क्विंट हिंदी ने अपने पाठकों से, ‘लोनबंदी’ को लेकर मार्च की शुरूआत में जो आशंका जताई थी वो महीने के खत्म होते-होते सच साबित होती दिखती है.
बैंक और इंडस्ट्री दोनों ही LOU बैन के बाद संकट से जूझ रहे हैं. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अब वित्त मंत्रालय ने आरबीआई से कहा है कि वो नियमों में कुछ ढील देने के बारे में सोचे.
रिजर्व बैंक ने नीरव मोदी कांड के बाद इसी महीने लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LOU) और लेटर ऑफ कंफर्ट (LOC) पर बैन लगाया था. हीरा कारोबारी नीरव ने कुछ बैंक अधिकारियों के साथ मिलकर LOU और LOC के जरिए ही पंजाब नेशनल बैंक को 13 हजार करोड़ का चूना लगाया था.
पीटीआई सूत्रों के मुताबिक, कई कॉर्पोरेट और बैंकों ने LOU बैन से होने वाली परेशानी को लेकर वित्त मंत्रालय में अर्जी दी है. इसमें कहा गया है कि LOU से LOC यानी लेटर ऑफ क्रेडिट पर शिफ्ट होने से कारोबार पर होने वाला खर्च भी बढ़ रहा है.
फरवरी के आखिरी हफ्ते में नीरव मोदी और मेहुल चोकसी ने पंजाब नेशनल बैंक को ठगी के जरिए करीब 13 हजार करोड़ का चूना लगाया और विदेश फरार हो गए. हफ्ते भर में इतने घोटाले सामने आ गए हैं कि नीरव मोदी एंड मेहुल चोकसी के घोटाले की कहानी दबने से लगी है.
एक के बाद एक घोटालों की झड़ी लग गई, कानपुर के रोटोमैक पेन वाले कोठारी ने बैंक ऑफ बड़ौदा में 3600 करोड़ रुपए घपला कर दिया, फिर दिल्ली के द्वारका दास ज्वैलर की फाइल खुल गई. फिर कानपुर की टेक्सटाइल कंपनी वाले एक एम अग्रवाल जी 16 बैंकों के 4000 करोड़ रुपयों से मालामाल हो गए और बैंक ठनठनगोपाल.
घोटालों के इस आक्रमण से सरकार बचाव कर ही रही थी कि पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम के पुत्र कार्ति चिदंबरम कवच के तौर पर मिल गए. अब इन दिनों कार्ति हेडलाइन में हैं लिए नीरव मोदी और मेहुल चौकसी की हेडलाइन पीछे जा रही है.
हालांकि बीच बीच में एजेंसियों भी नीरव मोदी और मेहुल चोकसी की संपत्ति जब्ती का आंकड़ा बढ़ाए चले जा रही हैं. इन सब बातों के चक्कर में कई ऐसे मुद्दें और बातें हैं जिनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं गया है.
इसलिए ऐसे बेहद अहम मुद्दे हम आपके सामने रख रहे हैं. उन पर ध्यान दीजिएगा और क्योंकि उनके जवाब मिलना बाकी हैं
रिजर्व बैंक बताए अरबों के लेटर (LoU) में कितना रुपया फंसा?
बैंकों की तरफ से दिया जाने वाला लेटर ऑफ अंडरटेकिंग या जिसको हम बैंक गारंटी कहते हैं वो सिर्फ नीरव और मेहुल के केस में हमको बताया गया है कि अब 12700 करोड़ रुपये शायद पंजाब नेशनल बैंक के डूब गए होंगे. हालांकि इसके बारे में जिस तरह से खबरें आ रही हैं उससे लगता है कि फ्रॉड बीस हजार करोड़ तक पहुंचेगा. ये तो एक बैंक के एक ब्रांच के एक कस्टमर की बात है, जाहिर है इस बैंक और दूसरे बैंकों ने और लोगों को भी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग दी होगी. किसी को अभी तक पता नहीं है कि भारत के बैंकों से लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग के जरिए कितनी रकम उठाई गई है? दूसरे सरकारी बैंकों से लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग का हिसाब किताब कहा हैं? सरकार और रिजर्व बैंक को साफ साफ बताए.
इसके अलावा बैंक गारंटी, लेटर ऑफ क्रेडिट, टर्म लोन और वर्किंग कैपिटल ना जाने क्या क्या बैंकों ने बांटा है. वो भी डायमंड या जेम्स एंड ज्वैलरी जैसी बेहद जोखिम वाली इंडस्ट्री को. तो तमाम जोखिम वाले सेक्टर को सरकारी बैंकों ने कितने पैसे लुटा दिए हैं ये जवाब भी अब बैंक दे डालें या फिर रिजर्व बैंक और सरकार दे.
इसके अलावा कई और सवाल हैं-
- रिस्की लोन पर कितनी सिक्योरिटी ली गई?
- आधी-अधूरी सिक्योरिटी पर कर्ज बांटे
घोटाले पर घोटाले फिर रिजर्व बैंक चुप क्यों?
आरबीआई की चुप्पी समझ नहीं आ रही है. पीएनबी घोटाले के लेकर तमाम घोटालों पर बैंकिंग रेगुलेटर चुप है. वित्त मंत्रालय कहता है कि 50 करोड़ रूपये के ऊपर के जितने कर्ज हैं, उसकी तुरंत जांच करने, 15 दिनों में नया निगरानी सिस्टम और सिस्टम को दुरस्त करने को कहा गया है. हालांकि ये बातें आरबीआई को कहनी चाहिए थीं क्योंकि मुख्य तौर पर निगरानी करना उसका अधिकार क्षेत्र है?
इस तरह आरबीआई की चुप्पी कई सवाल उठा रही है और सिस्टम में बैचेनी बढ़ा रही है.
अब देखिए ध्यान देने वाली बात है कि पिछले 7 साल महीने से डिप्टी गर्वनर का पद खाली है. इनका काम बैंकों की निगरानी होता है. पीएनबी घोटाले के बाद जाकर अब इस पद को भरने की कोशिश शुरू हुई है.
लेकिन सिर्फ रिजर्व बैंक ही नहीं बैंकों पर चौतरफा यानी 4 तरफ से निगरानी होती है, फिर भी घोटाले जाने कैसे छिप जाते हैं. रिजर्व बैंक के अलावा बैंकों का बोर्ड ऑफ डायरेक्टर, वित्तमंत्रालय और विनोद राय की अगुआई में बना बैंक बोर्ड ब्यूरो. लेकिन फिर भी बैंक घोटालों की महामारी से बच नहीं पा रहे हैं.
एक कदम आगे और दो कदम पीछे
घोटाले तभी रुकेंगे जब निगरानी एजेंसियां घोटालेबाजों से ज्यादा तेज एक्शन में रहेंगे. अब जैसे जो लोग बैंक का पैसा लेकर भाग जाते हैं, उनको पकड़ने का तरीका सेबी ने सोचा था. तरीका था कि लिसल्टेड कंपनियों ने जो लोन ले रखा है अगर वो डूबा है तो इस बारे में सेबी बैंकों से जानकारी ले सकता है. बैंकों को बताना होगा कि इस लिस्टिड कंपनी में पैसा डूब गया है और वसूली नहीं हो पा रही है. 1अक्टूबर 2017 को ये निर्देश लागू होना था, लेकिन उससे एक दिन पहले ये वापस ले लिया गया.
पीएनबी घोटाले के बाद टूटी बैंकों की नींद
साल-साल भर पहले से पीएसयू में ये तय हो गया था कि कौन डिफॉल्टर हैं और उनके खिलाफ कोर्ट में जाना है. लेकिन पीएनबी घोटाले के बाद अब बैंक एफआईआर दर्ज कराने जा रहे हैं. पहले से ही घोटालेबाजों पर कार्रवाई हो सकती थी.
क्या बैंक लोनबंदी की ओर बढ़ रहे हैं?
इन सब का साइड इफेक्ट ये हो रहा है कि बैंक एक तरह की लोनबंदी लागू करना शुरू हो गए हैं. इसके अलावा बैंक वसूली करने की बजाए डिफॉल्टरों का हजारों केस को NCLT के हवाले कर रहे हैं. इस तरह बैंक अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं, लेकिन इन सबका बड़ा नुकसान SME और छोटे कारोबारियों को होता है.
आरटीआई के जरिए पता चला है कि 9 हजार से ज्यादा ऐसे ‘विलफुल डिफॉल्टर’ हैं, जिनके पास 1 लाख 11 करोड़ रुपये फंसे हुए हैं.
इसमें स्टेट बैंक और पंजाब नेशनल बैंक समेत तमाम सरकारी बैंकों को ऐसे लोगों ने चूना लगाया है जो हैसियत होने के बाद भी लोन नहीं लौटा रहे हैं. बैंकों को मालूम होने के बावजूद इन डिफाल्टरों से वसूली की ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई.
हमारे सामने जो बातें आईं उनमें ये था कि पीएनबी घोटाले में 5-6 हजार करोड़ की संपत्ति जब्त की गई, लेकिन फोटो हीरों की नहीं, घड़ियों और कारों की दिखाई गई और इन संपत्तियों को जब बेचने जाएंगे तो पता नहीं कितने की बिकेगी.
इतना सब होने के बावजूद अभी तक पीएनबी घोटाले में टॉप मैंनेजमेंट पर कार्रवाई नहीं हुई, सीबीआई ने सिर्फ जानकारी लेने के लिए पूछताछ की है. इन सब पर सरकार कार्रवाई नहीं कर रही बल्कि अपने को बचाते हुए दिख रही है. साथ ही कह रही है कि आरबीआई ने अपना काम ठीक से नहीं किया है.
देश में बैंकों से फ्रॉड में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. 2014 से अब तक तीन सालों में फ्रॉड बढ़े हैं लेकिन इन्हें रोकने के लिए क्या हुआ है किसी को पता नहीं. जाहिर है ये तरीके असरदार नहीं हैं तभी तो फ्रॉड बढ़ रहे हैं. इस ग्राफ पर नजर डालिए
पीएसयू बैंकों के डूबे हुए कर्जों की रकम और भी बढ़ कर सामने आ सकती हैं, लेकिन डूबे हुए कर्जों की एक अलग समस्या है, इसके अलावा एजेंसियों की इतनी धमाचौकड़ी का क्या नतीजा निकलेगा?
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