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पुष्पेंद्र यादव 'एनकाउंटर': 4 साल इंसाफ की जंग, फिर पत्नी के सुसाइड से उठे सवाल

Pushpendra Yadav 'Encounter': इस साल 28 मार्च को पुष्पेंद्र यादव की पत्नी शिवांगी यादव की सुसाइड से मौत हो गयी

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तीन साल से ज्यादा वक्त से अपने पति के कथित फर्जी एनकाउंटर के मामले में न्याय की गुहार लगा रही शिवांगी यादव ने क्या सिस्टम के सामने हार मान ली? इसी साल 28 मार्च की रात को शिवांगी ने अपने घर में फांसी लगाकर जान दे दी.

शिवांगी के पति पुष्पेंद्र यादव की अक्टूबर 2019 में झांसी में हुए एक एनकाउंटर में कथित तौर पर हत्या कर दी गई थी. इस एनकाउंटर के बाद पुष्पेंद्र की पत्नी शिवांगी और उनके परिजनों ने सरकार से न्याय की गुहार लगाई.

हाई कोर्ट से शिवांगी को मिली थी राहत

शासन-प्रशासन को कई पत्र लिखे. चक्कर लगाए लेकिन बहुत ज्यादा फायदा मिलता नहीं दिखा. हालांकि थोड़ी राहत इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) से मिली. कोर्ट के आदेश के बाद 2022 में आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ शिवांगी की तहरीर पर मुकदमा दर्ज हुआ. इस मुकदमे में निष्पक्ष विवेचना कराने के लिए यह केस सीबीसीआईडी (CBCID) कानपुर को सौंप दिया गया था. इससे पहले की सीबीसीआईडी अपने जांच की शुरुआत करती, शिवांगी ने अपने संघर्षों पर विराम लगा दिया.

उत्तर प्रदेश की कथित एनकाउंटर नीति को लेकर साल 2019 काफी सुर्खियों में रहा. 5 अक्टूबर 2019 को झांसी में एक विवादित पुलिस मुठभेड़ में पुष्पेंद्र यादव (Pushpendra Yadav Encounter) की कथित तौर पर हत्या कर दी जाती है.

पुलिस पर आरोप लगे की झांसी के नोट थाना प्रभारी धर्मेंद्र सिंह चौहान ने पुष्पेंद्र यादव के ट्रक को छोड़ने के बदले डेढ़ लाख रुपए की मांग की थी और इसी विवाद में पुष्पेंद्र यादव की हत्या की गई थी.

कथित एनकाउंटर पर विपक्ष ने उठाये थे सवाल

घटना के मीडिया में आते ही एनकाउंटर पर अपना पीठ थपथपाने वाली सरकार चारों तरफ से घिरती नजर आती है. समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव सहित विपक्ष हमले करना शुरू कर देता है. सवाल उठने लगते हैं. 2019 में पुष्पेंद्र यादव की हत्या के बाद न्याय की गुहार लगाते हुए शिवांगी ने मीडिया के सामने अपनी बात रखी थी.

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व्यवस्था करके पैसा दे आये थे. फिर भी 50 हजार रुपये के लिए दबाव बनाया जा रहा था. उन्होंने कहा कि पैसे वापस कर दो, तो उनको मार डाला. हमें न्याय चाहिये.
शिवांगी यादव, मृतक पुष्पेंद्र यादव की पत्नी

इंसाफ के लिए भटक रही शिवांगी उत्तर प्रदेश प्रशासन से कोई सफलता हाथ नहीं मिली. उन्होंने थाने और जिले स्तर पर पुलिस के अधिकारियों को हत्या की तहरीर दी लेकिन उनका मुकदमा दर्ज नहीं हुआ. आरोप यह भी लगे की हत्यारोपी पुलिस वालों को बचाने के लिए उनके अधिकारियों ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. हताश शिवांगी ने फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और वहां उन्हें पहली सफलता मिली.

सितंबर 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिवांगी की तरफ से दाखिल अर्जी पर सुनवाई करते हुए आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या में मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए.

आरोप लगे कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने केस को उलझाने की कोशिश की. झांसी पुलिस ने शिवांगी यादव की तहरीर को दरकिनार करते हुए पुष्पेंद्र के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव की तहरीर पर तत्कालीन मोठ थाना प्रभारी धर्मेंद्र सिंह चौहान और अज्ञात लोगों के खिलाफ 26 सितंबर 2022 को मुकदमा दर्ज कर लिया.

हाई कोर्ट ने पुलिस को लगाई थी फटकार

हाई कोर्ट ने इस मामले में एक बार फिर फटकार लगाई और पुलिस को शिवांगी यादव की तहरीर पर मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिया. इस मामले में शिवांगी यादव की तहरीर पर 10 अक्टूबर 2022 को पीड़ित पक्ष की तरफ से दूसरा मुकदमा दर्ज हुआ.

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28 मार्च को शिवांगी की हुईं थी मौत

इस मामले की निष्पक्ष विवेचना कराने के लिए यह केस 3 मार्च 2023 को सीबीसीआईडी कानपुर को सौंप दिया गया. इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेशों के क्रम में शासन द्वारा अपर पुलिस अधीक्षक की अध्यक्षता में 5 लोगों की टीम भी नामित की गई. जांच कर रही सीबीसीआईडी की टीम इस मामले में अभी कागजात जुटाने में ही लगी हुई थी कि 28 मार्च को शिवांगी यादव ने आत्महत्या कर ली. शिवांगी और पुष्पेंद्र के परिजनों का कहना था कि शिवांगी सरकार के रवैया से हताश थी और उसने न्याय की उम्मीद खो दी थी.

वो शासन-प्रशासन के भेंट चढ़ गयी. उन्होंने हार मानकर जिंदगी को खत्म कर ली. कोर्ट के आदेश के बावजूद हमें न्याय नहीं मिला, इन लोगों ने अपने मन से सिस्टम को चलाया. मुख्यमंत्री की ही मंशा साफ नहीं है तो हम तो छोटे लोग हैं , कब तक लड़ पायेंगे. न्यायपालिका में हमें भरोसा है लेकिन शासन-प्रशासन जब ऐसा करेगा तो हम न्याय कहां पायेंगे.
रविंद्र यादव,मृतक पुष्पेंद्र यादव का भाई

आज भी उठ रहे ये सवाल?

2019 में पुष्पेंद्र यादव की पुलिस मुठभेड़ में हत्या और 3 साल बाद 2023 में शिवांगी की आत्महत्या से कई ऐसे सवाल उभर कर आए हैं जिनका शायद ही अब कोई जवाब मिल पाएगा. पुलिस कर्मियों के खिलाफ ही जांच करनी हो तो आम आदमी किस पर भरोसा करे? न्याय की गुहार लगा रही महिला का मुकदमा दर्ज करने में 3 साल क्यों लगे? वह आत्महत्या के लिए क्यों मजबूर हुई और उसकी मौत का जिम्मेदार कौन है? ये ऐसा सवाल हैं जिनका जवाब तलाशना जरूरी है जिससे की कानून पर आम आदमी का भरोसा कायम रहे.

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