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मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान हुआ रेप, धमकियों से लड़ाई अब तक जारी है

बिना इंसाफ के ही महिलाओं के साथ की गई दबंगई, रेप, अत्याचार की कई कहानियां दफन हो गईं

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आफरीन (बदला हुआ नाम) 2013 के सितंबर में हुए मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान अपने बेटे के साथ घर में अकेली थीं. अपने बच्चे को लेकर गांव के पीछे खेतों में अपनी जान बचाने के लिए भागीं, थोड़ी ही दूर जा कर जब वो थक गयीं तो उन्होंने कुछ देर रुकने का फैसला किया, लेकिन तभी उन्हीं के गांव के 3 लोगों ने उन्हें दबोच लिया.

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आरोप है कि उन लोगों ने अाफरीन का बलात्कार करने की कोशिश की, और अाफरीन को धमकाया कि अगर वो चिल्लाईं तो उसके बेटे को मार देंगे, और अगर उसने अपने पति को बताया तो वो उसे छोड़ देगा और उसकी बदनामी होगी.

मुजफ्फरनगर दंगो में पुरुषों ने अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए महिलाओं का रेप किया था. कई आरोप लगे, लेकिन सिर्फ 7 केस ही दर्ज हो पाए. इन 7 शिकायतों में सभी पीड़ित महिलाएं मुसलमान थीं और सारे आरोपी हिंदू. आज उन 7 दर्ज मामलों में अाफरीन का ही केस कोर्ट में है. लेकिन अाफरीन का कहना है कि ये केस कहीं जाता नहीं दिख रहा है.

अभी ये केस मुजफ्फरनगर कोर्ट में है, अभी तक कोई जांच नहीं हुई है. सिर्फ एक बार मैंने CrPc की धारा 164 के तहत अपना बयान दर्ज कराया. लेकिन उसके बाद मेरे पास पूछताछ के लिए कोई नहीं आया.
अाफरीन, रेप पीड़िता
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आरोपी समझौते के लिए दबाव बना रहे हैं, पैसे की पेशकश कर रहे हैं. हालांकि, आफरीन ने इसे ठुकराते हुए हार नहीं मानने की ठानी है. दूसरी तरफ एक और रेप पीड़िता जिसका केस कोर्ट में है वो हैं शमा (बदला हुआ नाम). उसने कहा कि उसने दबाव में आकर अपना बयान वापस लिया था लेकिन अब वो इस केस को खोल फिर लड़ना चाह रही हैं.

शमा बताती हैं कि जिन्होंने पहले इस केस को फिर खोलने के लिए मुझे प्रोत्साहित किया था आज उन्होंने साथ छोड़ दिया है. यहां तक कि वकील भी अब उसकी नहीं सुनते.

कुछ लोग मेरे वकील के पास गए थे, उन्हें मेरी बात सुननी चाहिए थी, क्योंकि मैं शिकायतकर्ता हूं, लेकिन वकील को मेरे खिलाफ भड़काया गया.
शमा, रेप पीड़िता

आज वो पुनर्वास कॉलोनी में रह रही हैं और अपने पुरानी और सुलझी हुई जिंदगी को याद करती हैं, जो अब नहीं रही.

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मुजफ्फरनगर दंगे को आज 5 साल बीत चुके हैं, लेकिन उन 7 रेप केस और गैंग रेप केस में जो भी आरोपी थे उनकी गिरफ्तारी अब तक नहीं हुई है. जहां एक तरफ अाफरीन का केस अब तक कोर्ट में ही हैं, तो दूसरी तरफ शमा हैं जिन्हें अपना केस फिर से खुलवाने में दिक्कतें आ रही हैं. ये महिलाएं अब भी इंसाफ का इंतजार कर रही हैं जिन्हें उस सांप्रदायिक दंगे की भारी कीमत चुकानी पड़ी है, एक ऐसा दंगा जिसने पूरे उत्तर भारत को हिला कर रख दिया था.

(* बदला हुआ नाम)

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