब तक रह सकते हैं. यहां कोई पूछने वाला नहीं है. हम क्या करें?
निर्मला तायडे़, स्थानीय, चेंबूर
ADVERTISEMENTREMOVE AD

चेंबूर की रहने वालीं ज्योति तावड़े का घर भी भूस्खलन की चपेट में आ गया था. उनका कहना है कि, 'जब भी हम अपने पुराने टूटे घरों को देखते हैं तो हमें अपने लोगों की याद आती है, अब हमें उस हादसे के बाद अस्थाई रूप से किराए के घर में रहते हैं, लेकिन ये ठोस हल नहीं है. सरकार को हमें घर के बदले घर देना चाहिए.'

वहीं प्रियंका की सरकार से मांग है कि सरकार को हादसे में पीड़ितों को घर ऐसी जगह देना चाहिए जो सुरक्षित हो.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×