वीडियो एडिटर- मोहम्मद इरशाद
कांग्रेस के कटु आलोचक भी मानते हैं कि 2 महीने पहले राहुल के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने अच्छी शुरुआत की है और अब तक एक भी गलती नहीं की है. इसकी शुरुआत गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार से हुई, जिसमें काफी सूझबूझ दिखी थी. राजस्थान उपचुनाव में भी कांग्रेस को चौंकाने वाली जीत मिली. कर्नाटक में सिद्धारमैया और पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह का खुला सर्मथन किया गया. दिल्ली कांग्रेस में ‘हीलिंग टच’ पॉलिसी दिखी. सीनियर नेताओं का ना सिर्फ पार्टी में सम्मान बना हुआ है बल्कि उनकी ताकत भी बढ़ाई जा रही है. आपको मानना पड़ेगा कि राहुल गांधी पार्टी को अच्छा नेतृत्व दे रहे हैं.
राहुल साल 1996 को भूलें नहीं
अगर हम 2019 के चुनाव की बात करें, तो राहुल गांधी को 1996 में सीताराम केसरी की बड़ी गलतियों से सीखना होगा. नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार का आखिरी साल था, जिसमें उन्होंने पार्टी को मृत्युशैय्या पर पहुंचा दिया था.
इस साल कई घोटालों का आरोप लगा, 7 मंत्रियों ने इस्तीफा दिया, अर्जुन सिंह और एनडी तिवारी पार्टी से अलग हुए और जैन हवाला डायरी मामले में भ्रष्टाचार के आरोप लगे. 1996 के 11वें लोकसभा चुनाव में पार्टी को 140 सीटें मिलीं, जो उस वक्त तक, कांग्रेस को किसी लोकसभा चुनाव में मिलीं सबसे कम सीटें थीं.
लेकिन असल इतिहास कहीं और रचा जा रहा था. बीजेपी को 1996 में 161 सीटों पर जीत मिली. वह संसद में अकेली सबसे बड़ी पार्टी बनी. अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन 13 दिन बाद ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि बीजेपी और आरएसएस का हिंदुत्व किसी को गवारा नहीं था.
मैं जोर देकर यह बात कहना चाहता हूं क्योंकि मैं फिर से इस पर लौटूंगाः क्योंकि किसी को भारत के लिए आरएसएस-हिंदुत्व का नजरिया गवारा नहीं था.
लोग आरएसएस-हिंदुत्व विजन को मानने को मजबूर हुए. 1998 में केसरी ने जो किया, उसकी वजह से 1996 का आरएसएस, बीजेपी, हिंदुत्व का विरोध खत्म हो गया था.
यूनाइटेड फ्रंट का दौर
वाजपेयी के इस्तीफा देने के बाद यूनाइटेड फ्रंट सरकार बनी, जिसमें सात क्षेत्रीय दल शामिल थे. उनके पास 192 सीटें थीं और 140 सीटों वाली सीताराम केसरी की कांग्रेस ने इस सरकार को बाहर से समर्थन दिया था. इस तरह से देवगौड़ा देश के प्रधानमंत्री बने, जो उस समय तक कर्नाटक के क्षेत्रीय नेता थे.
लेकिन केसरी दुखी थे और उनका धीरज चुक रहा था. कहते हैं कि वह प्रधानमंत्री बनना चाहते थे. उन्हें लगता था कि क्षेत्रीय दलों के ‘नापाक’ गठबंधन की वजह से उनका यह सपना पूरा नहीं हो पाया. इसलिए साल भर के अंदर उन्होंने देवगौड़ा सरकार गिरा दी. दूसरी यूनाइटेड फ्रंट सरकार के मुखिया इंद्र कुमार गुजराल चुने गए. इस बार 8 महीनों में ही केसरी ने सरकार गिरा दी. इससे दो साल के अंदर देश में लोकसभा चुनाव हुआ और गुस्साई जनता ने केसरी की कांग्रेस को सजा दी. 1998 के चुनाव में अटल बिहारी वाजयेपी की एनडीए को बहुमत के साथ सरकार बनाने का जनादेश मिला.
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कांग्रेस को या तो सत्ता में होना चाहिए या विपक्ष में, बीच में नहीं
- 2019 में अगर बीजेपी-एनडीए को 200 या इससे कुछ ज्यादा सीटें मिलती हैं, तो इसका मतलब यह होगा कि लोगों का हिंदुत्व की राजनीति से मोहभंग हो रहा है, जो अभी तक चरम पर नहीं पहुंचा है.
- अगर कांग्रेस और यूपीए को बीजेपी-एनडीए से ज्यादा सीटें (जैसा कि 2004 और 2009 में हुआ था) मिलती हैं, तभी उसे सरकार बनाने के बारे में सोचना चाहिए.
- किसी भी सूरत में कांग्रेस को बाहर से सरकार का समर्थन नहीं करना चाहिए.
- राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनना चाहिए ना कि कांग्रेस को किसी मुखौटे का इस्तेमाल करना चाहिए.
यह याद रखना जरूरी है कि जो लोग इतिहास भूल जाते हैं, वही उसे दोहराने की गलती करते हैं.
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