ADVERTISEMENTREMOVE AD

अमरनाथ झा: 24 की उम्र में लंदन पोएट्री सोसाइटी,हिंदी के लिए संघर्ष

महज 24 साल की उम्र में झा न सिर्फ देश में, बल्कि विदेशों में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके थे

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

हिंदी को राजभाषा बनाने के लिए बने आयोग के महत्त्वपूर्ण सदस्यों में से एक थे प्रसिद्ध हिंदी-प्रेमी अमरनाथ झा. अमरनाथ झा के हिंदी को राजभाषा बनाने के सुझाव को आयोग के अन्य सदस्यों ने भी एकमत से स्वीकार किया था और फिर बाद में इसी सुझाव पर हिंदी को ‘राजभाषा’ का दर्जा दे दिया गया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
“हिंदी का कई शताब्दियों का अपना अनवरुद्ध इतिहास है. हिंदी कविता साहित्य को- तुलसीदास और सूरदास की अमर निधियों को भी- गांवों की जनता पढ़ती और समझती है. उत्तरी भारत में शायद ही कोई ऐसा गांव हो, जहां शाम को पेड़ के नीचे अथवा अलाव के सहारे आप ग्रामीणों की टोली में हिंदी कविता पाठ होता हुआ न देखें.”
अमरनाथ झा

छोटी-सी उम्र में मनवाया अपनी प्रतिभा का लोहा

प्रसिद्ध शिक्षाविद अमरनाथ झा का जन्म 25 फरवरी, 1897 को बिहार के मधुबनी में हुआ था. इनकी शिक्षा-दीक्षा इलाहाबाद में हुई. जब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से इन्होंने एम.ए. की परीक्षा पास की तो पूरी यूनिवर्सिटी में ‘पहला स्थान’ प्राप्त किया. सिर्फ 20 साल की उम्र में ये म्योर कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर बन गए थे. 24 साल की उम्र को पहुंचते-पहुंचते ये न सिर्फ देश में, बल्कि विदेशों में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके थे.

यह वह वक्त था, जब गिने-चुने लोग ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाते थे और इसी श्रेणी के व्यक्ति थे अमरनाथ झा. सिर्फ 24 साल की उम्र में ये लंदन की ‘पोएट्री सोसाइटी’ के वाइस-प्रेसिडेंट बने. इनके इस पोस्ट पर पहुंचने की बात भारत में तो चर्चा का विषय बनी ही थी, बल्कि पूरे इंग्लैंड में भी इनकी बड़ी चर्चा रही, जिससे अंग्रेज हैरत में रहे कि इतनी कम उम्र में भारत का कोई नौजवान भी ‘ग्रेट स्कॉलर’ बन सकता है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

एक किस्सा कुछ ऐसा भी

अमरनाथ झा शायर मिजाज के व्यक्ति भी थे. उस वक्त के एक मशहूर शायर गुजरे हैं फ़िराक़ गोरखपुरी. शेर-ओ-शायरी की दुनिया में फ़िराक़ गोरखपुरी एक बहुत ही जाना-पहचाना नाम है. यह उस वक्त की बात है, जब अमरनाथ झा और फ़िराक़ गोरखपुरी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का हिस्सा हुआ करते थे.दोनों ही विद्वान व्यक्ति थे.

एक दिन अमरनाथ झा स्टेज से लगातार एक के बाद एक शेर की बौछार कर रहे थे. इनका मूड उस दिन बड़ा ही शायराना था. एक शेर सुनाकर खत्म करते नहीं थे कि चाहने वाले अगले शेर की फरमाइश कर बैठते. उस वक्त स्टेज पर फ़िराक़ गोरखपुरी भी मौजूद थे. अमरनाथ झा को मिल रही वाहवाही देखकर फ़िराक़ गोरखपुरी मुस्करा रहे थे, लेकिन उनकी मुस्कराहट तब गायब हो गई, जब कमजोर शेरों पर भी अमरनाथ झा को दाद मिलने लगी. अमरनाथ झा जैसे ही अपनी जगह पर आकर बैठे, तो फ़िराक़ गोरखपुरी अपनी जगह से उठे और बोले : “तो कव्वाली खत्म हुई, अब शेर सुनिए.” उनका इतना कहना था कि अमरनाथ के चाहने वालों के बीच सन्नाटा पसर गया. किसी ने फौरन कह दिया कि कुछ भी हो, अमरनाथ झा आपसे हर मामले में बेहतर हैं. इस पर फ़िराक़ गोरखपुरी ने भी पलटवार करते हुए कह दिया कि अमरनाथ मेरे भी बहुत अच्छे दोस्त हैं और मैं यह बात अच्छी तरह जानता हूं कि इन्हें अपनी झूठी तारीफ़ें सुनना बिल्कुल भी पसंद नहीं है. फ़िराक़ गोरखपुरी की इस हाजिर जवाबी पर अमरनाथ झा हंसने लगे और इस तरह जो माहौल थोड़ा तल्ख हो गया था, वह फिर से खुशगवार हो गया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

शिक्षाविद के साथ-साथ आला दर्जे के साहित्यकार

अमरनाथ झा शिक्षा के स्तंभ तो थे ही, साथ ही एक आला दर्जे के साहित्यकार भी थे और इसी के साथ एक आला दर्जे के भाषाविद भी. इनकी न सिर्फ हिंदी पर जबरदस्त पकड़ थी, बल्कि संस्कृत, उर्दू और अंग्रेजी का भी इन्हें बहुत अच्छा ज्ञान था. इन्होंने इन भाषाओं में कई महत्त्वपूर्ण किताबें भी लिखीं.‘शेक्सपियर कॉमेडी’ से लेकर ‘हिंदी साहित्य संग्रह’ और ‘पद्म पराग’ तक और ‘लिटरेरी स्टोरीज’ से लेकर ‘संस्कृत गद्य रत्नाकर’ तक इन्होंने कई प्रसिद्ध किताबें लिखकर आला दर्जे के साहित्यकारों में अपना नाम दर्ज करा लिया. समकालीन साहित्यकारों ने भी इनकी साहित्यिक सेवा को खूब सराहा है.

हिंदी के प्रति इनका लगाव जगजाहिर था. इन्होंने खुद अपनी किताब ‘विचारधारा’ में हिंदी की प्रशंसा करते हुए लिखा है-

“हिंदी भाषा में एक विलक्षणता है, जिसका उल्लेख आवश्यक है. हमारे ज्ञान में बहुत कम ऐसी भाषाएं हैं, जिनमें महिलाओं ने इतनी रचना की हो, जितनी हिंदी में... आधुनिक काल में तो लेखिकाओं की संख्या बहुत बढ़ी है. कोई हिंदी साहित्य के इतिहास को पूर्ण नहीं कह सकता है जिसमें श्री सुभद्राकुमारी चौहान, श्री महादेवी वर्मा, श्री तारा पांडेय... श्री सावित्री देवी की कृति का विवरण न हो.”
अमरनाथ झा

देश-विदेश में अपनी विद्वत्ता का डंका बजाने वाले और हिंदी को एक सम्माननीय स्तर तक ले जाने और उसे ‘राजभाषा’ बनाने के लिए अथक प्रयास करने वाले प्रसिद्ध विद्वान एवं साहित्यकार अमरनाथ झा ने 58 साल की उम्र में 2 सितंबर, 1955 को यह दुनिया छोड़ दी. इनकी मृत्यु से एक साल पहले 1954 में इन्हें शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देने के लिए भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया था.प्रसिद्ध भाषाविद अमरनाथ झा जैसे लोग बहुत ही कम हैं, जिन्होंने हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी साहित्य को समृद्ध करने का सराहनीय कार्य किया. ऐसे अमर साहित्यकार को न सिर्फ ‘हिंदी-प्रेमी’ के रूप में, बल्कि हिंदी को ‘राजभाषा’ का दर्जा दिलाने वाले व्यक्ति के रूप में भी हमेशा याद रखा जाएगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(एम.ए. समीर कई वर्षों से अनेक प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थानों से जुड़े हुए हैं. वर्तमान समय में स्वतंत्र लेखक, संपादक, कवि एवं समीक्षक के रूप में कार्यरत हैं. 30 से अधिक पुस्तकें लिखने के साथ-साथ अनेक पुस्तकें भी संपादित कर चुके हैं.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×