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मोदी सरकार-RBI के बीच 5 मुद्दों पर झगड़ा,छठा एंगल समझना बेहद जरूरी

ये मोदी सरकार और RBI का झगड़ा क्या है? क्यों दोनों एक दूसरे का गला पकड़ रहे हैं?

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम

वीडियो प्रोड्यूसर: सोनल गुप्ता

कैमरापर्सन: अभय शर्मा

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आखिर ये क्या 'बीफ' है, 'बीफ' अंग्रेजी का शब्द है जिसका मतलब होता है झगड़ा. शायद ये शब्द मुझे यहां इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.इसलिए मैं कहूंगा कि ये मोदी सरकार और RBI का झगड़ा है. क्यों दोनों एक दूसरे का गला पकड़ रहे हैं? क्यों सार्वजनिक तौर पर ऐसे शब्द और ट्वीट इस्तेमाल हो रहे हैं? ऐसे में ये जो झगड़ा है, उस पर एक-एक कर नजर डालते हैं

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डिविडेंड पॉलिसी पर सहमतिः शायद आरबीआई को पिछले साल 66 हजार करोड़ के बजट अनुमान के बजाय डिविडेंड घटाकर 30 हजार करोड़ नहीं करना चाहिए था, जिससे सरकार को झटका लगा था. अब उसे इस संकट का इस्तेमाल डिविडेंड/सरप्लस पर टकराव खत्म करने के लिए करना चाहिए. इसके लिए डिविडेंड पॉलिसी पर सहमति बनाई जा सकती है और उसकी खातिर आरबीआई के रिजर्व का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

एक दिन के डिफॉल्ट पर प्रोविजनिंगः सरकार और कई बैंकरों ने कहा है कि आरबीआई की यह पॉलिसी सख्त है और इस पर अमल आसान नहीं है. हालांकि, देश में दशकों से लोन को एवर ग्रीन करने का खेल चलता आया है. इसे देखते हुए शायद आरबीआई की यह पॉलिसी गलत नहीं है. सरकार की बिजली कंपनियों को इस शर्त से बचाने की कोशिश से उसकी नीयत पर सवाल खड़े होते हैं. इससे यह भी पता चलता है कि वह आलसी है. आखिर बिजली क्षेत्र में सुधार करना सरकार की समस्या है, रिजर्व बैंक की नहीं.

पब्लिक सेक्टर के बैंकों (पीएसबी) का रेगुलेशनः इस मामले में भी आरबीआई का पक्ष मजबूत है. सरकार के नियंत्रण वाले पीएसबी में से ज्यादातर की हालत खराब है. इनमें से कुछ के बोर्ड और समितियों में आरबीआई का नाममात्र का प्रतिनिधित्व है. जरा याद करिए कि प्रधानमंत्री ने कैसे कहा था कि‘यूपीए के मंत्रियों के फोन कॉल्स’ ने ‘पीएसबी को बर्बाद’ कर दिया था. फिर मोदी सरकार पीएसबी के कामकाज के उसी ढांचे को क्यों बचा रही है? मोदी पब्लिक सेक्टर के बैंकों का कंट्रोल आरबीआई को उसी तरह क्यों नहीं दे रहे, जैसे निजी क्षेत्र के बैंकों का रेगुलेशन उसके हाथों में है?

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प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए):पीसीए जैसा सिस्टम अमेरिका और यूरोप में भी है. वहां के रेगुलेटर्स 2008 वित्तीय संकट के बाद से सिस्टम के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय संस्थानों का स्ट्रेस टेस्ट लेते आए हैं. पीसीए में करीब आधे सरकारी बैंकों और एक प्राइवेट बैंक को डाला गया है. इससे इन बैंकों के तब तक कर्ज देने पर रोक लग गई है, जब तक कि उनकी बैलेंस शीट की हालत ठीक नहीं हो जाती. इससे करीब 20 पर्सेंट कर्ज नहीं बांटा जा रहा है.

सरकार का मानना है कि इससे अर्थव्यवस्था पर बुरा असर हो रहा है और ग्रोथ तेज नहीं हो पा रही. इस मामले में भी आरबीआई की बात सही है. वह कमजोर बैंकों को मनमाना कर्ज बांटने की छूट नहीं दे सकता, जिससे समूचा वित्तीय क्षेत्र मुश्किल में फंस जाए. पब्लिक सेक्टर के बैंकों का नियंत्रण सरकार के पास है. इसलिए फंडिंग बढ़ाकर उन्हें मजबूत करने की जिम्मेदारी सरकार की है.

पेमेंट रेगुलेटर: सरकार पेमेंट और सेटलमेंट सिस्टम के लिए अलग रेगुलेटर बनाना चाहती है. रिजर्व बैंक इसे अपने अधिकार क्षेत्र पर हमला मान रहा है, जो सही है.

इसके अलावा कई और मुद्दों पर दोनों के बीच टकराव है, लेकिन जिन मामलों को लेकर बड़े मतभेद हैं, उनका जिक्र ऊपर किया जा चुका है. इन पांच में से चार में रिजर्व बैंक का पक्ष मजबूत है.

छठा गोपनीय विवाद सबसे घातक

अब मुझे एक गोपनीय छठा मतभेद भी दिख रहा है, जो शायद सबसे घातक साबित हो. इस स्पष्ट करने के लिए मैं एक बार फिर से एस गुरुमूर्ति के बयान पर ध्यान दिलाना चाहूंगा, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘आरबीआई कानून कहता है कि रिजर्व बैंक का मैनेजमेंट बोर्ड की जिम्मेदारी है. गवर्नर और डिप्टी गवर्नर बोर्ड के निर्देशों के मुताबिक मैनेजमेंट पावर का इस्तेमाल करना होगा.’

मैं चाहता हूं कि मैं गलत साबित होऊं, लेकिन मुझे इस बयान में पावर बढ़ाने का एक खेल दिख रहा है. अभी आरबीआई बोर्ड की भूमिका मैनेजमेंट और एडमिनिस्ट्रेशन तक सीमित है, जिसे पॉलिसी की निगरानी तक ले जाने की कोशिश हो रही है. इसमें आरबीआई गवर्नर को बोर्ड का‘एक और सदस्य’ बनाने की मंशा है, जैसा कि किसी पब्लिक कंपनी में मैनेजिंग डायरेक्टर का होता है.
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यह ईशनिंदा है! इसका जोरदार विरोध होना चाहिए. आरबीआई बोर्ड का काम पॉलिसी बनाना या उसे अप्रूव करना नहीं है. यह जिम्मेदारी रिजर्व बैंक के गवर्नर और मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) को दी गई है.

चूंकि आरएसएस के एक ताकतवर विचारक अलग ही ढपली बजा रहे हैं, इसलिए हमें चौकन्ना रहना होगा. यह सुनिश्चित करना होगा कि 19 नवंबर की आरबीआई बोर्ड की मीटिंग में कोई दुस्साहस या नाइंसाफी ना हो.

इसलिए गवर्नर पटेल आप डटे रहिए. आप सरकार से बात करते रहिए और उसकी जो बात ठीक लगती हो, उस पर अमल करिए. आपको हार नहीं माननी है, ना ही इस्तीफा देना है. यह वक्त संस्थान की पवित्रता को बनाए रखने का है. आप अडिग रहिए. और कृपया इस ट्वीट का जवाब तो बिल्कुल भी मत दीजिएगा क्योंकि यह स्कूली बच्चों की सोशल मीडिया पर तकरार नहीं है.

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