यूपी में का बा..
बाबा के दरबार बा
ठहत घर बार बा..
माइ बेटी के आग में झोकत
यूपी सरकार बा..
डिस्कलेमर- सरकार जी, हमको नोटिस नहीं भेजिएगा.. इस गाने से हमारा कोई लेना देना नहीं है.. व्यक्त किए गए विचार सिंगर के अपने हैं.
पत्रकार, एक्टिविस्ट, डॉक्टर, को जेल, राजद्रोह का केस, UAPA, NSA लगाने वाली योजना की आपार सफलता के बाद अब सिंगर को पुलिस नोटिस भेज रही है. ऐसे में सवाल है कि क्या सरकार और अधिकारियों का राग अलापेंगे तो ठीक नहीं तो फिर नोटिस की बौछार कर देंगे, UAPA, NSA लगा देंगे? इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
लोक कलाकार सिंगर नेहा सिंह राठौर को उत्तर प्रदेश पुलिस ने उनके एक गाने को लेकर नोटिस दिया है. नोटिस में लिखा गया है कि उनके गीत ने समाज में वैमनस्य फैलाने का काम किया है. पुलिस ने नेहा से सात सवालों के जवाब मांगे हैं. सवाल सुनिएगा तो आप भी पूछिएगा, जनाब ऐसे कैसे? नोटिस में सवाल है कि क्या वीडियो में आप खुद हैं या नहीं?
नोटिस में पुलिस ने जज साहब बनकर फैसला सुनाते हुए कहा है कि आपके इस गीत के कारण समाज में वैमनस्यता और तनाव की स्थिती उत्पन्न हुई है.
नेहा को यह नोटिस उनके गाने "यूपी में का बा सीजन- 2" के लिए थमाया गया है. दरअसल, उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात में प्रशासन के बुलडोजर एक्शन के दौरान एक झोपड़ी में "फंसी" मां और बेटी की जलकर मौत हो गई थी. इसी घटना पर नेहा ने गीत बनाए थे. इस गाने में नेहा ने उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस अधिकारियों पर सवाल उठाए हैं.
पुलिस ने नेहा से जवाब मांगा है, जवाब न देने पर एक्शन की धमकी भी है.
लेकिन ये पहला मौका नहीं है जब सरकार पर उठते सवालों या आवाज पर पुलिस और सरकारी एजेंसी एक्टिव हुई हो. लिस्ट लंबी है.
भड़काऊ भाषण देने वालों पर एक्शन नहीं! खबर दिखाने पर दिल्ली पुलिस ने भेजा नोटिस
5 जनवरी 2023 को दिल्ली के जंतर मंतर पर हुए 'धर्म संसद' में महामंडलेश्वर स्वामी भक्त हरि सिंह ने भड़काऊ भाषण दिया. लोगों से पूछा कि अरे तुम ईसाई, मुसलमानों को कब मारोगे? सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुआ. लेकिन कमाल देखिए, हिंसा के लिए उकसाने वाला भाषण जिसने दिया या ऐसे कार्यक्रम का जिसने आयोजन किया पुलिस ने उसे नहीं बल्कि इस खबर को दिखाने वाले मॉलिटिक्स नाम की मीडिया हाउस को नोटिस भेज दिया.
BBC पर IT के सर्वे की टाइमिंग?
एक और मामला देखिए. वैलेंटाइन्स डे यानी 14 फरवरी को आयकर विभाग की टीम बीबीसी के ऑफिस गुलाब का फूल तो नहीं लेकिन सर्वे का ऑर्डर लेकर पहुंच गई. तीन दिनों तक सर्वे चलता रहा. आप कहेंगे जांच करने पर रोक है क्या? न जी न.. लेकिन टाइमिंग देखिए. बीबीसी पर ये सर्वे कथित तौर पर Transfer Pricing के लिए किया गया. लेकिन टैक्स एक्सपर्ट्स को लगता है कि ट्रांसफर प्राइसिंग नियम के उल्लंघन के लिए 'सर्वे' करना अनावश्यक है.
वरिष्ठ कॉर्पोरेट वकील एचपी रानिना ने एक समाचार चैनल से कहते हैं, "ट्रांसफर प्राइसिंग के मुद्दे पर सर्वे के लिए कोई जगह नहीं है."
आपको बता दें कि अभी हाल ही में बीबीसी ने 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' नाम से दो पार्ट में डॉक्यूमेंट्री बनाई थी. ये 2002 गुजरात दंगे और पीएम मोदी से जुड़ी थी. जिसपर केंद्र सरकार ने भारत में रोक लगा दिया था. अब अगर इतने दिनों से बीबीसी गड़बड़ी कर रहा था तो फिर कुंडली मार के काहे बैठे हुए थे?
मिड डे मील में नमक रोटी, खबर दिखाने पर पत्रकार पर FIR
सिस्टम अपने खिलाफ उठने वाली आवाज को कैसे दबाना चाहती है उसकी एक और बानगी देखिए.
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के एक प्राइमरी स्कूल में मिड डे मील में बच्चों को नमक रोटी खिलाया जा रहा था. उस खबर को उजागर करने वाले पत्रकार पवन जायसवाल पर ही मामला दर्ज किया गया था. जब देश भर में पत्रकारों ने प्रदर्शन किया और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने दखल दिया तब जाकर मिर्जापुर पुलिस ने केस से जायसवाल जायसवाल का नाम हटा दिया था. लेकिन केस के कारण वो आर्थिक और मानसिक तनाव से घिरे थे. पवन की मौत कैंसर की वजह से हो गई.
रिपोर्टिंग करने गए कप्पन पर लगाया UAPA
पुलिसिया दमन की एक और कहानी सुन लीजिए. पत्रकार सिद्दिक कप्पन. ढ़ाई साल जेल में रहना पड़ा. UAPA लगा दिया गया. अक्टूबर 2020 में उत्तर प्रदेश के हाथरस में 19 साल की दलित लड़की के साथ रेप का मामला सामने आया था. इसी दौरान सिद्दिक कप्पन इस खबर को कवर करने हाथरस जा रहे थे, तभी उन्हें 3 लोगों के साथ 5 अक्टूबर 2020 को रास्ते से गिरफ्तार किया गया था. उनके ऊपर आरोप लगाया कि वे शांति भंग करने के इरादे से हाथरस आए थे.
कप्पन के जेल जाने के बाद, उनपर UAPA और देशद्रोह की धाराओं के तहत दूसरी FIR दर्ज की गई थी.
अब ढाई साल बाद जेल से छूठने के बाद कप्पन ने बताया कि मथुरा जेल में उन्हें प्रताड़ित किया गया, बोतल में पेशाब करना पड़ा. कप्पन ने जेल से निकलने के बाद के क्विंट हिंदी से बातचीत में बताया कि पुलिस उसने ऐसे पूछताछ कर रही थी, जैसे किसी सियासी पार्टी के प्रतिनिधि हो.
मोहम्मद जुबैर को 23 दिनों तक जेल में रहना पड़ा
एक और मामला देखिए- फेक न्यूज की पड़ताल करने वाली वेबसाइट Alt News के को-फाउंडर और फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर की कहानी. मोहम्मद जुबैर को 27 जून 2022 को दिल्ली पुलिस ने उनके एक ट्वीट के लिए गिरफ्तार किया था. उन्हें 23 दिन जेल में रहना पड़ा. जुबैर पर उनके ट्वीट्स की वजह से दंगा भड़काने से लेकर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगाया गया था.
उनके ऊपर एक के बाद एक 6 FIR दर्ज किए गए, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में दर्ज सभी 6 FIR मामलों में अंतरिम जमानत दी. लेकिन एक मौका ऐसा आया जब यूपी सरकार की तरफ से पेश एडिशनल एटवोकेट जनरल ने कहा कि मोहम्मद जुबैर को ट्वीट करने से रोका जाए. तब बेल देते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने यूपी एएजी गरिमा प्रसाद से कहा था,
"यह एक वकील से कहने जैसा है कि आपको बहस नहीं करनी चाहिए. हम एक पत्रकार को कैसे कह सकते हैं कि वह एक शब्द भी नहीं लिखेगा या नहीं बोलेगा?"
अब सवाल ये है कि क्या सरकार और पुलिस के ताल में ताल मिलाएंगे तो ठीक, नहीं तो पुलिस की तैनाती कर देंगे. नेहा, कप्पन, जुबैर, पवन की तरह निशाने पर रहेंगे? कभी नोटिस, कभी FIR तो कभी जेल के नाम पर डराएंगे? लेकिन पाश ने कहा है न-
मैं घास हूं
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा.
इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
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