कोई आखिर किसी बात का विरोध क्यों करता है? सोशल साइकोलॉजिस्ट का मानना है कि जब लोग अपने हालात को सही करने की कोशिश में आवाज उठाते हैं. तब वो विरोध करते हैं. हालात का यूं बिगड़ना पावर में बैठे लोगों की मनमानी, और खुद के फायदे के लिए फैसले लेने से जोड़ा गया है.
लेकिन जब कोई विरोध नहीं करता तो उसका क्या मतलब होता है? इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जब कोई समाजी न इंसाफी पर चुप्पी साध ले तो यकीनन या तो वो डर गया है, या फिर उसका प्रिविलेज उसके आड़े आ गया है.
कम्फर्ट किस तरह हमारी जुबान सील देता हैं इसी पर उर्दुनामा में सुनिए निदा फ़ाज़ली की ये नज़्म जिसमें वो लिखते हैं की 'उजली पोशाक, समाजी इज्जत, और क्या चाहिए जीने के लिए'.
बस यूँही जीते रहो
कुछ न कहो
सुब्ह जब सो के उठो
घर के अफ़राद की गिनती कर लो
टाँग पर टाँग रखे रोज़ का अख़बार पढ़ो
उस जगह क़हत गिरा
जंग वहाँ पर बरसी
कितने महफ़ूज़ हो तुम शुक्र करो
रेडियो खोल के फिल्मों के नए गीत सुनो
घर से जब निकलो तो
शाम तक के लिए होंटों में तबस्सुम सी लो
दोनों हाथों में मुसाफ़े भर लो
मुँह में कुछ खोखले बे-मअ'नी से जुमले रख लो
मुख़्तलिफ़ हाथों में सिक्कों की तरह घिसते रहो
कुछ न कहो
उजली पोशाक
समाजी इज़्ज़त
और क्या चाहिए जीने के लिए
रोज़ मिल जाती है पीने के लिए
बस यूँही जीते रहो
कुछ न कहो
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)