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कश्मीर में पहाड़ियों को ST दर्जा देने का क्या मतलब, गुर्जर-बकरवाल का क्या होगा ?

Kashmir में पहाड़ी समाज के जरिए BJP क्या हासिल करना चाहती है?

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"आज के कार्यक्रम में आए हुए मेरे गुर्जर-बकरवाल और प्यारे पहाड़ी भाई बहनों को मेरा नमस्कार. जम्मू-कश्मीर में आज की ये रैली,उन लोगों के लिए जवाब है, जो कहते थे कि अनुच्छेद 370 हटेगा तो जम्मू-कश्मीर में आग लग जाएगी, खून की नदियां बह जाएंगी. सबसे पहले पहले मैं सभी पहाड़ी भाइयों बहनों को प्रणाम करना चाहता हूं."

तीन दिवसीय जम्मू कश्मीर दौरे पर देश के गृह मंत्री और बीजेपी नेता अमित शाह (Amit Shah) के पहले दिन के भाषण का केंद्र पहाड़ी समुदाय रहा. पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST tag) का दर्जा दिए जाने की सालों से चली आ रही मांग पर अमित शाह ने मुहर लगाते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर के गुर्जर, बकरवाल की तरह पहाड़ी समुदाय के लोगों को आरक्षण मिलेगा.

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ऐसे में अमित शाह के भाषण और पहाड़ी समुदाय के लिए आरक्षण दिए जाने के वादे से कई अहम सवाल निकलकर आए हैं. पहला कि पहड़ी समाज के जरिए बीजेपी क्या हासिल करना चाहती है? इस फैसले का असर कश्मीर की राजनीति पर क्या पड़ेगा? क्यों गुर्जर-बकरवाल समुदाय पहाड़ियों के आरक्षण से नाराज हैं?

पहाड़ी वोट पर नजर

राजौरी की रैली में अमित शाह ने बताया कि जम्मू-कश्मी में गुर्जर, बकरवाल और पहाड़ी समुदायों के लिए आरक्षण की तैयारी है और इसे लेकर कमीशन ने सिफारिशें भेज दी हैं. केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा,

'जस्टिस शर्मा कमीशन ने अपनी सिफारिशें भेज दी हैं. उसमें बकरवाल गुर्जर और पहाड़ी तीनों को आरक्षण की सिफारिश की है. देश के पीएम का बहुत बड़ा मन है. सिफारिशों की प्रशासनिक प्रक्रिया समाप्त होते ही तीनों समुदायों को आरक्षण का लाभ मिलने वाला है.'

अमित शाह के इन वादों को चुनाव की नजर से देखें तो जम्मू-कश्मीर के राजौरी, हंदवाड़ा, पुंछ और बारामूला जैसे इलाकों में पहाड़ी समुदाय की बड़ी आबादी है. गुर्जर और बकरवाल, जो इस्लाम धर्म को मानते हैं, उनकी राजौरी और पुंछ के सीमावर्ती जिलों में 40% आबादी है, बाकी इन क्षेत्रों में रहने वाले खुद को पहाड़ी के रूप में पहचानते हैं. मतलब एक बड़ा वोट बैंक.

ऐसे में बीजेपी की नीयत पहाड़ी वोटरों खासकर हिंदू वोटरों पर मजबूत पकड़ बनाए रखने की है. साथ ही मुसलमान पहाड़ियों को भी आरक्षण का फायदा पहुंचाकर उन्हें अपने साथ लाने की बीजेपी की एक कोशिश के रूप में भी देखा जा सकता है. ताकि महबूबा मुफ्ती और फारुख अब्दुल्ला के वोट में फूट पड़ सके.

जम्मू कश्मीर की करीब 10 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर पहाड़ी समुदाय जीत-हार का फैक्टर बन सकते हैं. यही वजह है कि अमित शाह ने अपने जम्मू-कश्मीर दौरे के पहले दिन ही गुर्जर, बकरवाल और पहाड़ी समाज के प्रतिनिधियों के साथ मुलाकात की.

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गुर्जर-बकरवाल नाराज, लेकिन उन्हें भी मनाने की कोशिश

अमित शाह के इस दौरे से ठीक पहले जम्मू-कश्मीर के गुर्जर और बकरवाल समाज के लोग पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति यानी एसटी में शामिल करने का विरोध कर रहे थे. बकरवाल समुदाय के लोगों का मानना है कि पहाड़ियों को आरक्षण मिलने से उनके आरक्षण में कटौती होगी, साथ ही तर्क ये है कि पहाड़ी समुदाय कोई एक जातीय समूह नहीं हैं, बल्कि अलग-अलग धार्मिक और भाषाई समुदायों का समूह है. 

हालांकि बीजेपी ने पहाड़ी वोटर के साथ-साथ गुर्जर वोटरों को भी लुभाने की कोशिश की है. अभी हाल ही में बीजेपी ने गुर्जर समुदाय से आने वाल मुस्लिम इंजीनियर गुलाम अली खटाना को मनोनीत सदस्य के तौर पर राज्यसभा भेजा था.

यही नहीं अमित शाह ने पहाड़ियों को अनुसूचिज जनजाति की लिस्ट में शामिल करने की बात जब कही तब साथ में ये भी कहा,

'मेरा वादा है कि पहाड़ी भी आएंगे और गुर्जर बकरवाल का एक फीसदी भी कम नहीं होगा. फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है.

इससे साफ है कि बीजेपी पहाड़ी वोटरों के लिए गुर्जर और बकरवाल समुदाय के वोटरों को नाराज नहीं कर सकती है और दोनों को आरक्षण की 'रेवड़ी' देकर अपने पाले में रखना चाहती है.

राजौरी और बारामूला में पहाड़ियों के साथ गुर्जर और बकरवाल की भी बड़ी आबादी है. ऐसे में अब गुर्जर-बकरवाल और पहाड़ियों को एसटी का दर्जा देकर बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर में कई सीटें अपने नाम करने का राजनीतिक कदम उठाया है.

बता दें कि अप्रैल 1991 से, सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में गुर्जर और बकरवाले को अनुसूचित जनजातियों को 10% आरक्षण का फायदा मिलता रहा है. 2011 की जनगणना के मुताबिक लगभग 15 लाख की आबादी के साथ, गुर्जर और बकरवाल कश्मीरियों और डोगराओं के बाद जम्मू-कश्मीर में तीसरा सबसे बड़ा जातीय समूह है.
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अमित शाह के ऐलान का विपक्षी पार्टियों पर क्या असर होगा?

अमित शाह के ऐलान से पहले ही विपक्षी पार्टियों ने पहाड़ियों के आरक्षण दिए जाने के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी थी. जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा था कि बीजेपी आरक्षण कार्ड का इस्तेमाल कर समुदायों के बीच दरार पैदा कर रही है.

कश्मीर में ग्लोबल न्यूज सर्विस के ब्यूरो चीफ एमएस नाजकी बताते हैं कि पहाड़ी इलाके के लोग पहले पीडीपी, एनसी, कांग्रेस को वोट करते रहे हैं. लेकिन आर्टिकल 370 हटने के बाद से लेकर अबतक चुनाव नहीं हुए हैं. नाजकी ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद परिसीमन प्रक्रिया के बाद 90 सदस्यीय विधानसभा का गठन हुआ है. मतलब अब कश्मीर में 90 सीटों पर विधानसभा चुनाव होंगे. नाजकी कहते हैं,

पहाड़ी भाषी लोगों को पहले से ही कश्मीर में 4 फीसदी आरक्षण है. लेकिन अब मांग थी कि जैसे पूरे देश में ST रिजर्वेशन मिलता है वैसे ही पहाड़ियों को भी आरक्षण मिले. इसका फायदा बीजेपी को हो सकता है.

कश्मीर के एक पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बीजेपी जम्मू के हिंदू वोटरों को एक करना चाहती है, साथ ही कश्मीर में जहां मुसलमानों की आबादी ज्यादा है उनके वोट जाति और बकरवाल-पहाड़ी जैसे मुद्दों के सहारे बांटना चाहती है. आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस को लोगों की सहानभूति मिलती दिख रही है, ऐसे में बीजेपी इस तरह के आरक्षण नीति को रास्ता देकर नेशनल कॉन्फ्रेंस के वोट में सेंध लगाना चाहती है.

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