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पुलिस एनकाउंटर पर तालियां मत बजाइये, अगला निशाना आप भी हो सकते हैं

खाकी वर्दी की बेअंदाजी का काला सच हैं फेक एनकाउंटर 

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कैमरा- शिव कुमार मौर्या

वीडियो एडिटर- मोहम्मद इब्राहिम

उत्तर प्रदेश के चीफ मिनिस्टर योगी आदित्यनाथ कहते हैं-

पुलिस एनकाउंटर नहीं रुकेंगे.

आईजी (लॉ एंड ऑर्डर) रहे हरिराम शर्मा कहते हैं

एनकाउंटर क्राइम रोकने की पुलिस कार्रवाई का हिस्सा हैं.

हेडक्वार्टर में तैनात यूपी पुलिस के पीआरओ राहुल श्रीवास्तव लखनऊ के पास एक एनकाउंटर के बाद शान से ट्वीट करते हैं-

यूपी पुलिस की एनकाउंटर एक्सप्रेस राजधानी में रुकी.. अभी मीलों आगे जाना है.
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क्या कहते हैं ये बयान और ट्वीट्स? यही ना कि एनकाउंटर उत्तर प्रदेश सरकार की पॉलिसी है और पुलिस का एजेंडा. लेकिन क्राइम रोकने के नाम पर होने वाली ये कार्रवाई कब खुद एक खतरनाक क्राइम बन जाती है पता ही नहीं चलता- खाकी वर्दी का सरकार समर्थित क्राइम.

एनकाउंटर का मतलब क्या है?

मतलब यही ना कि आरोपी से आमने-सामने के दौरान अचानक ऐसी ‘अनचाही’ स्थिति पैदा हो जाए कि पुलिस को गिरफ्तारी के बजाए फायरिंग करनी पड़े. मसलन अपराधी ने भागने की कोशिश की, किसी को किडनैप करके जान से मारना चाहा या फिर उसने खुद ही पहले पुलिस पर गोली चला दी तो अपने बचाव में पुलिस ने भी फायर किया और आरोपी की मौत हो गई.

लेकिन अंदाजा लगाइये कि एक बेगुनाह अपने घर से निकलता है और अचानक रास्ते में किसी पुलिस वाले की सरकारी गोली का शिकार बन जाता है, बगैर किसी कसूर के.

और पुलिस वाले मौके पर उसका आई-कार्ड वगैरह प्लांट करके उसे अपराधी भी घोषित कर देंगे. यानी बात सिर्फ मौत पर नहीं रुकती. उसके बाद उसका परिवार ये साबित करने के लिए भटकता है कि वो अपना बेगुनाह था और उसकी मौत नहीं हुई बल्कि हत्या हुई है.

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कैमरे पर ‘ऑपरेशन एनकाउंटर’

हाल में टीवी टुडे ग्रुप के न्यूज चैनलों ने एक स्टिंग आपरेशन दिखाया. खुफिया कैमरे पर यूपी के कुछ पुलिसवाले सरेआम ये कहते दिखे कि वो पैसे लेकर किसी का भी एनकाउंटर कर सकते हैं. फिर चाहे वो शख्स बेगुनाह ही क्यों ना हो.

‘कानून के रखवालों’ में खुद ही कानून की धज्जियां उड़ाने की ये हिमाकत कहां से आती है? ये आती है हुक्मरानों से जो ना सिर्फ इसे समर्थन देते हैं बल्कि इस तरह के पोस्टर जारी करके एनकाउंटर की पैरवी करते हैं.

खाकी वर्दी की बेअंदाजी का काला सच हैं फेक एनकाउंटर 
जनवरी, 2018 में जारी हुआ था उत्तर प्रदेश सरकार का ये पोस्टर.
(फोटो: ट्विटर)
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कोर्ट, आयोग सब बेबस

26 सितंबर 2012 को एक केस पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था:

ये पुलिस ऑफिसर का काम नहीं है कि वो किसी को सिर्फ इसलिए मार दे क्योंकि वो शातिर अपराधी है. बेशक, पुलिस को उसे गिरफ्तार करके जांच करनी चाहिए... ऐसी हत्याओं का विरोध होना चाहिए.. ये सरकार समर्थित आतंकवाद है.

एक आरटीआई पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का जवाब था:

  • 2000 से 2017 के बीच देश भर में 1782 नकली एनकाउंटर हुए
  • उनमें से सबसे ज्यादा 794 अकेले उत्तर प्रदेश में हुए

नकली एनकाउंटर पर नजर रखने वाला मानवाधिकार आयोग बेबस है क्योंकि सिर्फ यूपी ही नहीं बल्कि ज्यादातर राज्य आयोग की गाइडलाइंस को धूल फांकती किसी पुरानी फाइल से ज्यादा कुछ नहीं समझते.

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विवादित एनकाउंटर की लंबी लिस्ट

सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, एनजीओ, सामाजिक संगठन- सबकी आपत्तियों के बावजूद देश भर में ऐसे हाई प्रोफाइल एनकाउंटर की लंबी लिस्ट है जिन्हें लेकर भारी शोर मचा.. विवाद हुआ.

  • नोएडा का जिम ट्रेनर एनकाउंटर (2018)
  • दिल्ली का बटला हाउस एनकाउंटर (2008). इसमें दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की भी मौत हो गई थी.
  • दिल्ली का ही अंसल प्लाजा एनकाउंटर (2002)
  • मुंबई का लखन भइया एनकाउंटर (2006)
  • गुजरात के इशरत जहां एनकाउंटर (2004) और
  • सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर (2005)

कौन सा एनकाउंटर असली है और कौन सा नकली- ये तय करना अदालत का काम है. लेकिन जब एनकाउंटर को खुलेआम सरकारी शह मिलने लगे और पुलिस ‘कॉंट्रेक्ट किलर’ बन जाए तो सावधान रहिए- अगला निशाना आप और हम भी हो सकते हैं.

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