एक ऐसा दौर था, जब अंग्रेजों के दौर में बंगाल देश का सबसे बड़ा सूबा था. 15 अगस्त को इसका विभाजन कर दिया गया. हिंदू बहुल पश्चिम बंगाल हिंदुस्तान के साथ रहा, वहीं मुस्लिम बहुल पूर्वी बंगाल, पूर्वी पाकिस्तान और फिर बांग्लादेश बन गया.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ वक़्त के लिए बंगाल के पास स्वतंत्र रहने का मौका था?
अप्रैल, 1947 में मुस्लिम लीग के नेता हुसैन शहीद सुहरावर्दी ने स्वतंत्र बंगाल राज्य का विचार सामने रखा था. वह बंगाल ना तो पाकिस्तान में जाता, ना हिंदुस्तान में. मतलब उसका विभाजन नहीं हुआ होता. मुस्लिम लीग के ज़्यादातर नेताओं ने इस विचार का विरोध किया. लेकिन विडंबना देखिए कि जिन्ना ने इस योजना का समर्थन किया था.
बंगाल कांग्रेस के नेता शरतचंद्र बोस और किरण शंकर रॉय ने सुहरावर्दी का समर्थन किया था, लेकिन पंडित नेहरू, सरदार पटेल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने योजना को खारिज कर दिया.
मई, 1947 में सुहरावर्दी और बोस ने अपना एकीकृत बंगाल समझौता पेश किया. यह वह आखिरी कोशिश थी, जिसमें बंगाली मुस्लिम और हिंदुओं ने अपनी मातृभूमि के बंटवारे को रोकने की कोशिश की थी.
20 जून, 1947 को बंगाल विधान परिषद की बैठक हुई, जिसमें तीन विकल्प रखे गए.
भारत में शामिल हुआ जाए.
पाकिस्तान में शामिल हुआ जाए.
बंगाल एक स्वतंत्र देश बने.
लेकिन तीन बार के वोटिंग सेशन में भी मामले का निराकरण नहीं हो पाया. इस बीच लॉर्ड माउंटबेटन ने भी स्वतंत्र बंगाल के विचार को खारिज कर दिया. तब बंगाल को चौथा विकल्प चुनना पड़ा और राज्य का विभाजन हो गया.
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