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जब भी बिहार (Bihar) की दूसरे राज्यों से तुलना होती है तो आपने भी यही तर्क दिया होगा या फिर सुना होगा. लेकिन क्या ऐसा वाकई में है? शायद कभी ऐसा होता होगा, लेकिन आज की हकीकत कुछ और है. हाल ही में जब NIRF यानी नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क 2023 की लिस्ट आई तो बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था की पोल खुल गई. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की ओर से जारी NIRF-2023 की रैंकिंग में बिहार की एक भी यूनिवर्सिटी या कॉलेज टॉप-100 की लिस्ट में नहीं हैं. चौंकिए नहीं. यही सच्चाई है. यही आज के बिहार की हकीकत है. कभी शिक्षा का केंद्र रहा बिहार आज हाशिए पर खड़ा है. चाहें वो स्कूली शिक्षा हो या फिर उच्च शिक्षा. लेकिन ऐसा क्यों है? इसके पीछे क्या वजह है? राजनीतिक उपेक्षा या फिर कुछ और?
टॉप-100 में बिहार के यूनिवर्सिटी-कॉलेज नहीं
देशभर में बिहार की शिक्षा व्यवस्था का स्तर गिरता जा रहा है. यही कारण है कि NIRF की टॉप 100 ओवरऑल कैटेगरी, यूनिवर्सिटी या फिर कॉलेज की लिस्ट में बिहार की एक भी संस्थान नहीं है. 500 करोड़ से ज्यादा के बजट वाला पटना यूनिवर्सिटी भी टॉप-100 संस्थानों की सूची में नहीं है.
कम से कम इस बार पटना यूनिवर्सिटी ने NIRF के लिए अप्लाई तो किया. पिछले साल तो यूनिवर्सिटी ने भाग तक नहीं लिया था. आपको जानकर ताजुब होगा कि 2015 से NIRF रैंकिंग की शुरुआत के बाद पहली बार पटना यूनिवर्सिटी ने अप्लाई किया है.
इस रैंकिंग में जगह बनाने के लिए कई पैरामीटर्स को पार करना होता है. टीचिंग, लर्निंग और रिसोर्सेज-जैसे स्टूडेंट्स की संख्या, फैकल्टी और स्टूडेंट्स का रेशियो, परमानेंट फैकल्टी की पोस्टिंग. रिसर्च एंड प्रोफेशनल प्रैक्टिस, ग्रेजुएशन आउटकम्स, इस तरह के पैरामीटर होते हैं. ऐसे में स्टेट यूनिवर्सिटी और कॉलेज पिछड़ जाते हैं.
हालांकि, NIRF की रैंकिंग में IIT पटना को ओवरऑल कैटेगरी में 66वां स्थान मिला है. पिछले साल ये 59वें स्थान पर था. वहीं इंजीनियरिंग की कैटेगरी में IIT पटना खिसक कर 41वें स्थान पर पहुंच गया है, जो पिछले साल 33वें स्थान पर था. जबकि इस श्रेणी में NIT पटना 56वें स्थान है. गौर करने वाली बात ये है कि ये सभी केंद्रीय संस्थान हैं.
फैकल्टी की भारी कमी
अब बदहाली का एक और आलम देखिए. बिहार के ज्यादातर यूनिवर्सिटी और कॉलेज फैकल्टी की कमी से जूझ रहे हैं. पटना यूनिवर्सिटी में करीब 40 फीसदी फैकल्टी की कमी है. ऐसा ही हाल अन्य यूनिवर्सिटी और कॉलेजों का है. जिसे गेस्ट फैकल्टी के जरिए पूरा करने की कोशिश की जा रही है.
2020 विधानसभा चुनाव से पहले BSUSC यानी बिहार स्टेट यूनिवर्सिटी सर्विस कमीशन ने 4,638 असिस्टेंट प्रोफेसर पदों के लिए भर्तियां निकाली थी. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2023 में पटना हाई कोर्ट ने यह कहते हुए भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी कि पहले की चयन प्रक्रिया गैरकानूनी थी और भारत के संविधान द्वारा अनिवार्य आरक्षण के लागू नियमों का पूर्ण उल्लंघन था. हाई कोर्ट ने BSUSC को फिर से भर्ती करने का आदेश दिया था.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछली बार बिहार लोक सेवा आयोग यानी BPSC ने 2014 में 3,364 पोस्ट के लिए भर्तियां निकाली थी, 1997 में पिछले विज्ञापन के लगभग 17 साल बाद. इंटरव्यू प्रक्रिया 2015 में शुरू हुई जो साल 2020 तक खिंच गई.
बता दें कि 2007 में बिहार सरकार ने यूनिवर्सिटी सर्विस कमीशन को यह कहते हुए भंग कर दिया था कि यह संस्था भ्रष्ट हो गई है. इसके 10 साल बाद यानी साल 2017 में राज्य सरकार ने एक बार फिर यूनिवर्सिटी सर्विस कमीशन बनाई.
वो आगे कहते हैं कि, 2010 से लेकर 2017 के बीच बिहार में बहुत तेजी से निजी शिक्षण संस्थान खुले, जिसकी वजह से जान-बूझकर सरकारी संस्थानों को कमजोर करने का काम किया गया.
बिहार में 17 स्टेट यूनिवर्सिटी
ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन (AISHE) की 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में 17 स्टेट यूनिवर्सिटी हैं, सेंट्रल, डीम्ड, प्राइवेट जैसी यूनिवर्सिटी को मिला दें तो ये संख्या 37 हो जाएगी. वहीं बिहार में करीब 1035 कॉलेज हैं. बिहार में 18-23 वर्ष की आयु के एक लाख युवाओं पर महज 8 कॉलेज हैं. जबकि कर्नाटक में सबसे ज्यादा 62 कॉलेज हैं. वहीं राष्ट्रीय औसत 31 है. आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे बिहार का युवा पढ़ेगा और बढ़ेगा.
बिहार के कॉलेजों के सेशन भी काफी पीछे चल रहे हैं. मगध यूनिवर्सिटी की बात करें तो 2019 में मास्टर्स में एडमिशन लेने वाले छात्रों की डिग्री अब तक कंप्लीट नहीं हुई है. ऐसा ही हाल ग्रेजुएशन के छात्रों का भी है. सेशन लेट होने की वजह से छात्रों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
बिहार का शिक्षा बजट कितना है?
अब जरा बजट की बात करते हैं. बिहार में शिक्षा के बजट में साल दर साल बढ़ोतरी देखने को मिली है. वित्त वर्ष 2023-24 में शिक्षा के लिए 40,450.91 करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया है. इससे पहले वित्त वर्ष 2022-23 में 39,191.87 करोड़ का प्रावधान किया गया था.
वहीं वित्त वर्ष 2021-22 में शिक्षा के लिए 38,035.93 करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया था. इससे पहले 2020-21 में 35,191.05 करोड़ के बजट प्रावधान किया गया था. वहीं वित्त वर्ष 2019-20 में 34,798.69 करोड़ का प्रवाधान किया गया था. लेकिन जब प्रदेश के कॉलेज-यूनिवर्सिटी की हालत पर नजर पड़ती है तो लगता है कि ये आंकड़े महज कागजी हैं.
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट की माने तो, पिछले 5 साल में बिहार के सभी परंपरागत विश्वविद्यालयों की आधारभूत संरचना और दूसरी सुविधाओं के लिए 3,293.83 करोड़ का मिला था. यूनिवर्सिटी को यह राशि बिहार सरकार, UGC और बिहार राज्य उच्चतर शिक्षा परिषद की तरफ से मुहैया कराई गई थी. विश्वविद्यालयों की तरफ से इस राशि का खर्च नहीं किया जा सका. आखिर में उन्हें इस फंड को सरेंडर करना पड़ा.
कैसे सुधरेगी उच्च शिक्षा व्यवस्था?
अब जरा समझने की कोशिश करते हैं कि बिहार की उच्च शिक्षा व्यवस्था को कैसे दुरुस्त किया जा सकता है. इसको लेकर हमने पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. नवल किशोर चौधरी से बात की. क्विंट हिंदी से बातचीत में उन्होंने कहा कि, सबसे पहले क्वालिफाइड शिक्षकों की भर्ती करनी चाहिए, जो कि कई सालों से नहीं हुई है.
इसके साथ ही वो कहते हैं कि इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करना होगा. कॉलेजों में बिल्डिंग की कमी है. लैब और लाइब्रेरी की व्यवस्था सही नहीं है. इन सब चीजों में सही ढंग से इन्वेस्टमेंट नहीं किया जा रहा है. तीसरा प्वाइंट वो बताते हैं कि एक मजबूत एडमिनिस्ट्रेशन का होना भी बेहद जरूरी है. जिससे यूनिवर्सिटी और कॉलेज सही तरीके से चल सके.
बहरहाल, बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था को ट्रैक पर लाने के लिए एक मजबूत राजनीतिक इच्छा शक्ति की भी जरूरत है. आखिरकार इस व्यवस्था की कमान तो सरकार के हाथों में ही है. ऐसे में प्रदेश के मुखिया से लेकर शिक्षा मंत्री को इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए. तभी छात्रों का पलायन रुकेगा और बिहार शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी बन पाएगा.
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