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बाइडेन से बहुत पीछे हो गए ट्रंप- चुनाव से 5 महीने पहले 5 झटके

अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद प्रदर्शनों को दबाने की ट्रम्प की कोशिशें नाकाम हुई हैं

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डोनाल्ड ट्रम्प की बौखलाहट लगातार बढ़ती जा रही है. अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की दर्दनाक हत्या के बाद पुलिस हिंसा के खिलाफ पूरे देश में जो प्रदर्शन हो रहे हैं उनको दबाने की ट्रम्प की कोशिशें नाकाम हुई हैं. जिस ज़ुबान में उन्होंने अमेरिकी लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता और अंदरूनी मामलों में सेना की भूमिका को विकृत करने की कोशिश की है उसका अमेरिका में विरोध बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है. सबसे बड़ी बगावत उसी फौजी सिस्टम से आ रही जिसकी उन्होंने राजनीतिक दुरुपयोग करने की कोशिश की है. एक नजर पांच बड़े झटकों पर-

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1. ट्रंप को सबसे बड़ा झटका उनके खुद के प्रशासन से लगा है. मौजूदा डिफेंस सेक्रेटरी मार्क एस्पर ने कहा कि विरोध प्रदर्शनों के लिए फौज में एक्टिव ड्यूटी में लगे लोगों का इस्तेमाल नहीं हो सकता. सेना के टॉप कमांडर मार्क मिली ने तो अपने मातहतों को मेमो भेज कर कहा कि उनका काम संविधान की रक्षा करना है. बोलने की आजादी और शांतिपूर्ण विरोध लोगों का संवैधानिक अधिकार है.

देश के आधा दर्जन से अधिक रिटायर्ड रक्षा और सैन्य अधिकारी ट्रंप के खिलाफ अपनी बातें सामने रख चुके हैं. ट्रंप के डिफेंस सेक्रेटरी रह चुके जिम मैटिस ने कहा कि उन्होंने जीवन में पहला ऐसा राष्ट्रपति देखा है, जो अमेरिकन लोगों को जोड़ता नहीं, जोड़ने का दिखावा भी नहीं करता, बल्कि लोगों में दरार डालता है.

2. ट्रंप को दूसरा झटका लगा है चुनाव के पहले अप्रूवल रेटिंग में उनका तेजी से गिरता हुआ कि ग्राफ. ताजा चुनावी सर्वेक्षणों में अब संभावित डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडेन उनसे काफी आगे चल रहे हैं- 49 पर्सेंट बनाम 40 पर्सेंट. दरअसल रिपब्लिकन पार्टी के अंदरूनी सर्वे भी ट्रंप को यही बता रहे हैं कि उनके मज़बूत राज्यों में भी वोटर खिसक रहा है. यही वजह है कि अमेरिका को बर्बाद करने वाले कामों के बीच भी ट्रंप अपनी चुनावी टीम के साथ बैठकों में जुटे हुए हैं.

2016 के चुनावों में ट्रंप व्हाइट और छात्रों के वोट से जीते थे. जिन राज्यों में यह वोट सबसे ज्यादा काम आए थे वो है मिशीगन, विस्कॉन्सिन, ओहायो और एरिजोना. ताजा चुनावी सर्वेक्षण बताते हैं कि इन्हीं राज्यों में जिन वोटरों में उनकी बढ़त थी वो करीब-करीब खत्म हो गई है. सिर्फ इक्का दुक्का राज्य हैं, जहां वो आगे दिख रहे हैं, लेकिन 25 पर्सेंट की लीड घटकर एक दो पर्सेंट में सीमित हो गई है.

3. तीसरा झटका उनकी पार्टी रिपब्लिकन पार्टी के नेता दे रहे हैं. अलास्का की रिपब्लिकन वरिष्ठ सेनेटर लीसा मर्कावस्की का बयान आया है कि ट्रंप इस तरह की हरकतें कर रहे हैं कि उनके लिए चुनाव में उनका समर्थन कर पाना बहुत मुश्किल हो गया है. दूसरे सेनेटर लिंडसे ग्राहम ने डिफेंस सेक्रेटरी एस्पर के बयान को सही ठहराकर एंटी ट्रंप सिग्नल दे दिया है. ऐसे दर्जनों बड़े रिपब्लिकन नेता ट्रंप को अब बोझ बता चुके हैं.

4. चौथा झटका भी अमेरिकी समाज के अच्छे गुण बताता है. अमेरिकी कैथोलिक चर्च के कई बड़े धर्मगुरू भी ट्रंप की आलोचना कर चुके हैं और पोप फ्रांसिस भी फ्लॉयड की हत्या पर दुख जता चुके हैं. पोप ने कहा है कि नस्लभेद का पाप निंदनीय है.

5. ट्रम्प पर दबाव और तनाव की लिस्ट काफी लंबी है. कोरोना को काबू करने में उनकी विफलता एक अलग ही कहानी है. अब तक एक लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. लॉकडाउन के चलते अब तक सवा चार करोड़ लोग बेरोजगारों के तौर पर रजिस्टर्ड हो चुके हैं.

फ्लॉयड की हत्या के बाद जाहिर है कि पूरा देश नए सिरे से सोच रहा है और ध्रुवीकृत हो रहा है. ऐसे में ट्रंप को लगता है कि पांच जून को जो रोजगार के आंकड़े आए हैं उसे वो अपनी बहुत बड़ी सफलता के रूप में पेश कर सकते हैं.
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मई महीने में 25 लाख नई नौकरियां बनी है. पिछले दस दिनों की दुर्दशा के बाद ट्रंप इसी खबर पर अब ढिंढोरा पीटते हुए नजर आएंगे. रोजगार के आंकड़ों से शायद ट्रंप सुर्खियां बदल नहीं पाएंगे. फ्लॉयड की मौत के बाद ट्रंप ने फौज को अपनी राजनीति के केंद्र बिंदु मे लाकर रख दिया है. अमेरिका के लिए ये वक्त बहुत नाजुक है. उसके सामने चुनाव साफ है कि ट्रंप की प्रेसिडेंसी बचाए या खुद को और अपने लोकतंत्र को खत्म होने से बचाए. जवाब पांच महीने बाद मिलेगा.

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