वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
- मैं क्या बताऊं मेरी तो बोली नहीं निकल रही है ,आप मुझे यूट्यूब चैनल पर 'सस्क्राइब' कर सकते हैं - शिवानी कुमार, औरेया
- मैं टिकटॉक पर आया हर टैलेंट दिखाने की कोशिश की, क्या होगा अब- आदर्श, भागलपुर
- मुझे बुरा बहुत लग रहा है, बहुत सारे इमोशन जुड़े हैं आप लोगों से, खासकर टिकटॉक से- बाबा जैक्सन, जोधपुर
ये जो तीन लोगों को आपने देखा, ये बैन हो गए चीनी ऐप टिकटॉक के उस पहलू को बताते हैं, जिसने इस प्लेटफॉर्म को इतना बड़ा बनाया. इनमें से शिवानी यूपी के औरैया की रहने वाली हैं, आदर्श, बिहार के भागलपुर के रहने वाले हैं और बाबा जैक्सन उर्फ युवराज जोधपुर के रहने वाले हैं. तीनों का यही कहना है कि इन्हें अपने सपनों की उड़ान के लिए फ्यूल टिकटॉक से ही मिला है.
29 जून को भारत सरकार ने 59 चाइनीज़ ऐप्स बैन कर दिए गए हैं.अब आपने हमारे चैनल पर और बाकी के दूसरे मीडिया आउटलेट्स में टिकटॉक की खामियां तो सुन पढ़ देख ली होंगी, खामियां जानना बेहद जरूरी हैं. लेकिन आज बात थोड़ा अलग एंगल पर करेंगे और आपकी राय भी हमारे लिए जरूरी है तो कमेंट में जरूर बताएं..
59 चीनी ऐप्स बैन, लेकिन सुर्खियों में सिर्फ टिकटॉक
बैन तो लगा है कि 59 ऐप्स पर लेकिन बात हो रही है तो सिर्फ टिकटॉक की. अब ऐसा क्यों है इसी को समझ जाएंगे तो समझ जाएंगे कि टिकटॉक के जाने से आंसू क्यों बह रहे हैं. करीब 50 करोड़ यूजर वाला अपना देश दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा स्मार्टफोन यूजर्स वाला देश है. लेकिन आबादी तो 1 अरब 30 करोड़ हैं, कई गांवों में लोगों ने इंटरनेट का नाम ही नहीं सुना है. लेकिन कई गांव-कस्बों में पिछले कुछ सालों में युवाओं के हाथ में स्मार्टफोन आने शुरू हुए. लेकिन ये यूजर तो पहले ही पिछड़ गए थे, उस रेस से जो टियर-1 टियर-2 के शहरों में सोशल मीडिया पर चल रही थी.
हाई क्लास, अपर मिडिल क्लास और दबदबे वाले लोगों की एक कम्युनिटी फेसबुक, ट्विटर-इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर पहुंच चुकी थी. धारदार शब्दों का इस्तेमाल, स्टूडियों में शूट होने वाले वीडियो की भरमार इन सोशल मीडिया एप्स पर छाई रहती थी.
इस बीच साल 2017 में टिकटॉक की एंट्री हुई, दबे कदमों से गांव-कस्बों, टियर-2, टियर-3 शहरों में. जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी भी धीमी थी, लोगों के हाथ में सस्ते स्मार्टफोन थे...लेकिन अपना स्किल दिखाने का एक मौका उन्हें चाहिए था, इनके पास कला तो थी लेकिन इसे मंच देने वाला कोई साधन नही था. टिक टॉक के आने के बाद से इन छोटे छोटे कलाकारों की एक नई पहचान बनी. इन्हें लोग जानने लगे... ये कलाकार अपने एक्सप्रेशंस में, शब्दों या अच्छी तस्वीरों में न बंधकर...खुलकर...अपने आप को एक्सप्रेस करने लगे
TikTok ने फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स के सुपीरियॉरिटी फैक्टर को चुनौती दी थी. TikTok पर क्रिएटिविटी और टैलेंट मुख्य प्लेयर थे
गांव-कस्बों-छोटे शहरों के देसी कलाकारों को हुनर दिखाने का मिला आसान जरिया
टिकटॉक के ज्यादातर कंटेंट को कुछ लोग क्रिंज कंटेंट मानकर नकार भी दिया करते थे. लेकिन टिकटॉक प्लेटफॉर्म की सबसे खास बास थी उसका बेहद आसान वीडियो बनाने का तरीका, उसे अपलोड करने का तरीका और अगर कोई पढ़ा लिखा भी नहीं है तो बिना किसी एडिटिंग टूल के या बिना लैपटॉप के अपना 15 सेकेंड या 60 सेकेंड का वीडियो बनाकर तो अपलोड कर सकता था. ऐसे में किसी दूरदराज के गांव में बैठे किसी राजू, रमेश या खेत में काम करने वाले और किसी तरह अपना गुजारा चलाने वाले चांदराम या हर रोज घर में एक सा काम करने वाली गृहिणी सुधा के लिए पॉपुलर होना मुश्किल नहीं रह गया था.
ये वीडियो टिकटॉक के बैन के ऐलान के वक्त प्लेटफॉर्म पर आदर्श ने पोस्ट किया था. ये आदर्श वहीं हैं जिन्हें महज टिकटॉक के बलबूते जीटीवी के कार्यक्रम मूवी मस्ती विद मनीष पॉल में जाने का मौका मिला था. ये अपने वीडियो में कभी किसी महिला का किरदार निभा लेते थे तो कभी पागल का किरदार तो कभी किसी हीरो की मिमिक्री कर दिया करते थे.
बाबा जैक्सन, अरमान राठौड़ जैसे डांसर्स को TikTok के बूते मिली नई पहचान
ऐसे ही ऊपर हमने नाम लिया बाबा जैक्सन का, ये वो जैक्सन हैं, जिन्हें टिकटॉक के दमदम पर आज करीब-करीब बॉलीवुड की हर हस्ती जानती है. इनके डासिंग टैलेंट की तारीफ ऋतिक रोशन, वरुण धवन जैसे स्टार्स कर चुके हैं और ये अब अपने आप में पॉपुलर हैं. गुजरात में कार सफाई करने वाले अरमान राठौड़ की भी कहानी बाबा जैक्सन जैसी है. वो भी डांसर हैं, उनके भी सपने पूरे हुए और कलर टीवी ने अपने शो डांस दीवाने में उन्हें ऑडिशंन के लिए बुलाया था.
इन टिकटॉक स्टार्स के वीडियो सिर्फ टिकटॉक पर ही नहीं यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर पर भी बेहिसाब शेयर होते हैं. ऐसे में बाकी सभी प्लेटफॉर्म के मुकाबले मार्जिनलाज्ड कम्युनिटी के लिए टिकटॉक एक उड़न तश्तरी जैसा था, जिससे वो अपने अरमानों को आसमान की ऊंचाई तक पहुंचाते.
TikTok पर बेस्ट या बेहतर दिखने जैसा प्रेशर नहीं था
इस वीडियो की शुरुआत में शिवानी का वीडियो देखा होगा आपने. शिवानी अपने गांव में एक छोटे से घर में अपने परिवार के साथ रहती थीं, देसी एक्सेंट इतनी पॉपुलर हुई कि इनके टिकटॉक पर लाखों फॉलोअर बन गएं. अब टिकटॉक से जाते वक्त ये अपील कर रही हैं कि उन्हें यूट्यूब पर सब्सक्राइब किया जाए, वो सब्स्क्राइब नहीं बोल पाती हैं सस्क्राइब बोलती हैं, मैं ये नहीं कह रहा हूं कि उनकी अंग्रेजी खराब है या अच्छी है. आप सोचिए कि ये जो टिकटॉक स्टार हैं, क्या इन्हें ऐसी तवज्जो यूट्यूब जो अपने आप में समंदर है वहां मिल पाएगा?
महिलाओं की बात करें तो टिकटॉक ने घर के कामों में उलझी रहने वाली महिलाओं को फुर्सत के पल मुहैया कराए. कॉल करने और कॉल रीसिव करने तक ही स्मार्ट फोन का खेल समझने वाली कई ग्रामीण औरतों को एहसास हुआ कि उनकी पहुंच सोशल मीडिया नाम की जगह पर भी है. आम और खास जैसा बैरियर नहीं दिखता. जबकि इंस्टाग्राम, ट्विटर, फेसबुक पर फॉलोवर्स का बंटवारा दिखता है, साथ ही पेचीदगियां भी हैं. इंस्टाग्राम, फेसबुक पर लोग अपनी अच्छी, चुनिंदा, बेस्ट मोमेंट फोटो शेयर करते हैं. सबकुछ अच्छा दिखाना चाहते हैं. जबकि टिकटॉक पर हर तबके के लोग हर तरह की वीडियो चाहे उसमें उनका मजाक ही क्यों न बन रहा हो, शेयर कर लाइक और वाहवाही बटोर लेते थे, यहां बेस्ट, बेहतर दिखने जैसा प्रेशर नहीं था.
TikTok जैसा सरल, सस्ता, टिकाऊ देसी ऐप इन यूजर्स को मिल सकेगा?
सबसे खास बात टिकटॉक के यूजर डूयट के जरिए और बाकी तरीकों से अपने लिए एक खास कम्युनिटी भी बनाते थे, आपस में एक दूसरे के वीडियो को प्रमोट करते थे. इनसे इनकी कम्युनिटी छीन ली गई है.
देश का सवाल है तो ज्यादातर टिकटॉकर्स ने यहा है कि देश की फिक्र सबसे पहले, लेकिन अब इन टिकटॉकर्स की फिक्र कौन करेगा. अब कोई ऐसा ऐप आए जो इन्हें टिकटॉक की तरह वीडियो बनाने का सस्ता, सुंदर और टिकाऊ जुगाड़ दे तो बात बनेगी. टिकटॉक पर बैन के बाद कुछ ऐप्स की डाउनलोड बढ़ी है. जिनकी चर्चा है, उनपर कम से कम मेरा अनुभव तो टिकटॉक के मुकाबले खराब ही है. क्या कोई देसी तगड़ा ऐपा आएगा और भारत के इन लोगों को बनाएगा - आत्मनिर्भर? इंतजार है. मुझे भी इन्हें भी.
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