ADVERTISEMENT

23 लाख जातियों पर पॉलिटिक्स के संकेत BJP के लिए कोई अच्छे नहीं हैं

BJP के झुनझुने से करोड़ो लोगों का दिल जीतना आसान होगा क्या?

Updated

रोज का डोज

निडर, सच्ची, और असरदार खबरों के लिए

By subscribing you agree to our Privacy Policy

ADVERTISEMENT

वीडियो एडिटर- मो. इरशाद आलम

कैमरापर्सन- शिव कुमार मौर्या

क्या आपको पता है अपने देश में कितनी जातियां हैं?
46 लाख !

जी हां, 46 लाख. ये चौंकाने वाला आंकड़ा 2011 के सेन्सस के बाद सामने आया जिसकी रिपोर्ट पब्लिश ही नहीं की गई.

मान लें कि इसमें से आधी आबादी ओबीसी की है, तो हम मान सकते हैं कि देश में ओबीसी के करीब 23 लाख जाति समूह हैं. इतनी जातियों का वर्गीकरण, वो भी इस आधार पर कि इनमें से सामाजिक और आर्थिक रूप से ज्यादा पिछड़ा कौन है? संभव लगता है कि ये आसानी से हो पाएगा?

पीएम ने क्या संकेत दिए हैं?

लेकिन ऐसा होना है. इसके संकेत हमें प्रधानमंत्री के बागपत में दिए भाषण से मिले. योजना के मुताबिक ओबीसी की कैटेगरी में एक अलग से कैटेगरी बनेगी- एमबीसी की. एमबीसी यानी मोस्ट बैकवर्ड क्लास. ओबीसी का 27 परसेंट वाला कोटा वही रहेगा. लेकिन उसमें एक नई कैटेगरी बनेगी,एमबीसी की और 27 परसेंट रिजर्वेशन के एक हिस्से का फायदा सिर्फ इसी नई एमबीसी कैटेगरी को मिलेगी.

ADVERTISEMENT

एक कमीशन बना है जिसकी रिपोर्ट जल्द आने वाली है. उसमें सुझाव होंगे और उसके बाद ओबीसी कैटेगरी में एक और एमबीसी की कैटेगरी बनेगी. अनुमान है कि 2019 के चुनाव से पहले इसी लागू कर ही दिया जाएगा.

इसमें राजनीति कहां है?

अब सवाल उठेगा कि इसमें राजनीति क्या है. बहुत आसान जवाब. देश की कुछ जानी मानी पार्टियां हैं जिनको ओबीसी की पार्टी मानी जाता है. अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और लालू यादव की आरजेडी इसी तरह की पार्टियां मानी जाती हैं. माना जाता है कि इन पार्टियों को पूरे ओबीसी ब्लॉक का सपोर्ट मिलता है.

बीजेपी का शायद ये कैलकुलेशन है कि ओबीसी ग्रुप में ही बंटवारा हो जाता है तो इन पार्टियों का रुतबा कम होगा और इसका फायदा बीजेपी को ही होगा. क्या इस फैसले से सच में बीजेपी को बड़ा फायदा होगा. क्या 2019 चुनाव में ये फैसला गेम चेंज करने वाला है. मेरे हिसाब से ऐसा मानना बात को काफी साधारण बनाना होगा. इसकी कई वजह हैं.

  • इस फैसले को लागू करने में बड़ी मुश्किलें आने वाली हैं. 23 लाख जातियां का इस आधार पर कि कौन ज्यादा बैकवर्ड और कौन कम बैकवर्ड है आसान नहीं होने वाला है. अगर ये क्लासिफिकेशन सही नहीं होता है तो उन ग्रुप्स के गुस्से का अंदाजा लगाइए जिन्हें लगेगा कि उनके मजबूत दावे को नकार दिया गया है.
  • आंकड़े बताते हैं कि ओबीसी ग्रुप में आने वाली जातियां अलग-अलग पार्टियों के लिए वोट करती रही हैं. उदाहरण के लिए बिहार के तीन बड़े ओबीसी ग्रुप—यादव, कुर्मी और कोइरी- का राजनीतिक रुझान कई सालों से अलग रहा है. यही ट्रेंड आगे भी रहने वाला है. ये मान लेना कि एक फैसले से ये ट्रेंड पूरी तरह से बदल जाएगा, ये सही नहीं है.
  • इस फैसले के लागू होने से एक और खतरा है. ये संभव है कि सारी दबंग ओबीसी जातियां इस फैसले के खिलाफ एकजुट हो जाएं. उनको लग सकता है कि एमबीसी की कई कैटेगरी बनाकर उनके वर्चस्व को दबाने की कोशिश हो रही है और उनका हक छीना जा रहा है.
  • ध्यान रहे कि देश में सिर्फ 18 परसेंट ऐसी नौकरियां हैं जिनमें रिजर्वेशन लागू होता है. हर साल कुछ हजार नौकरियां ही ऐसी होती हैं जहां रिजर्वेशन की मदद से सहूलियत होती है. इस छोटे से झुनझुने से करोड़ो लोगों का दिल जीतना आसान होगा क्या?
ADVERTISEMENT

और आखिर में.. 90 के दशक में मंडल ने कमंडल के रथ को पंक्चर किया था. संभव है कि ओबीसी-एमबीसी की बस में मंडल का नैरेटिव फिर से तेजी पकड़ ले. सवाल है कि फिर हिंदू यूनिटी का क्या होगा?

ये भी देखें- विपक्षी ताकत जुट तो रही है लेकिन 2019 में BJP का किला हिल पाएगा?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×