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‘काला’ ने आज की पॉलिटिक्स का काला-सफेद सब खोल कर रख दिया है

बड़ी सफाई से इस फिल्म ने मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान की आलोचना की है

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वीडियो एडिटर- मो. इरशाद आलम

काला के ज्यादातर रिव्यू में फिल्म के क्राफ्ट, रजनीकांत और तमिलनाडु की थीम पर फोकस किया गया है. लेकिन जिस बात की ज्यादा चर्चा नहीं हो रही है वो है राष्ट्रीय राजनीति पर फिल्म की तीखी नजर.

फिल्म काला में कई कहानियां हैं- धारावी है, बिल्डर है, मुंबई है. लेकिन इन सब के जरिए फिल्म में प्रमुखता से दलित संघर्ष और उसका सेलिब्रेशन दिखाया गया है. राम और रावण को लेकर तमिलनाडु का जो एक अलग नैरेटिव है, वो भी फिल्म में मौजूद है.

ये फिल्म तमिलनाडु या दक्षिण भारत के संदर्भों तक सीमित नहीं है. ये उत्तर भारत और पूरे देश के मौजूदा पाॅलिटिकल हाल पर भी कमेंट करती है. बड़ी सफाई से इस फिल्म ने मौजूदा सत्ता प्रतिष्ठान की आलोचना की है.

काला (रजनीकांत) और हरिदेव अभयंकर (नाना पाटेकर) के किरदार इस लड़ाई को दिखाते हैं. हरिदेव, ऊंचे लोगों की पार्टी ‘नवभारत राष्ट्रवादी पार्टी’ का नेता है, रामभक्त है और खुद ही कहता है कि वो पावर के लिए कुछ भी कर सकता है. जबकि उसके इरादे और हरकतें रावण जैसी हैं. उसे धारावी में दलितों, शोषितों, गरीबों को उजाड़ कर बड़ी इमारतें बनानी हैं. हरिदेव, क्लीन- प्योर मुंबई और डिजिटल धारावी बनाने की बात करता है. यानी फिल्म निर्देशक ने चालाकी से स्वच्छ भारत और डिजिटल इंडिया की याद दिलाई है.

काला, गरीबों का हमदर्द है, हरिदेव की नजर में वो रावण है, लेकिन दरअसल वो सही और सच के साथ खड़ा होने वाला इंसान है, जिन आदर्शों के लिए हम राम को जानते हैं. तमिल और द्रविड़ विमर्श में रावण एक ‘अच्छा इंसान’ माना जाता है. उसकी नजर में राम की इमेज वो नहीं है जो देश के दूसरे हिस्सों में है.

फिल्म में हरिदेव जब काला को मारने का हुक्म देता है तो एक कथावाचक उसके घर में भक्तों को राम के हाथों रावण के वध की कहानी सुना रहा होता है. ये दृश्य आपको इस वक्त के हिंदुत्व के हो-हल्ले की याद दिला देता है.

हरिदेव नेता, पुलिस, अपराधी, बिल्डर की गिरोहबंदी का प्रतीक है. काला, शोषण के खिलाफ निहत्थों की आवाज है. फिल्म में अंबेडकर, भीम, नीला झंडा यानी आज के दलित संघर्ष के सारे प्रतीक हैं और एक शान और ठसक के साथ है.

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इस फिल्म के निर्देशक पा रंजीत हैं. उनकी उम्र 35 साल है. वो दलित हैं. उन्होंने पहली फिल्म रोमांस पर बनायी थी लेकिन उसके बैकग्राउंड में भी राजनीति और जाति थी.

काला में उन्होंने रजनीकांत को उनकी महाबली, चमत्कारी फिल्मी इमेज से बाहर निकाला है. उन्होंने रजनीकांत को साधारण आदमी बना दिया है. ये रजनीकांत के लिए भी एक्सपेरिमेंट है. फिल्म को देख कर लगता है कि नॉर्थ इंडिया और बॉलीवुड को पा रंजीत जैसे फिल्मकारों की बड़ी जरूरत है.

फिल्म का कथानक गंभीर रूप से बहुजन, दलित की तरफ झुका हुआ है. ये ऊंची-सवर्ण जातियों के पुराने शोषण के तरीकों के खिलाफ बगावत की फिल्म है. तमिलनाडु की राजनीति की यही थीम है. सुपरस्टार रजनीकांत इस वक्त अपनी पार्टी बनाने के लिए चर्चा में हैं. साथ ही बीजेपी उनसे फ्लर्ट करना चाहती है, ये भी किसी से छिपा नहीं है. जबकि ये फिल्म ‘बीजेपी टाइप पाॅलिटिक्स’ की आलोचना करती है. इसलिए रियल लाइफ में तमिलनाडु की राजनीति में रजनीकांत बीजेपी के करीब आने का रिस्क नहीं ले सकते.

आने वाले चुनाव में ये देखना तो दिलचस्प होगा ही. लेकिन उन सबसे दिलचस्प है इस घनघोर राजनीतिक फिल्म को देखा जाना.

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