देश की जीडीपी में अहम योगदान है किसानों का, युवाओं का. लेकिन दोनों की समस्याओं को लेकर सरकार की गंभीरता कम दिख रही है. ऐसा इसलिए, क्योंकि उसके पास बेरोजगारी और किसानों की परेशानी से जुड़े अहम आंकड़े ही नहीं हैं.
अब जरा गौर से समझिए मामला. बेरोजगारी दूर करने के लिए जनता के सामने बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं. लेकिन संसद में सरकार से जब सवाल पूछा जाता है, तो वो सटीक जवाब नहीं दे पाती कि देश में बेरोजगारों की संख्या कितनी है.
देश में रोजगार के वास्तविक आंकड़ों को लेकर मार्च में केंद्रीय श्रम और रोजगार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष कुमार गंगवार से संसद में सवाल पूछा गया.
गंगवार ने संसद में कहा कि भारत सरकार ने साल 2016 से देश में रोजगार के असल आंकड़ों को जानने के लिए कोई भी देशव्यापी सर्वे नहीं कराया है.
इसी मार्च महीने में, लोकसभा में सांसद दुष्यंत चौटाला ने पिछले 3 साल में जाॅब क्रिएशन से जुड़े सवाल पूछे थे. संतोष कुमार गंगवार दोबारा इस सवाल के जवाब में 2016-17 और 2017-18 के बेरोजगारी के आंकड़े नहीं पेश कर पाए. साथ ही उन्होंने बताया कि
नरेंद्र मोदी सरकार ने नौकरी देने का कोई टारगेट तक तय नहीं किया है.
अब जरा खेती-किसानी की हालत देखिए. साल 2016 के बाद सरकार के पास आत्महत्या करने वाले किसानों का कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है.
16 मार्च को कृषि राज्यमंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने राज्यसभा को बताया कि कृषि कर्ज के कारण किसानों की आत्महत्या के बारे में साल 2016 के बाद से कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. गृह मंत्रालय ने अभी तक इसके बारे में कोई रिपोर्ट जारी नहीं की है.
आत्महत्या जैसी घटनाओं को किसानों की आय बढ़ाकर ही कम किया जा सकता. केंद्र सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है. लेकिन आंकड़ों के बिना सरकार किसानों के हालात कैसे पता लगाएगी?
अर्थव्यवस्था, विकास की बात करने वाली सरकार के पास आंकड़ों का मौजूद ना होना सच्चाई से मुंह मोड़ने जैसा है. ऐसे में देश की हालत का सटीक आंकलन भी मुश्किल है. क्या सरकार बेरोजगारी, किसानों की समस्या को गंभीर मानने की हालत में नहीं है?
सरकार को अपना मैथ्स और स्टैट ठोस करने की जरूरत है जिससे देश के लाखों बेरोजगार और बेहाल किसान पास हो जाएं!
कैमरा: शिव कुमार मौर्य
एडिटिंग: आशुतोष भारद्वाज
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