(Union Budget 2023 से जुड़े सवाल? 3 फरवरी को राघव बहल के साथ हमारी विशेष चर्चा में मिलेंगे सवालों के जवाब. शामिल होने के लिए द क्विंट मेंबर बनें)
देश की जनता को केंद्रीय बजट (Union Budget 2023) का बेसब्री से इंतजार है. बिहार (Bihar) के लोग भी टकटकी लगाए बैठे हैं. उम्मीदें परवान चढ़ रही है. सबकी जुबान पर एक ही सवाल है. इस बार मैडम सीतारमण (Nirmala Sitharaman) के पर्स से बिहार के लिए क्या निकलेगा? देश के सबसे गरीब राज्य को केंद्र से बूस्टर डोज की दरकार है, लेकिन प्रदेश में अब नहीं डबल इंजन की सरकार है. ऐसे में क्या बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलेगा? क्या पटना यूनिवर्सिटी के भाग्य खुलेंगे? या फिर मायूसी हाथ लगेगी.
क्या बिहार को मिलेगा विशेष राज्या का दर्जा?
बजट केंद्र का लेकिन चर्चा बिहार की. ऐसा इसलिए क्योंकि नीति आयोग की 2021 बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार देश का सबसे गरीब राज्य है. बिहार की 51.91 प्रतिशत आबादी गरीब है.
नीति आयोग की SDG इंडिया इंडेक्स 2020-21 रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार 52 अंकों के साथ आखिरी पायदान पर है. बिहार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021-22 के मुताबिक, प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय 50,555 रुपए है, जबकि देश का 86,659 रुपए है. ऐसे में बिहार को इस बदहाली से निकालने के लिए केंद्र की मदद की दरकार है. बिहार के मुखिया नीतीश कुमार कई बार विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग कर चुके हैं.
"बिहार में पिछले इतने वर्षों से डबल इंजन की सरकार थी लेकिन प्रदेश को कुछ नहीं मिला. चूंकि अगले साल चुनाव होने हैं, ऐसे में केंद्र सरकार कुछ उम्मीदें जगा सकती है. इस बार का बजट लोकलुभावन होगा."डीएम दिवाकर, पूर्व निदेशक, एएन सिन्हा सामाजिक अध्ययन संस्थान
अब जरा आपकों आंकड़ों से समझाते हैं कि बिहार को केंद्र की मदद की इतनी जरूरत क्यों है? गरीबी तो एक वजह हैं. इसके अलावा कृषि, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बिहार पीछे है.
क्विंट हिंदी से बातचीत में बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स के उपाध्यक्ष एनके ठाकुर कहते हैं कि, बिहार में तीन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा संभावनाएं हैं. एक एग्रीकल्चर, दूसरा टूरिज्म और तीसरा एजुकेशन. इन क्षेत्रों के विकास से यहां के लोगों को रोजगार भी मिलेगा और साथ ही निवेश भी आएगा."
'कृषि के विकास से बिहार का विकास'
सबसे पहले बात कृषि की करते हैं. बिहार में कृषि आय का महत्वपूर्ण स्रोत है. प्रदेश की 76% आबादी कृषि गतिविधियों से जुड़ी हुई है. लेकिन देश में उत्पादकता के पैमाने पर बिहार बहुत नीचे है. फसल उत्पादन के मामले में बिहार टॉप 3 राज्य छोड़िए टॉप 10 राज्यों में भी नहीं है. क्विंट हिंदी से बातचीत में प्रोफेसर डीएम दिवाकर कहते हैं कि,
''अगर बिहार का डेवलपमेंट होना है तो खेती का डेवलपमेंट पहला काम होना चाहिए. और उसके लिए एक मुश्त बजटीय प्रावधान हो, जिससे कृषि क्षेत्र में सरकारी निवेश हो सके."
इसके साथ ही वो कहते हैं कि अगर सरकार किसान-मजूदर की भलाई चाहती है तो बिहार को कृषि के विकास के लिए डेढ लाख करोड़ का फंड मिलना चाहिए.
पिछले बजट में केंद्र सरकार ने गंगा किनारे ऑर्गेनिक खेती का ऐलान किया था. बिहार के कई जिलों से होकर गंगा नदी गुजरती है, ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा मिलने से बिहार की अर्थव्यवस्था को और मजबूती मिल सकती है. ऐसे में बिहार को ध्यान में रखते हुए इस बार के बजट में विशेष प्रावधान करना चाहिए.
जल प्रबंधन पर भी देना होगा ध्यान
बिहार के 38 जिलों में से लगभग 15 जिले बाढ़ क्षेत्र में आते हैं जहां हर साल बाढ़ से करोड़ों की संपत्ति, जान-माल, आधारभूत संरचना और फसलों का नुकसान होता है. वहीं पिछले साल प्रदेश सरकार ने 11 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया था. ऐसे में जल प्रबंधन के लिए भी बजटीय प्रावधान किए जाने चाहिए.
"बिहार के पास सबसे उपजाऊ भूमि है और सबसे अधिक पानी का भंडार है. पानी का सही से प्रबंधन नहीं होने से कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे की समस्या होती है. ऐसे में जलप्रबंधन के लिए कम से कम ढाई लाख करोड़ का बजटीय प्रावधान होना चाहिए."डीएम दिवाकर, पूर्व निदेशक, एएन सिन्हा सामाजिक अध्ययन संस्थान
बिहार में पलायन की समस्या
बिहार में पलायन का सबसे बड़ा कारण है- रोजगार की कमी. 2011 की जनगणना के हिसाब से देश के 14 प्रतिशत माइग्रेंट बिहार से ताल्लुक रखते हैं. इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पॉपुलेशन स्टडीज के 2020 में किए गए एक शोध के मुताबिक बिहार की आधी जनसंख्या का पलायन से सीधा रिश्ता है.
बेरोगारी दर की बात करें तो Centre for Monitoring Indian Economy की रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर 2022 में देश में बेरोजगारी दर 8.30 फीसदी रही. जबकि, बिहार में बेरोजगारी दर इससे कहीं ज्यादा 19.1 फीसदी थी. ऐसे में बिहार में सार्वजनिक क्षेत्र में पर्याप्त वित्तीय निवेश की जरूरत है.
जानकार बताते हैं कि विशेष राज्य का दर्जा न केवल 90 फीसदी अनुदान के लिए बल्कि करों में विशेष छूट के प्रावधान से विकास योजनाओं के लाभ और निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाने में भी मददगार होगा. प्रोफेसर दिवाकर कहते हैं कि "बिहार में कृषिजनित उद्योग का विकास होना चाहिए. इसके लिए विकेंद्रित औद्योगिकरण नीति के तहत प्रखंड स्तर पर उद्योग केंद्र बनाए जाने चाहिए. इसके साथ ही जिला स्तर पर जो उद्योग केंद्र हैं उनको संगठित करने की जरूरत है."
शिक्षा क्षेत्र में भी निवेश की जरूरत
रोजगार की बात शिक्षा के बिना नहीं हो सकती. नीति आयोग की स्कूली शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक के दूसरे संस्करण के आंकड़ों के मुताबिक, बड़े राज्यों की सूची में बिहार 19वें पायदान पर है. वहीं शिक्षा मंत्रालय की 2020-21 की परफॉर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स में बिहार 773 अंकों के साथ 27वें पायदान पर है. साल 2022 में NIRF की रैंकिंग में टॉप 100 संस्थानों में बिहार की एक भी यूनिवर्सिटी और कॉलेज का नाम तक नहीं है. सीएम नीतीश कुमार ने खुद पीएम मोदी से पटना यूनिवर्सिटी को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग की थी. लेकिन इस दिशा में अभी अब तक कुछ नहीं हुआ.
"बिहार में जो केंद्रीय विश्वविद्यालय, IIT, IIM और मेडिकल कॉलेज खोले गए हैं उसके विकास के लिए अतिरिक्त फंड मुहैया कराने की जरूरत है. जिससे कि शिक्षकों की कमी या अन्य समस्याओं को दूर किया जा सके."डीएम दिवाकर, पूर्व निदेशक, एएन सिन्हा सामाजिक अध्ययन संस्थान
इसके साथ ही वो कहते हैं कि स्किल डेवलपमेंट सेंटर्स भी खोले जाने चाहिए, जिससे की लोगों को रोजगार मिलने में आसानी हो.
हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर देना होगा जोर
स्वास्थ्य की बात करें तो बिहार की सेहत ठीक नहीं है. साल 2019-20 के लिए नीति आयोग ने राज्य स्वास्थ्य सूचकांक का चौथा संस्करण जारी किया था. "स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत" नाम से जारी इस रिपोर्ट में 19 बड़े राज्यों की सूची में बिहार 18वें पायदान पर है. बिहार के पटना में एक मात्रा AIIMS है जो चल रहा है. वहीं साल 2015 में सरकार ने दरभंगा में AIIMS खोलने का ऐलान किया था. 8 साल बीत जाने के बाद भी निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है.
प्रोफेसर डीएम दिवाकर बताते हैं कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में प्रति 1 लाख जनसंख्या पर 12 हेल्थ सेंटर हैं, जो कि बहुत कम है. चाहिए की इसकी तादाद बढ़ाई जाए. प्रखंड स्तर पर एक रेफरल हॉस्पिटल होना चाहिए. वहीं हर गांव में एक हेल्थ सेंटर होना चाहिए. इसके लिए केंद्र सरकार को समुचित धन आवंटित करनी चाहिए."
पर्यटन में निवेश की आपार संभावनाएं
बिहार में पर्यटन की भी आपार संभावनाएं हैं. पर्यटन सेक्टर राज्य के आर्थिक विकास में काफी अहम योगदान दे सकती है. बोधगया, राजगीर, वैशाली, नालंदा और पावापुरी को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की जरूरत है. जिससे की बिहार में पर्यटन के साथ-साथ रोजगार के भी अवसर पैदा हो. बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स के उपाध्यक्ष एनके ठाकुर वाराणसी का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि,
"इस साल वाराणसी में गोवा में ज्यादा बाहर के टूरिस्ट आए. आज पूरे वाराणसी की इकनॉमी बदल गई है. अगर केंद्र सरकार भी थोड़ा मदद करे तो पर्यटन के विकास से बिहार की अर्थव्यवस्था भी बदल सकती है."
इन सब बातों का मूल यही है कि राजनीति से परे केंद्र सरकार को बिहार की बेहतरी के लिए बजट में विशेष प्रावधान करने की जरूरत है. इसके लिए प्रदेश के बीजेपी नेताओं को भी सरकार के सामने आवाज उठानी चाहिए. वहीं राज्य सरकार का फोकस केंद्र की योजनाओं के बेहतर इंप्लिमेंटेशन पर होना चाहिए.
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