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एक ‘अर्बन नक्सल’ का बहुत बुरा सपना जो सच के करीब था

देश का लोकतंत्र भ्रम की हालत में क्यों दिखता है?

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वीडियो प्रोड्यूसर: अनुभव मिश्रा और त्रिदीप मंडल
वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम और मो. इब्राहिम
कैमरापर्सन: अभय शर्मा और अतहर राथर

भारत का लोकतंत्र भ्रम की स्थिति में चला गया है. बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया जाता है. सुप्रीम कोर्ट के जज नाराज दिखाई देते हैं. पुलिस आक्रामक होती दिखती है. सत्ताधारी दल के नेता नफरत फैलाते नजर आते हैं. समाचार संस्थाएं गहरी नींद में सोई लगती हैं. उदारवादी नाराज होकर प्रदर्शन कर रहे हैं. ट्रोल जहर उगल रहे हैं. हालात बेहद अविश्वसनीय और काल्पनिक लगते हैं.

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जब पांच बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया, उस रात मैं सोने गया तो मैंने एक बहुत बुरा सपना देखा. अजीब सवालों से भरा हुआ सपना.

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वामपंथी और मैं? ये आपको किसने बता दिया? मैं एक एंटरप्रेन्योर हूं यही वजह है कि धन के सृजन का तो मैं जश्न मनाता हूं.

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क्या आप मजाक कर रहे हैं? मैं तो कम्युनिज्म का बहुत बड़ा आलोचक हूं. मुझे लगता है कि वो एक नाकाम विचारधारा है. मैं ठीक से रेगुलेट की गई फ्री मार्केट में विश्वास रखता हूं लेकिन उद्योगों पर बुरी तरह सरकारी नियंत्रण मुझे पसंद नहीं. मैं अपनी जिंदगी में सरकारी दखलअंदाजी को पसंद नहीं करता. मैं कमजोरों की रक्षा करने वाले वेलफेयर स्टेट का समर्थक हूं. आपको मेरा वो लेख पढ़ना चाहिए जिसमें मैंने हिंदुस्तान की इकनॉमी को पूरी तरह अनमिक्स करने की बात कही है. क्या ये आपको वामपंथी सिद्धांत दिखता है?

चल बे लिबरल...हमने तेरे वीडियो देखे हैं, तू किस तरह मुस्लिम और गे का समर्थन करता है.

अच्छा, तो अब आप मुझे वामपंथी इसलिए मानते हैं क्योंकि मैं एक उदारवादी हूं. आप इन दोनों को एक कैसे मान सकते हैं .मानता हूं कि सांस्कृतिक उदारवाद की कुछ चीजें वामपंथी विचारधारा से मेल खाती हैं लेकिन मैं वामपंथ की आर्थिक सोच के सख्त खिलाफ हूं.

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अबे, तू वामपंथियों के खिलाफ है तो उनके लेख क्यों छाप रहा है?

इसलिए क्योंकि मैं एक उदारवादी हूं. मैं उनसे असहमत हूं लेकिन अपनी विचाराधारा के प्रसार के उनके अधिकार के खिलाफ नहीं हूं. उदारवाद का मूल ही यही है- असहमतियों की आजादी का बचाव. अगर मैं एक समझदार संपादक बनना चाहता हूं तो मैं आपके लेख छापने के अधिकार का बचाव करूंगा. मैं अपने लेख में आपसे असहमत हो सकता हूं. अगर आप मुझे किसी वाद में बांधना ही चाहते हैं तो मैं कहूंगा कि ‘राइट ऑफ सेंटर लिबरल’ जरूर कह सकते हैं.

चुप बे, तू ‘राइट’ की तो बात ही मत कर. तू हिंदू-विरोधी है. तूने तो मुस्लिमों को स्टॉक ऑप्शन भी दे रखे थे.

अरे, बिल्कुल दिए थे. स्टॉक ऑप्शन तो मेरिट पर दिए जाते हैं. इसका आधार धर्म तो नहीं होता.जब मैंने अपना पहला कारोबार शुरू किया तो उसमें मैंने 5% हिस्सा एक बेहतरीन फिल्ममेकर और कैमरामैन को दिया. वो मुस्लिम थे लेकिन उससे क्या होता है? और ये हिंदू-विरोधी होने का लांछन आप कैसे लगा सकते हैं? पिछले 33 सालों से मैंने हरेक दिन हनुमान चालीसा को पढ़ा है क्योंकि मैं हनुमानजी का भक्त हूं.वैसे अच्छा हिंदू होने के लिए अगर कोई धर्मग्रंथ नहीं पढ़ा, कभी नहीं पढ़ा तो भी ठीक है.

होश में आ जा थोड़ा, ओ पाखंडी ओ. न तू कभी मंदिर में दिखता है न तू कभी नवरात्र में व्रत रखता है क्योंकि उस समय तू मांस-मदिरा खा रहा होता है.

अच्छा, ये बताइए कि कहां लिखा है कि मंदिर जाना जरूरी है? किस धर्मग्रंथ में लिखा है? भगवद् गीता में लिखा है? रामायण में लिखा है? खजुराहो की दीवारों पर लिखा है? मैं मंदिर इसलिए नहीं जाता क्योंकि मुझे एक ऐसी शारीरिक दिक्कत है जिसकी वजह से मैं अपने जूते नहीं उतार सकता. क्योंकि मंदिर में जाने पर पुजारी जूते पहनकर अंदर नहीं आने देते तो मैंने तय किया कि बेहतर है कि मैं मंदिर न जाऊं. लेकिन मान लो मुझे ये शारीरिक परेशानी नहीं होती तब भी शायद मैं कभी मंदिर के अंदर नहीं जाता क्योंकि मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. आप मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च जाएं अगर आपको अच्छा लगता है.अगर आपको अच्छा नहीं लगता तब भी कोई दिक्कत नहीं है.लेकिन हर रोज मैं अपने भगवान से प्रार्थना जरूर करता हूं.ये भी ठीक है कि नवरात्र में मैं खाता-पीता हूं, इससे इनकार नहीं है क्योंकि किसी भी तरह के कर्मकांड में मेरा कोई विश्वास नहीं है. लेकिन मैं अपने विचार किसी पर थोपता नहीं हूं. मेरी मां 9 दिन का उपवास रखती हैं मैं उनका सम्मान करता हूं. मैं कोई व्रत नहीं रखता तब भी वो मुझसे उतना ही प्यार करती हैं. इससे कोई दिक्कत नहीं हैं क्योंकि हम सब उदारवादी हैं.

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तो उसमें क्या गलती है? उनकी अपनी पहचान है. मुझे इस बात पर बहुत नाज है कि वो अपनी पहचान रखती हैं. भगवान कृष्ण भी तो आदमी और औरत की समानता को मानते थे.

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उस रात जब मैं जागा तो पसीने से लथपथ था. मुझे लग रहा था कि वो लोग मेरे मांस को हड्डी से नोच रहे हैं. मुझे थोड़ा वक्त लगा ये समझने में कि मैंने जो लिंचिंग देखी थी वो सच नहीं थी. मैंने बहुत बुरा सपना देखा था.जब मैंने खुद को शांत करने के लिए थोड़ा पानी पिया तब मुझे एहसास हुआ कि जो काली-भयानक रात में मैंने जो सपना देखा वो दरअसल हकीकत ही है.आज के भारत में अगर आप नास्तिक हैं या भगवान में विश्वास रखते हैं.आप कर्मयोगी हैं या मंदिर जाते रहते हैं. आप वामपंथी हैं या उदारवादी हैं, आप उपवास रखें या न रखें, मंदिर जाएं या न जाएं इन सबसे कुछ फर्क नहीं पड़ता क्योंकि अगर आप भीड़ से असहमत हैं तो आपको भगवान भी नहीं बचा पाएगा क्योंकि तब तो आप अर्बन नक्सल ही कहलाओगे.

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