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ऑनलाइन न्यूज के सरकारी नियंत्रण के खिलाफ खड़ा होना क्यों जरूरी है

लगातार बड़े खुलासे कर रही डिजिटल मीडिया को काबू में करना चाहती है सरकार 

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वीडियो एडिटर: मो इब्राहिम

एक ऐसे समय में जहां मेनस्ट्रीम मीडिया का एक हिस्सा सरकारी जुबान की हां में हां मिलाने को तैयार हो, सच को तोड़ता-मरोड़ता हो या नजरअंदाज करता हो, वहां डिजिटल मीडिया ही है जो इस खाली जगह को भर रहा है, बार-बार तर्कों और तथ्यों के साथ अपनी बात कहता हुआ.

जब न्यूज चैनलों पर ज्यादातर खबरें एक एजेंडा की तरह दिखाई और सुनाई दे रही हैं, ऑनलाइन न्यूज लगातार सच को सफेद झूठ से अलग करने के लिए और खबरों के खोल में छिपे पक्षपाती प्रोपेगेंडा को सामने लाने के लिए लगातार काम कर रहा है.

पिछले कुछ वक्त में क्विंट और बाकी ऑनलाइन न्यूज पोर्टल्स ने इस बात को साबित भी किया है.

लेकिन जब सरकार की फेक न्यूज छापने वाले पत्रकारों को सजा देने के नियम लाने की कोशिश कामयाब नहीं हुई तो अब स्मृति ईरानी का सूचना-प्रसारण मंत्रालय कुछ और नियम लाने की तैयारी में हैं. निशाने पर है डिजिटल मीडिया. अब सरकार एक कमेटी का गठन करने जा रही है जो न्यूज वेबसाइट के लिए नियम बनाएगी.

इतना ही नहीं, कमेटी के सदस्यों में कोई भी डिजिटल मीडिया से नहीं. यानी जिसे रेगुलेट करना है उसी की आवाज को उठाने वाला कोई नहीं.

न्यूज पेपर और चैनलों को कमजोर करने के बाद सरकार डिजिटल मीडिया को भी काबू में करना चाहती है. इसके जवाब में 100 से ऊपर पत्रकार और डिजिटल मीडिया से जुड़े लोगों ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को चिट्ठी लिखी है, जिसमें कहा गया है कि ऐसे कदम लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करेंगे.

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लेकिन आपको चिंता क्यों करनी चाहिए?

हम आपको ऐसी 7 वजह बता रहे हैं जो कहती हैं कि आपको इस पर गौर करना चाहिए. डिजिटल मीडिया की 7 जबर्दस्त स्टोरी जिसे प्रिंट और ब्रॉडकास्ट मीडिया ने ब्रेक नहीं किया और जिन स्टोरी ने ताकतवर लोगों को झुकने पर मजबूर किया.

1) जज लोया खुलासा

शुक्रिया कीजिए कैरावैन मैगजीन के ऑनलाइन एडिशन का जिसने जज लोया की रहस्यमय हालात में मौत के मुद्दे को उठाया. वहीं जज लोया जो सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई कर रहे थे. वही सोहराबुद्दीन केस जिसमें अमित शाह आरोपी थे. मेनस्ट्रीम मीडिया ने वो पैने सवाल नहीं पूछे जो कैरावैन ने पूछे. CBI जांच के लिए याचिका डाली गई, सुप्रीम कोर्ट के 4 जज जनता के सामने आए, तब जाकर मेनस्ट्रीम मीडिया जागा.

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2) जय शाह और पीयूष गोयल

द वायर ने सबसे पहले अमित शाह के बेटे जय शाह की कंपनी के सिलसिले में हितों के टकराव की बात कही लेकिन, वेबसाइट और खुलासा करने वाली पत्रकार के खिलाफ मानहानि का मुकदमा ठोक दिया गया. वायर ने केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को लेकर भी सवाल उठाए. वेबसाइट को फिर से मानहानि की धमकी मिली उधर, गोयल के ऊर्जा मंत्रालय की उपबलब्धियों का बखान शुरू हो गया.

3) कठुआ गैंगरेप

कठुआ गैंगरेप केस में चार्जशीट फाइल होने की खबरों को न्यूजपेपर और टीवी चैनलों में दिखाए जाने के एक हफ्ते पहले से,  The Print और Scroll 8 साल की मासूम से गैंगरेप और हत्या की खबरें छाप रहे थे. मेनस्ट्रीम मीडिया इस मामले में पीछे-पीछे चला.

4) केरल में नैतिकता के ठेकेदार

जयललिता की बीमारी के समय रिपोर्टिंग में सबसे आगे रहने के अलावा 'The News Minute' वेबसाइट 2 स्कूली छात्रों के मंच पर गले मिलने के बाद सस्पेंड किए जाने के मामले में भी आगे था. टीवी डिबेट में ये मुद्दा हाई कोर्ट में पहुंचने के बाद आया.

और अब ये, आपको हमारा खुद का प्रचार लगे तो लगे ..

5 ) इलेक्टोरल बॉन्ड पर खुलासा

राजनीति में काले धन पर लगाम लग सके इसीलिए सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड लेकर आई लेकिन क्विंट की इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट में ये साबित हुआ है कि राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए देने वाला चंदा न तो साफ है और न ही छिपा हुआ.

6) द पेड न्यूज स्टिंग

मार्च 2018 में कोबरा पोस्ट ने एक स्टिंग ऑपरेशन 136 को ऑनलाइन जारी किया इसमें खुलासा किया गया था कि कैसे भारत के बड़े न्यूज चैनल, न्यूजपेपर और वेबसाइट हिंदुत्व एजेंडे को फैलाने के लिए पैसे लेते हैं

7) डेटा और तथ्यों की जांच

बूम लाइव और ऑल्ट न्यूज जैसी वेबसाइट झूठे दावे और फर्जी खबरों का खुलासा करने में सबसे आगे हैं. कई बार ये नेताओं की तरफ से फैलाई जाती हैं और कई बार राजनीतिक विचारधारा की सोच रखने वाली वेबसाइट्स के जरिए.

तो अगर अगली बार आपके सामने ये खबर आए कि सरकार मीडिया को रेगुलेट करना चाहती है तो फ्री प्रेस के समर्थन में जरूर खड़े हों

अगर डिजिटल मीडिया इन खबरों को सामने ना लेकर आता तो शायद ये खबरें कभी बाहर आती ही नहीं.

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