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आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10% रिजर्वेशन का असली मतलब क्या है? क्या है आरक्षण की मूल भावना? कौन है आरक्षण का असल हकदार? क्विंट से खास बातचीत में राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने इन सभी सवालों के जवाब दिए.
योगेंद्र यादव के मुताबिक, आरक्षण की व्यवस्था के साथ बार-बार मजाक होता आया है. सरकारें बदलती आई हैं, लेकिन इसका इस्तेमाल ज्यादातर ने किया है. योगेंद्र यादव इसके लिए शिक्षा व्यवस्था और रोजगार की सहूलियत न होने को जिम्मेदार मानते हैं.
हमारे देश में 2 बुनियादी चीज काम नहीं करती हैं. वो चूंकि काम नहीं करती हैं, इसलिए सारा का सारा बोझ इस आरक्षण पर आ जाता है. पहली बात हमारी स्कूल की शिक्षा व्यवस्था काम नहीं करती, बच्चों को ठीक शिक्षा नहीं मिलती. दूसरी, हमारी जो रोजगार की व्यवस्था है, रोजगार मिलता नहीं है. इन दोनों के न होने से सबको लगता है कि हर समस्या का हल अब आरक्षण से निकलेगा.योगेंद्र यादव, राजनीतिक विश्लेषक
'आरक्षण की मूल भावना से छेड़छाड़'
संविधान में दी गई आरक्षण की व्यवस्था सिर्फ अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए थी, जिनके साथ सैकड़ों साल तक अन्याय हुआ है, जिनको पूरी शिक्षा व्यवस्था और रोजगार से वंचित किया गया है.
योगेंद्र यादव संविधान में दी गई आरक्षण की व्यवस्था को ऐसे लोगों के लिए ऐतिहासिक अवसर बताते हैं, साथ ही इसे हिंदू समाज के 'ऐतिहासिक पाप' का प्रायश्चित भी बताते हैं. लेकिन बाद के सालों में आरक्षण का दायरा बढ़ा दिया गया. योगेंद्र कहते हैं कि इसे अब एक कदम और जबरदस्ती खींचा जा रहा है.
सरकार ने कैसे बनाया 8 लाख की इनकम का पैमाना?
10 फीसदी आरक्षण में 8 लाख सालाना इनकम वाले परिवारों पर भी सवाल उठ रहे हैं. कहा जा रहा है कि इस इनकम तक के परिवारों को आरक्षण के दायरे में रखा जाएगा. योगेंद्र यादव इसे मजाक बताते हैं, जिससे एक भी सवर्ण का फायदा नहीं होने वाला.
8 लाख की लिमिट का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तकरीबन देश के 98 फीसदी लोग इसमें शामिल हो जाएंगे. जो 51% में से कम से कम 20 से 30% नौकरियां उन लोगों को जा रही है, जो जनरल कैटेगरी के हैं या उनकी इनकम 8 लाख से नीचे है. जिसे पहले से ही 20% मिल रहा है, उसे 10% आरक्षण से क्या फायदा होगा?योगेंद्र यादव, राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव अंत में ये भी कहते हैं कि देशभर में 24 लाख नौकरियों के पद खाली हैं. वे कहते हैं कि सरकार उसे नहीं भर रही है, नाटक कर रही है, जिसे सब देख भी रहे हैं. वो इसे राजनीति का पाखंड बता रहे हैं.
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