भ्रष्टाचार और काले धन पर लगाम लगाने का दावा करते हुए 8 नवंबर 2016 की रात अचानक नोटबंदी (Demonetization) लागू कर दी गई. पीएम मोदी (PM Modi) ने नोटबंदी का ऐलान कर सभी को चौंका दिया. जिसमें उन्होंने कहा- "हमने तय किया है कि आज रात 12 बजे के बाद पांच सौ रुपये और 1 हजार रुपये को नोट लीगल टेंडर नहीं होंगे."
पीएम मोदी ने अपने इस संबोधन में नोटबंदी को भ्रष्टाचार, काले धन और नकली करेंसी के खिलाफ एक महायज्ञ बताया था. साथ ही सभी लोगों से ईमानदारी के उत्सव और प्रमाणिकता के पर्व में शामिल होने की अपील की थी. इसे देश के शुद्धिकरण के तौर पर भी बताया गया.
वापस आरबीआई में आए पुराने नोट
नोटबंदी जब लागू हुई थी तो करीब 86 फीसदी करेंसी सर्कुलेशन में थी. 4 नवंबर 2016 को 17.74 ट्रिलियन करेंसी सर्कुलेशन में थी, साथ ही जब नोटबंदी लागू हुई, यानी 8 नवंबर 2016 को ये 15.44 ट्रिलियन हुई. पीएम मोदी को उम्मीद थी कि इनमें से कुछ हिस्सा वापस बैंकों तक नहीं पहुंच पाएगा. क्योंकि उन्होंने दावा किया था कि कुछ देशद्रोही और एंटी सोशल एलीमेंट्स के पास 500 और 1000 के नोट भारी संख्या में हैं, जो नोटबंदी के बाद अब बर्बाद हो चुके हैं.
इस नोटबंदी को महंगाई और भ्रष्टाचार को खत्म करने से सीधे जोड़ने के अलावा प्रधानमंत्री ने डिजिटल पेमेंट को भी खूब प्रमोट किया. उन्होंने कहा कि, किसी भी तरह के डिजिटल पेमेंट, चेक, डिमांड ड्राफ्ट और डेबिट-क्रेडिट कार्ड पर कोई रोक नहीं है. इन सभी तरीकों का लोग इस्तेमाल कर सकते हैं.
लेकिन आरबीआई ने अपनी 2016-17 की एनुअल रिपोर्ट में बताया कि, जिन नोटों को बंद किया गया था उनमें से 15.28 ट्रिलियन वापस बैंकों में आ गए. ये 30 जून 2017 तक का आंकड़ा बताया गया. यानी 98.96 फीसदी नोट फिर से बैंकों में वापस आए.
अगर आप सोच रहे हैं कि कुछ फीसदी नोट तो वापस नहीं आए, जिन्हें एक तर्क के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन इसका जवाब भी आरबीआई की तरफ से दिया गया. जिसमें कहा गया कि फिलहाल इस डेटा में कोऑपरेटिव बैंकों और नेपाल सेंट्रल बैंकों के आंकड़े शामिल नहीं हैं. साथ ही इसमें तमाम सरकारी एजेंसियों के जब्त किए गए नोट भी शामिल नहीं थे. ये सब नोट 15.28 ट्रिलियन रुपये की गिनती का हिस्सा नहीं थे.
यानी अप्रत्याशित रूप से बैन हुए नोटों में से 100% वापस प्राप्त हो गए या अन्यथा उनका हिसाब मिल गया. इसने कुछ संदेह पैदा किए कि क्या सर्कुलेशन में इन नोटों की गिनती कम बताई गई थी.
CIC या नकद भी जल्द ही अपने नोटबंदी के पहले के स्तर पर वापस आ गया था. नवंबर 2017 में नोटबंदी की पहली वर्षगांठ पर, CIC 16.13 ट्रिलियन (नोटबंदी पूर्व स्तर का 90%) तक पहुंच गया था.
वित्तीय वर्ष 2017-18 के अंत तक (नोटबंदी के 16 महीनों के बाद), CIC 18.17 ट्रिलियन रुपये तक पहुंच गया था, जो पूर्ण संख्या में नोटबंदी के पहले के CIC को पार कर गया था. CIC आज नोटबंदी की इस पांचवीं वर्षगांठ पर 29 ट्रिलियन रुपये से अधिक हो गया है, जो कि नोटबंदी पूर्व स्तर से लगभग 65% अधिक है.
चूंकि भारत की जीडीपी नॉमिनल टर्म में उतना नहीं बढ़ा है, CIC-से-जीडीपी का अनुपात आज नोटबंदी के वर्ष की तुलना में अधिक है.
लेकिन इसने नकली नोटों को काफी कम कर दिया
नोटबंदी से पहले बैंकों में नकदी जमा करते समय लोगों को या उनसे नकली नोटों का मिलना काफी आम था. अधिकांश बैंकरों और लोगों ने औपचारिक रूप से इसे रिपोर्ट करने या पुलिस के पास FIR दर्ज करने के बजाय ऐसे नोटों को नष्ट करना पसंद किया.
2015-16 में आरबीआई द्वारा बताए गए 274 मिलियन रुपये के 500 और 1000 रुपये के नकली नोट निश्चित रूप से बहुत काम रिपोर्ट किए गए मूल्यांकन थे.
असली अपराधी - हाई क्वॉलिटी वाले नकली नोट - नोटबंदी के बाद लगभग गायब हो गए. हालांकि पुलिस द्वारा लो क्वॉलिटी वाले नकली नोट जब्त किए जाने के कई उदाहरण थे. नोटबंदी के बाद कम से कम एक वर्ष के लिए ₹2000 के एक भी हाई क्वॉलिटी वाले नकली नोट का पता नहीं चला.
जम्मू-कश्मीर और अन्य जगहों पर आतंकवादी गतिविधियों को फाइनेंस करने वाले जाली नोटों के उदाहरण भी नोटबंदी से पहले की अवधि में असामान्य नहीं थे. नोटबंदी के बाद पथराव और अन्य आतंकवादी गतिविधियों की घटनाओं में काफी समय के लिए कमी देखी गई.
कई कंपनियों को संगठित (फॉर्मल) सेक्टर में लाया गया
भारत की अर्थव्यवस्था में इंफॉर्मल सेक्टर का ज्यादा योगदान है. देश में लगभग 95 फीसदी व्यापार इंफॉर्मल सेक्टर में काम कर रहा है जो करोड़ों लोगों को रोजगार भी दे रहा है. इस सेक्टर का ज्यादातर काम नगदी पर निर्भर करता है जिसकी वजह से ये इनकम टैक्स देने और वैट देने से बच जाते हैं.
डिमॉनिटाइजेशन की वजह से सारी नगदी बाहर हो गई थी जिसने इसकी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया. शॉर्ट रन में यह काफी दर्दनाक साबित हुआ, लेकिन इसने कई कंपनियों को फॉर्मल सेक्टर में लाने के लिए प्रोत्साहित किया. इतने बड़े स्तर पर इंफॉर्मल सेक्टर की वजह से भारत की 5 ट्रिलियन डॉलर इकनॉमी का सपना भी पूरा नहीं हो सकता.
डिमॉनेटाइजेश की वजह से जुलाई 2017 में लागू हुए वस्तु और सेवा कर (GST) के तहत कई कंपनियां रजिस्टर हुईं. इनकम टैक्स भरने वालों की भी संख्या में वृद्धि हुई.
कोरोना के बाद डिमॉनेटाइजेशन की वजह से फॉर्मल सेक्टर में आ रही कंपनियों को और प्रोत्साहन मिला. भारत की जीडीपी में इंफॉर्मल सेक्टर की हिस्सेदारी पिछले पांच सालों में काफी कम हुई है.
लेकिन काले धन का पता लगाने में यह विफल रहा
डिमॉनेटाइजेशन का मुख्य उद्देश्य 500 और 1000 रुपए के नोटों में जमा काले धन को कानूनी रूप से अवैध करना था. सरकार ने तो कभी नहीं बताया कि कितना काला धन निकला लेकिन कई सरकारी अधिकारी बताते हैं कि लगभग पांच ट्रिलियन से ज्यादा का काला धन नष्ट हुआ है.
या तो 15 ट्रिलियन से ज्यादा काले धन को जमा नहीं किया गया था, या तो फिर काला धन रखने वालों ने डिमॉनेटाइजेशन के वक्त रही व्यवस्था में खामियों का फायदा उठाकर पैसों को वैध करवा लिया. क्योंकि तथ्य यह है कि पूरी विमुद्रीकृत (डिमॉनेटाइज्ड) करेंसी आरबीआई के पास वापस आ गई थी.
17.92 लाख 'संदिग्ध' खाते
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने डिमॉनेटाइजेशन के बाद बैंक में जमा हुए सारे नोटों और खातों का सर्वे किया. जिसमें आयकर विभाग ने कुल 17.92 लाख खातों को संग्दिग्ध पाया. इन खातों में 2.5 लाख रुपए से ज्यादा जो डिमॉनेटाइज्ड करेंसी का लगभग 25 फीसदी जमा किया गया था.
आयकर विभाग ने नोटिस जारी किए, एसओपी के तहत स्पष्टीकरण मांगा और जांच/पूछताछ की. जबकि यह प्रक्रिया अभी भी चल रही है, पूछताछ से ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि टैक्स के रूप में बहुत अधिक नकद राशि प्राप्त हुई है.
सरकार ने काले धन की घोषणा करने के लिए इन एसबीएन के धारकों को टारगेट करने वाली एक माफी योजना - प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना - की भी घोषणा की. यह एक हलकी स्कीम साबित हुई और इससे 5,000 करोड़ रुपये से कम की राशि इकठ्ठा हुई.
डिजिटल भुगतान का 'संयोग से' नोटबंदी का एक 'संबंध' बना
बड़े पैमाने पर कैश की कमी के साथ नोटबंदी के तत्काल बाद लोगों को अपनी दिन-प्रतिदिन की खरीदारी के लिए भुगतान करने के तरीके ढूंढ़ने के लिए संघर्ष करना पड़ा. डिजिटल पेमेंट वॉलेट कंपनियों के साइन अप करने के लिए काफी भीड़ थी. जैसे ही अर्थव्यवस्था पहले जैसे हुई इस मजबूर रिसोर्स ने अपनी क्षमता खो दी.
सरकार डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए कई अन्य प्रचार योजनाएं लेकर आई , जैसे- कार्ड के इस्तेमाल के लिए कोई शुल्क नहीं लगना और अधिकांश सरकारी भुगतान कार्ड से हो जाना. मर्चेंट उपयोगकर्ता के शुल्क में भी छूट/कमी की गई थी
इन उपायों ने मदद की लेकिन नोटबंदी के बाद एक साल के अंत में डिजिटल भुगतान के विस्तार में मुश्किल से 10% की बढ़ोतरी हुई.
भुगतान के लिए यूपीआई जैसे नए विचारों, क्यूआर कोड के उपयोग और अच्छी गुणवत्ता वाली फिनटेक कंपनियों के प्रसार ने पिछले चार वर्षों में डिजिटल भुगतान को अपनाने को काफी बढ़ावा दिया है. COVID-19 महामारी के दौरान इस बदलाव को और तेजी मिली.
देश में डिजिटल भुगतान के विस्तार पर वास्तविक जोर है. भारत तेजी से डिजिटल भुगतान को जीवन के तरीके के रूप में अपना रहा है, हालांकि अभी भी 80% से अधिक भुगतान (लेन देन की प्रतिक्रिया में) नकद में किए जाते हैं.
2000 रुपये का नोट एक टेम्पररी व्यवस्था
500 और 1000 रुपये के नोटों को उच्च मूल्य (हाई वैल्यू ) के नोट माना जाता था, जो नोटबंदी के लायक थे. ये भारत में सबसे अधिक वैल्यू वाले नोट थे, हालांकि यूएस डॉलर, यूरो-€ या ब्रिटिश-पाउंड की अपनी वैल्यू के संदर्भ में ये नोट शायद ही उच्च मूल्य के थे.
इस आधार पर कि काले धन के जमाकर्ता इन बड़े नोटों में नकदी जमा करते हैं और पड़ोसी देश अपने नकली नोट छापते हैं, इन नोटों को बंद कर दिया गया. यह अजीब विडंबना थी कि नोटों का दोबारा मुद्रीकरण 2000 रुपये के एक बड़े नोट से हुआ.
सरकार ने नोटबंदी के बाद अगले कुछ महीनों में सात लाख करोड़ रुपये से अधिक के 2000 रुपये के नोट जारी किए ताकि सिस्टम में आवश्यक नकदी का निर्माण किया जा सके.
हालांकि ये 2000 का नोट उन नोटों से अधिक मूल्य का था जिनका उपयोग लोग रोज के लेन-देन में कर सकते थे और जैसी उम्मीद थी यह नोट लोगों को रास नहीं आया. इसकी ज्यादा मांग नहीं थी.
जुलाई 2017 में इसकी छपाई बंद कर दी गई थी. वर्षों से 2000 रुपये के नोट चलन में कम हो रहे हैं. आरबीआई की रिपोर्ट है कि वित्त वर्ष 2020-21 के अंत तक 2000 रुपये के जो नोट चलन में है वो 5 ट्रिलियन रुपये से कम मूल्य के हो गए हैं.
चूंकि ये नोट पिछले तीन सालों में लगभग एक ट्रिलियन रुपये प्रति वर्ष कम हो रहे हैं, 2000 रुपये के नोट अगले पांच सालों में कम सर्कुलेट होने के कारण बंद होने की संभावना है. अगर आरबीआई इन्हें उससे पहले बंद करने का फैसला नहीं
500 रुपये का नोट भारत में नकदी का संकट बन गया है और भविष्य में बना रहेगा.
नोटबंदी का कुछ लाभ था, लेकिन बहुत नुकसान के साथ
पांच साल पहले किए गए नोटबंदी के झटके को देखते हुए, कोई भी अर्थव्यवस्था और लोगों के जीवन पर इसके असर के संदर्भ में फैसले के खामियाजे को नोट करने में फेल नहीं हो सकता है.
भारत की बड़ी टैक्स चोरी करने वाली अनौपचारिक अर्थव्यवस्था' को 'जबरन औपचारिक' करने में व्यवसायों और रोजगार में नुकसान के कारण होने वाला दर्द बर्दाश्त करने के लायक था. लेकिन भ्रष्टाचार और काले धन के खात्मे पर इसका असर शायद ही नजर आया हो. कम से कम शुरू में आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने और नकली धन के उत्पादन पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ा.
ऑपरेशन की प्रकृति के कारण इसका इम्प्लीमेंटशन खराब था और इससे काफी नुकसान हुआ. बहरहाल यह काफी कम समय में पूरा हुआ.
अपनी पांचवीं वर्षगांठ के वक्त तक नोटबंदी के बहुत कम लंबे समय तक रहने वाले प्रभावों के साथ इस प्रकरण को भारत के मौद्रिक इतिहास में शामिल करने का समय आ गया है.
(लेखक एक अर्थव्यवस्था, वित्त और राजकोषीय नीति रणनीतिकार और भारत सरकार के पूर्व वित्त और आर्थिक मामलों के सचिव हैं. यह एक राय है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है. )
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)