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गर्मियों में इन बातों का रखें ध्यान, नहीं घटेगा दूध का उत्पादन

गर्मी के मौसम में हवा के गर्म थपेड़ों और बढ़े हुए तापमान से पशुओं में लू लगने का खतरा बढ़ जाता है.

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गर्मियों का मौसम शुरू हो गया है. इस मौसम में ज्यादातर पशुपालक पशुओं के खान-पान पर ज्यादा ध्यान नहीं देते, जिससे दूध उत्पादन घट जाता है. इसलिए इस मौसम में पशुओं की विशेष देखभाल बहुत जरूरी है.

पशुचिकित्सक डॉ रुहेला बताती हैं "पशुओं को दिन में तीन से चार बार पानी पिलायें, उतनी बार ताजा पानी दें. सुबह और शाम नहलाना जरूरी है. गर्मियों में पशुओं का दूध घट जाता है इसलिए इनके खान-पान का विशेष ध्यान दें. हरा चारा और मिनिरल मिक्चर दें इससे पशु का दूध उत्पादन नहीं घटेगा. इस मौसम पशुओं को गलाघोटू बीमारी का टीका लगवा लें. यह टीका नजदीकी पशुचिकित्सालय में दो रुपए में लगता है."

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गर्मी के मौसम में हवा के गर्म थपेड़ों और बढ़े हुए तापमान से पशुओं में लू लगने का खतरा बढ़ जाता है. अधिक समय तक धूप में रहने पर पशुओं को सनस्ट्रोक बीमारी हो सकती है. इसलिए उन्हें किसी हवादार या छायादार जगह पर बांधे. इस मौसम में नवजात बच्चों की भी देखभाल जरूर करें. अगर पशुपालक उनका ढंग से ख्याल नहीं रखता है तो उसको आगे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

इन बातों का रखें ध्यान

  • सीधे तेज धूप और लू से नवजात पशुओं को बचाने के लिए पशु आवास के सामने की ओर खस या जूट के बोरे का पर्दा लटका देना चाहिए.
  • नवजात बच्चे के जन्म के तुरंत बाद उसकी नाक और मुंह से सारा म्यूकस (लेझा बेझा) बाहर निकाल देना चहिए.
  • यदि बच्चे को सांस लेने में ज्यादा दिक्कत हो, तो उसके मुंह से मुंह लगा कर सांस प्रक्रिया को ठीक से काम करने देने में सहायता पहुंचानी चहिए.
  • नवजात बछड़े का नाभि उपचार करने के तहत उसकी नाभिनाल को शरीर से आधा इंच छोड़ कर साफ धागे से कस कर बांध देना चहिए.
  • बंधे स्थान के ठीक नीचे नाभिनाल को स्प्रिट से साफ करने के बाद नये और स्प्रिट की मदद से कीटाणु रहित किये हुए ब्लेड की मदद से काट देना चहिए. कटे हुई जगह पर खून बहना रोकने के लिए टिंक्चर आयोडीन दवा लगा देनी चहिए.
  • नवजात बछड़े को जन्म के आधे घंटे के अंदर खीस पिलाना बेहद जरूरी होता है. यह खीस बच्चे के भीतर बीमारियों से लड़ने में मदद करता है.
  • अगर कभी बच्चे को जन्म देने के बाद मां की मृत्यु हो जाती है तो कृत्रिम खीस का प्रयोग भी किया जा सकता है. इसे बनाने के लिए एक अंडे को फेंटने के बाद 300 मिलीलीटर पानी में मिला देते हैं. इस मिश्रण में 1/2 छोटा चम्मच अरेंडी का तेल और 600 मिली लीटर पूरा दूध मिला देते हैं. इस मिश्रण को एक दिन में 3 बार 3-4 दिनों तक पिलाना चहिए.

इसके बाद यदि संभव हो तो नवजात बछड़े/बछिया का नाप जोख कर लें. साथ ही यह भी ध्यान दें कि कहीं बच्चे में कोई असामान्यता तो नहीं है. इसके बाद बछड़े/बछिया के कान में उसकी पहचान का नंबर डाल दें.

नवजात बछड़े/बछिया का आहार

नवजात बछड़े को दिया जाने वाला सबसे पहला और सबसे जरूरी आहार है मां का पहला दूध यानी खीस. खीस का निर्माण मां के द्वारा बछड़े के जन्म से 3 से 7 दिन बाद तक किया जाता है और यह बछड़े के लिए पोषण और तरल पदार्थ का प्राथमिक स्रोत होता है. यह बछड़े को आवश्यक प्रतिरोधक क्षमता भी उपलब्ध कराता है जो उसे संक्रामक रोगों और पोषण संबंधी कमियों का सामना करने की क्षमता देता है. यदि खीस उपलब्ध हो तो जन्म के बाद पहले तीन दिनों तक नवजात को खीस पिलाते रहना चाहिए.

जन्म के बाद खीस के अतिरिक्त बछड़े को 3 से 4 सप्ताह तक मां के दूध की आवश्यकता होती है. उसके बाद बछड़ा चारा-भूसा पचाने में सक्षम होता है. आगे भी बछड़े को दूध पिलाना पोषण की दृष्टि से अच्छा है लेकिन यह अनाज खिलाने की तुलना में महंगा होता है.

बछड़े को खिलाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बर्तनों को अच्छी तरह साफ रखें. इन्हें और खिलाने में इस्तेमाल होने वाली अन्य वस्तुओं को साफ और सूखे स्थान पर रखें.

(दिति बाजपेयी की ये रिपोर्ट गांव कनेक्शन से ली गई है.)

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