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सेना दिवस: महिला अफसर पहली बार करेंगी लीड, सलामी लेंगे आर्मी चीफ

15 जनवरी को सेना दिवस के मौके पर पहली बार एक महिला अफसर परेड को लीड करेगी.

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जब एक महिला कमांड कर रही हो और बाकी लोग उसे फॉलो कर रहे हों तो अच्छा लगता है. बाइक चलाती लड़कियां तो बहुत देखी पर बाइक में कलाबाजी करती लड़की दिखे तो और अच्छा लगता है. सैटेलाइट के जरिये सेना को मजबूत बनाने का संकल्प लेते अगर कोई लड़की दिखे तो अच्छा लगता है. उनके मजबूत इरादों को देखकर अच्छा लगता है.

सवाल हो सकता है कि आखिर अच्छा लगने की वजह क्या है...जी हां, इस अच्छा लगने का अहसास शहर से लेकर गांव तक की हर लड़की को साहस के कारनामों के लिए उकसाता है.

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एक जमाने में सर्कस में लड़कियों के हैरतअंगेज साहसिक कारनामे देखकर लोग लोग दांतों तले उंगली दबा लेते थे और माहौल में मनोरंजन की जलेबी तैरने लगती थी. सर्कस खत्म हो जाता था पर जांबाजी के वे दृश्य याद रहते थे. महिलाओं की ये जांबाजी अब सर्कस के रिंग से निकल कर सेना के मैदान में आ पहुंची है. भारतीय सेना के इतिहास में पहली बार 15 जनवरी को सेना दिवस के मौके पर एक महिला अफसर परेड को लीड करेगी.

सेना दिवस का यह अवसर सिर्फ हैरतअंगेज कार्यक्रम पेश करके चौंकाने के लिए नहीं है बल्कि देशवासियों को ये बताने के लिए है कि सेना ने उनकी हिफाजत के लिए क्या-क्या इंतजाम किए हैं, और महिलाएं एक सैनिक के तौर पर खुद को कैसे तैयार कर रही हैं. ये बताने के लिए है कि उन्होंने जोखिम उठाने के लिए अपने दिल और कंधे दोनों को किस कदर मजबूत किया है.

लेफ्टिनेंट भावना कस्तूरी रचेंगी इतिहास

इन्हीं जांबाज योद्धाओं में से एक लेफ्टिनेंट भावना कस्तूरी पहली महिला होंगी जो सेना दिवस के परेड का नेतृत्व करेंगी. अभी तक किसी भी महिला ने सेना दिवस समारोह में परेड को लीड नहीं किया है. लेफ्टिनेंट भावना इंडियन आर्मी सर्विस कॉर्प्स के ग्रुप का नेतृत्व करेंगी. यह ग्रुप पिछले 23 साल से परेड में भाग नहीं ले रहा था. इस साल दोबारा परेड में शामिल होगा. 144 जवान वहां होंगे.

आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत इनकी सलामी लेंगे. वही जनरल बिपिन रावत, जिन्होंने एक न्यूज चैनल के इंटरव्यू में कहा था कि महिलाओं का पहला काम बच्चे पालना है. फ्रंटलाइन पर वो सहज महसूस नहीं करेंगी और जवानों पर कपड़े बदलते समय अंदर ताक-झांक किए जाने का आरोप भी लगाएंगी. इसलिए उन्हें कॉम्बैट रोल के लिए भर्ती नहीं करना चाहिए. अधिकतर जवान गांव के रहने वाले हैं और वो कभी नहीं चाहेंगे कि कोई और औरत उनकी अगुवाई करे. जरा फर्ज कीजिये, भावना कस्तूरी को कमांड देते देख कैसा महसूस करेंगे जनरल रावत?

कौन हैं भावना कस्तूरी, शिखा सुरभि और भावना स्याल?

लेफ्टिनेंट भावना कस्तूरी ने 2015 में अफसर के पद पर ज्वॉइन किया था. इससे पहले वो नेशनल कैडेट कॉर्प्स (NCC) में थीं. NCC के लिए आर्मी में स्पेशल एंट्री के एग्जाम होते हैं. उन्होंने यह परीक्षा दी और पूरे देश में चौथे स्थान पर रहीं. भावना कहती हैं-

“जब मुझे परेड कमांड करने के लिए चुना गया तो इंस्ट्रक्टर से लेकर सभी ऑफिसर और जवान भी बेहद गर्व महसूस कर रहे थे. एक लेडी ऑफिसर कमांड दे रही है और 144 जवान उसकी कमांड फॉलो कर रहे हैं. ये अपने आप में बिल्कुल अलग अनुभव है.”

आर्मी जवानों के दस्ते का नेतृत्व करती लेफ्टिनेंट भावना कस्तूरी का आत्मविश्वास न सिर्फ अपने जवानों को कमांड देते वक्त झलकता है, बल्कि बातचीत में भी भी वह गर्व और आत्मविश्वास से लबरेज नजर आती हैं. उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि आर्मी चीफ महिलाओं को कॉम्बैट रोल न देने के बारे में क्या सोचता है.

कैप्टन शिखा सुरभि पहली लेडी ऑफिसर हैं जो सेना दिवस पर डेयरडेविल्स टीम के साथ आर्मी डे परेड का अहम हिस्सा बनेंगी. बाइक पर स्टंट दिखाते आर्मी डेयरडेविल्स के बीच लेडी अफसर को देखना आर्मी के साथ ही सभी लोगों के लिए एक गर्व की अनुभूति है. वह कहती हैं-

“मुझे सेना में कोर ऑफ सिग्नल डेयर डेविल्स टीम के लिए चुना गया ते मुझे लगा अब मैं कुछ कर सकती हूं. देश के काम आ सकती हूं. मैं पहली महिला सदस्य चुनी गई. मेरा शुरू से ही बाइकिंग में इंटरेस्ट था लेकिन नॉर्मल बाइक चलाना और इस तरह बाइक पर स्टंट करना बिल्कुल अलग है. इसके लिए हमें बेसिक ट्रेनिंग दी गई कि किस तरह बाइक पर आगे की तरफ बैठना है ताकि टांगों से ही बाइक को होल्ड कर सकें क्योंकि हाथ छोड़ने होते हैं.”

यहां गौर करने वाली बात है कि आर्मी की डेयरडेविल्स टीम ने अब तक 24 वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाए हैं.

सेना दिवस के मौके पर इन दो महिलाओं के साथ कैप्टन भावना स्याल भी अपनी उपलब्धि का तमगा लिए दिखाई देंगी. कैप्टन भावना स्याल आर्मी की सिगनल्स कोर से हैं और वह ट्रांसपोर्टेबल सैटलाइट टर्मिनल के साथ परेड पर भारतीय सेना की स्ट्रेंथ दिखाएंगी. कैप्टन भावना स्याल कहती हैं कि यह मशीन डिफेंस कम्युनिकेशन नेटवर्क का हिस्सा है. यह आर्मी को ही नहीं, बल्कि तीनों सर्विस (आर्मी, नेवी, एयरफोर्स) के इंटीग्रेशन का भी काम करता है और वॉयस डेटा और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग फैसिलिटी देता है.

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इतिहास गवाह है

भारतीय सेनाओं में महिलाओं को सिर्फ अफसरों के तौर पर भर्ती किया जाता है. वह भी सिर्फ शॉर्ट सर्विस कमीशन पर. कॉम्बैट रोल देने के सवाल पर अभी भी वही पुरुषवादी नजरिया हावी है कि महिलाएं जंग का नेतृत्व कैसे करेंगी. आज से डेढ़ दो सौ साल पहले जब रानी झांसी, झलकारी बाई,जॉन ऑफ आर्क जैसी महिलाओं ने युद्ध का नेतृत्व किया होगा तो क्या पुरुष सैनिकों ने उनका नेतृत्व स्वीकार करने से इनकार कर दिया होगा? अगर ऐसा होता तो ये महिलाएं इतिहास की दुर्धष योद्धाओं के तौर पर याद नहीं की जातीं.

70 साल से हम सेना दिवस मनाते आ रहे हैं. अब जाकर महिलाएं पहली बार सेना दिवस परेड का नेतृत्व कर रही हैं. दुनिया के कई देशों में महिलाएं ये तमगा पहले हासिल कर चुकी हैं. इतने सालों के बाद अगर इसे भारतीय महिला सैनिकों की उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है तो उसके लिए उनके जज्बे को सलाम करना चाहिए. आखिर, सेना में महिलाओं के रोल सीमित करने के बावजूद उन्होंने यह मुकाम तो हासिल कर ही लिया.

अगर आप महिला हैं तो यह मत समझिए कि आप फ्रंट पर लड़ नहीं सकतीं. आप भी एनसीसी की कैडेट परीक्षा देकर आर्मी का हिस्सा बन सकती हैं. इस परीक्षा की नोटिफिकेशन जारी की जाती है. इसके लिए आपके पास एनसीसी का सीनियर डिवीजन में कम से कम दो साल या फिर C सर्टिफिकेट होना चाहिए. साथ ही 50 फीसदी मार्क्स के साथ ग्रेजुएशन भी जरूरी है.

आज महिलाएं भले ही नॉन कॉम्बैट रोल में भारतीय सेना में योगदान दे रही हों लेकिन जल्दी ही वो वक्त आएगा कि भारतीय जनरलों को महिलाओं को कॉम्बैट रोल देने होंगे. यहां उन्हें खुद को साबित करने का बड़ा मौका होगा. अब तक महिलाओं ने हर वो काम कर दिखाया है, जो पुरुषों का विशेषाधिकार वाला क्षेत्र समझा जाता था. भारतीय महिलाओं का जज्बा यहां भी उन्हें कामयाब बनाएगा.

तो तैयार रहिए इस रोल को निभाने के लिए. भावना कस्तूरी, भावना स्याल और शिखा सुरभि की तरह लड़कियों की नई पीढ़ी जल्द ही साबित कर देंगी कि वे सिर्फ परेड ही नहीं युद्ध की कमान भी संभाल सकती हैं. ये शेर ऐसी ही लड़कियों के जज्बे को बयां करता है-

खुदी को कर बुलंद इतना

कि हर तकदीर से पहले

खुदा बंदे से खुद पूछे

बता तेरी रजा क्या है...

देखें वीडियो- जनरल साहब, आप हिंदुस्तानी महिला योद्धाओं को लेकर क्यों गलत हैं?

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