तालियों की गड़गड़ाहट, चीखते-चिल्लाते फैंस, बस एक झलक पाने को बेताब, स्पॉटलाइट की तेज रोशनी.... कैमरों की फ्लैश लाइट के बीच स्टेज पर एंट्री लेता आपका सुपरस्टार. जी हां, यही है स्टारडम. यह वह पायदान है, जिस पर पहुंचने के लिए टैलेंट, मेहनत, और किस्मत का मैजिकल मिक्स जरूरी होता है, जो रातों-रातों एक मामूली इंसान को स्टार बना देता है.
लेकिन आसमान में चमकते ये सितारे अचानक गुमनामी के अंधेरों में कहां खो जाते हैं? काउंसलर और साइकोथेरेपिस्ट अनीता मिश्रा कहती हैं कि शानो-शौकत को अपनी जिदंगी का हिस्सा बनाने वाले ये स्टार्स, कमयाबी की लत में इतना डूब जाते हैं कि अपना असली चेहरा भी नहीं पहचान पाते.
उनकी आदतें, रहन सहन और आत्मविश्वास सातवें आसमान पर उड़ान भरने लगता है, पर कब तक ? जब तक वह इंसान अपनी मेहनत, अपने हुनर से लोगों की आकांक्षाओं-अपेक्षाओं, उम्मीदों पर बना रहता है, तब तक ही यह स्टारडम है. एक स्टार बनते ही, अपनी मौलिक दुनिया से दूर हो जाता है.
वक्त की कमी और उम्मीदों का दबाव उस पर हावी होने लगता है. उस पर नाज-नखरे और अभिमान हमला करने लगते हैं. उसे हर बार कुछ नया, कुछ अनोखा करना होता है, पर हर बार यह संभव नहीं हो पाता. तब लोगों को वही इंसान घिसा-पिटा, बोरिंग, बेकार लगने लगता है.
और यहीं खत्म हो जाता है उनका सुपरस्टार. और वो स्पॉटलाइट की तेज रोशनी ध्ाीरे-ध्ाीरे गहरे अंधेरे में तब्दील हो जाती है. सुपरस्टार की कहानी खत्म होने की कगार पर आ जाती है.
अभी मस्जिद दूर है, तो यूं कर लें... किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
किसी को हंसाना वाकई इबादत से कम नहीं है, कहते ये भी हैं, ज्यादा मत हंसो, नजर लग जाएगी और शायद ऐसा होता भी है. दुनिया के मशहूर कॉमेडिन चार्ली चैपलिन से लेकर कपिल शर्मा तक इन मसखरों की हंसी के पीछे दर्द की अपनी दुनिया है.
किसी अनजान को हंसाना ,खुशी देना आसान काम नहीं है. सारी दुनिया को अपने लतीफों से, हरकतों से हंसाने वाले किरदारों की अपनी जिंदगी में कितना अंधेरा है, हम देख ही नहीं पाते.
हंसने का लोचा दरअसल एक ऐसा रिस्पांस सिस्टम है, जिसमें सिग्नल मिलते ही पिट्यूटरी ग्लैंड में एंडोप्रिन नाम का केमिकल रिलीज होता है, जो ब्लड से होता हुआ ब्रेन तक पहुंचता है और तब डोपामिन बनकर ब्रेन से ब्लड वेसेल में पहुंचता है. जनाब यही वो केमिकल लोचा है, जो इंसानी मशीन में खुशी का एहसास भर देता है.
‘कपिल शर्मा’ एक ऐसा शख्स, जिसने हर घर में अपनी जगह बना ली
कॉमेडी की दुनिया में एक शख्स ने कदम रखा ‘कपिल शर्मा’. बेहतरीन सेंस ऑफ ह्यूमर, गजब की टाइमिंग ने रातों-रात इस इंसान को सितारा बना दिया. जब 2004 में पिता की कैंसर से मौत हुई, तो परिवार का जिम्मा उठाया.
हौसले के बल पर चलते-चलते 2007 में TV शो ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज जीत कर कामयाबी के दरवाजे पर दस्तक दी. द कपिल शर्मा शो... कॉमेडी नाइट विद कपिल जैसे कॉमेडी शो का इंतजार मानो पूरा हिंदुस्तान करने लगा.
लेकिन कहते हैं शोहरत हर किसी को रास नहीं आती. कामयाबी का शिखर छूने के बाद कपिल शर्मा ताश के पत्तों की तरफ बिखर रहे हैं. हाल ही में उनका नया शो ‘फैमिली टाइम विद कपिल शर्मा ‘ बंद होने की खबरें आई हैं.
चार्ली चैपलिन, जिससे रोते-रोते हंसना सीखा
मुझे बारिश में भीगते हुए चलना हमेशा से पसंद है ताकि कोई मुझे रोता हुआ न देख सके... यह अल्फाज किसी साहित्यकार के नहीं, दुनिया को हंसाने वाले मशहूर कॉमेडियन चार्ली चैपलिन के हैं. अपनी हरकतों और चेहरे के हावभाव से गुदगुदाने की कला में माहिर ये छरहरा सा इंसान अंदर तक इतना अकेला, वाकई बहुत अकेला रहा होगा.
16 अप्रैल 1889 को जन्मे ब्रिटिश मूल के कॉमेडियन चार्ली चैपलिन का बचपन तकलीफों से भरा था. पिता चार्ल्स और मां हन्नाह के तलाक के बाद उन्हें तंगहाली और मुफलिसी का सामना करना पड़ा. दौलत, शोहरत, इज्जत, सब कुछ पा लिया, दुनिया को मोहब्बत करना सिखाया. पर खुद एक अदद सच्चे प्यार की तलाश में भटकता रहा.
अमेरिकी इतिहास में सबसे महान फिल्ममेकर कहे जाने वाले चार्ली ने अपने हुनर से सारी दुनिया को हंसाते मशहूर फिल्में बनाईं. 1952 में उन्हें ऑफिस अॉफ लिजीयन फ्रांस, एकेडमी अवॉर्ड, नाइटकमांडर ऑफ द ब्रिटिश एंपायर जैसे दुनियाभर के सम्मानों से नवाजा गया. पूरी दुनिया को हसाने वाले चार्ली ने 25 दिसंबर 1977 को दुनिया को अलविदा कह दिया.
हंसाने वाले अक्सर गम के गुबार में क्यों घिर जाते हैं? सवाल भले पेचीदा न हो, पर इसका जवाब बहुत जटिल है. अब याद कीजिए चार्ली चैपलिन से बड़ा कॉमिडियन कौन होगा? उनके न रहने के बाद भी उनकी कॉमेडी को स्टैंडर्ड माना जाता है. पर दूसरों को अपनी हरकतों से हंसाने वाले चार्ली दरअसल अंदर से बहुत अकेले थे.
हंसने-हंसाने का कारोबार करने वाले इन रोशन चेहरों के पीछे के अंधेरे की अपनी दास्तान है. इन हालातों में भी किसी मौके पर किसी मंच पर खड़ा एक शक्स अपने चुटकुले, लतीफों और हरकतों से कुछ पल ही सही मौजूद तमाम लोगों को मुस्कुराने का मौका देता है.
उत्पल दत्त, जॉनी लीवर, राजू श्रीवास्तव जैसे तमाम कॉमेडियन आज भले ही सबकी जुबान पर न हों, लेकिन रंगमंच के इन महान कलाकारों की हंसी की गूंज लोगों के चेहरों की मुस्कुराहट बन जाती है.
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सिद्धार्थ सागर: शुरू ही की थी कहानी
हाल ही में सेल्फी मौसी यानी सिद्धार्थ सागर ने अपनी मां पर ड्रग्स देने, मारपीट करने और पागलखाने में जबरदस्ती भेजने का आरोप लगाया. कॉमेडी की मस्तीखोरी में डूबा रहने वाला शख्स प्रेस कॉन्फ्रेंस में गमजदा रोता हुआ नजर आया. इस शख्स ने अभी-अभी कॉमेडी की दुनिया में कदम रखा था, मानो खुशियों को अलविदा कह दिया हो.
‘द शो मस्ट गो ऑन... थीम पर बनी राज कपूर की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ आज भी सभी को याद होगी.
एक जोकर की दुखभरी कहानी, उसके जीवन और मंच के लिए उसका समर्पण परफॉर्मिंग आर्ट्स और उससे जुड़े संजीदा पहलुओं पर बेबाक रोशनी डालती है. यह काम वाकई बहुत मुश्किल है. किसी के जेहन तक जाकर सच्ची मुस्कुराहट निकाल लाना बस कुछ एक की बस की बात है.
भागती-दौड़ती जिंदगी में हम जिनके लतीफे सुनकर ठहाके लगाते हैं, अपने पलों को गुलजार करते हैं, उन मसखरों की अपनी जिंदगी में इतना दर्द है, अंदाजा लगा पाना मुश्किल है. अंदर से रोना और बाहर मुस्कुराना, सिर्फ कला नहीं, इंसानी काबिलियत है.
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