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नीतीशजी,बिहार में महिलाओं की सुरक्षा आपकी जिम्मेदारी नहीं है क्या?

अपराधी आखिर जंगलराज और सुशासन का फर्क कैसे भूलते जा रहे हैं?

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गांव में पंचायत ने तालिबानी फरमान सुनाया और 'मार-मार' की आवाजों के बीच लड़की को खंभे से बांधकर सरेआम पीटा गया. लड़की को पीटने की जो तस्वीरें सामने आईं, वो आपको बेचैन कर सकती हैं. वो किसी तालिबानी इलाके की नहीं, बिहार की तस्वीरें हैं. उस बिहार की जो एक जमाने में बूथ कैप्चरिंग से लेकर रंगबाजी और खुलेआम गुंडई के लिए बदनाम रहा, लेकिन उस बुरे दौर में भी लड़कियों के खिलाफ होने वाले अपराधों की तादाद कम हुआ करती थी.

6 मई को बगहा के कथैया गांव की इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पुलिस ने इसे संज्ञान में लिया और कार्रवाई की. मामले में 4 युवकों को गिरफ्तार किया गया. मामला त्रिकोणीय प्रेम-प्रसंग से जुड़ा बताया गया, जिसकी भनक लोगों को मिलने के बाद 3 मई को पंचायत के सामने इसे अंजाम दिया गया.

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एक नजर डालें, तो बीते कुछ महीनों में एक के बाद एक ऐसी दिल दहलाने वाली घटनाएं बिहार से सामने आई हैं, जो सोचने पर मजबूर कर देती हैं.

क्या सरकार और शासन से, सुशासन बाबू यानी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पकड़ ढीली पड़ रही है?

सीएम नीतीश कुमार की जवाबदेही बनती है. सिर्फ सड़क बनाने, बिजली की सुविधा और गठबंधन सरकार चलाने को ही तो सुशासन नहीं कहा जा सकता न. लगता है वो सुशासन में महिलाओं की हिस्सेदारी को जरूरी नहीं समझते. इसलिए न तो उन पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ नीतीश कुमार कुछ बोल रहे हैं और न ही उनकी सुरक्षा को लेकर गंभीर मालूम पड़ते हैं.

जहानाबाद की घटना को भूलना आसान नहीं है. 28 अप्रैल को एक नाबालिग लड़की के साथ छेड़छाड़ का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. वायरल वीडियो में खुलेआम सड़क पर एक साथ छह-सात युवक एक लड़की को पकड़कर उसके कपड़े उतारने की कोशिश करते नजर आ रहे थे और उसके साथ दुष्कर्म की कोशिश कर रहे थे.

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इस घटना को भूलना भी नहीं चाहिए. ताकि, याद रहे कि अभी बहुत कुछ है जो किया जाना बाकी है. ये कानून का कैसा खौफ है कि दिनदहाड़े किसी लड़की की इज्जत पर हाथ डालने से लड़के बाज नहीं आ रहे. वो इस पर ही नहीं रुकते बल्कि वीडियो बनाकर वायरल करने तक की हिम्मत उनमें आ जाती है.

बीते कुछ सालों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में बेतहाशा इजाफा हुआ है. साल 2010 में ऐसे अपराधों की संख्या 6,790 थी तो 2016 में बढ़कर 12, 783 हो गई.
  • क्या सुशासन की तस्वीर धुंधली पड़ने लगी है?
  • क्या कानून की सख्ती कम होने लगी है?
  • या ये सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है?

याद कीजिए, अक्टूबर 2017. बिहार की राजधानी पटना से महज 20 किलोमीटर दूर नौबतपुर इलाके में 22 साल के एक युवक ने दरिंदगी की सारी हदें पार करते हुए एक महिला की जान ले ली थी. हैवानियत की हद इतनी कि जब महिला ने आरोपी का विरोध किया तो उसने महिला के प्राइवेट पार्ट में लोहे का रॉड घुसा दिया. उस महिला की अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई.

खुलेआम इस तरह की दरिंदगी करने वाले अपराधी आखिर जंगलराज और सुशासन का फर्क कैसे भूलते जा रहे हैं?

ऐसे में सीएम नीतीश कुमार की जिम्मेदारी बनती है कि सिर्फ अपराधियों पर ही नहीं ऐसी मानसिकता वाली भीड़ पर भी नकेल कसने की जरूरत है.

“सीएम सर, उन्हें याद दिलाइए और खुद भी याद रखें कि आपने सुशासन राज कायम करने का वादा किया है और उसे बनाए रखने में भी विश्वास करते हैं.”

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