दिल्ली शराब नीति केस में सुप्रीम कोर्ट से बेल मिलने के बाद अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की कि वह 48 घंटे के भीतर इस्तीफा दे देंगे. दिल्ली के लोगों द्वारा चुने जाने के बाद ही दोबारा मुख्यमंत्री के रूप में लौटेंगे. यह आश्चर्यजनक लेकिन रणनीतिक कदम फरवरी 2025 में निर्धारित दिल्ली विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले आया है, जिसमें केजरीवाल के पास दो प्रमुख विकल्प बचे हैं. पहला, 48 घंटे के भीतर उत्तराधिकारी नियुक्त करना, जो उन्होंने आतिशी को चुना है. दूसरा, विधानसभा को भंग करना और समय से पहले चुनाव कराने का आह्वान करना.
केजरीवाल के फैसले से जाहिर होता है वह भावनात्मक और पीड़ित दोनों पक्षों के जनता के बीच ले जाना चाहते हैं, जिसके साथ राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने अन्याय किया. हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि दिल्ली में 2024 के आम चुनावों के दौरान इसी तरह की रणनीति विफल रही, जहां सहानुभूति जगाने के प्रयासों के बावजूद आम आदमी पार्टी कोई भी सीट नहीं जीत सकी.
आम आदमी पार्टी के खिलाफ बढ़ते असंतोष के अंडरकरंट के बीच केजरीवाल का इस्तीफा भी उल्टा पड़ सकता है.
यह इस्तीफा बीजेपी के लिए भी एक सुनहरा मौका है. वह केजरीवाल के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से भागने वाले नेता के रूप में नैरेटिव सेट कर सकते हैं. वह तर्क दे सकते हैं कि केजरीवाल का फैसला उनकी कानूनी परेशानियों से ध्यान हटाने और वोटर के ऊपर जिम्मेदारी डालने की कोशिश है.
आम आदमी पार्टी के लिए आसान नहीं होगा चुनाव
आम आदमी पार्टी अगले दिल्ली चुनाव के करीब पहुंचने के साथ ही खुद को एक चुनौतीपूर्ण स्थिति में पा रही है. 11 साल सत्ता में रहने के बाद सत्ता विरोधी लहर का बोझ बढ़ता जा रहा है. अगर अरविंद केजरीवाल फिर से चुने जाते हैं तो यह मुख्यमंत्री के रूप में उनका चौथा कार्यकाल होगा. ये एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी, लेकिन यह आसान नहीं होने जा रही है.
जब से अरविंद केजरीवाल की कानूनी मुसीबतें शुरू हुई हैं, जब से आम आदमी पार्टी के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है. इसकी शुरुआत मुख्यमंत्री रहते हुए जेल में उनके समय से हुई. कई लोगों को लगता है कि इससे शासन को नुकसान हुआ है. कई प्रमुख मुद्दे अनसुलझे हैं. पार्टी की मजबूत जमीनी उपस्थिति के बावजूद वादों को पूरा करने की क्षमता पर सवाल उठाए जा रहे हैं.
इसके अलावा दिल्ली में लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों ने आप को बड़ा झटका दिया. केजरीवाल के प्रयासों और कांग्रेस के साथ पार्टी के गठबंधन के बावजूद एक भी सीट नहीं जीत सके. केजरीवाल को उम्मीद थी कि मतदाताओं के साथ भावनात्मक अपील और पीड़ित होने की कहानी काम आएगी. लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली. यह गलत कदम बताता है कि आगामी चुनाव में फिर से वही कार्ड खेलने से काम नहीं चल सकता है.
इसके अलावा, पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन और संजय सिंह सहित आप के शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी ने पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया है और शासन को बाधित किया है. केजरीवाल द्वारा दिल्ली के लोगों से किए गए वादे पूरे नहीं किए गए हैं, जिससे असंतोष और बढ़ रहा है.
गंभीर जोखिम होगा नए सीएम का चयन
केजरीवाल शुरुआत से ही आप का चेहरा रहे हैं और उनके नेतृत्व ने पार्टी के शासन मॉडल को परिभाषित किया है. उनकी जगह लेना आसान नहीं होगा. अगले मुख्यमंत्री का चयन करने में कोई भी गलत कदम आंतरिक कलह का कारण बन सकता है और आगामी दिल्ली चुनावों से पहले पार्टी की छवि को कमजोर करने का जोखिम हो सकता है. केजरीवाल के करिश्मे और मतदाताओं के साथ जुड़ाव को दोहराना मुश्किल है. यह बदलाव जटिलता से भरा हुआ है.
टाइमिंग भी दबाव पैदा करेगा. चुनाव नजदीक है. आम आदमी पार्टी को जल्द ही एक नए नेता के साथ एकजुट होना होगा. ऐसा नेता जो पार्टी कैडर और वोटर्स को आश्वस्त कर सके. नए नेता को विपक्ष के सवालों का भी सामना करना होगा. इसके लिए एक ऐसे नेता की जरूरत है, जिसके पास न केवल मजबूत प्रशासनिक कौशल हो बल्कि दिल्ली के अशांत राजनीतिक हालात से निपटने की भी कला हो.
नए नेता के चयन की प्रक्रिया विवादास्पद होने की संभावना है. आप के पास पार्टी के भविष्य के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण रखने वाली कई प्रमुख हस्तियां हैं. पार्टी के अंदर गुटबाजी से बचना भी सुनिश्चित करना होगा, क्योंकि कुछ राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी इसका फायदा उठा सकते हैं.
इसके आगे, केजरीवाल के इस्तीफे को रणनीतिक फैसला कहा जा रहा है, लेकिन इसे बहुत सावधानी से संभालने की जरूरत है. जिसे सीएम चुना जाएगा उसे ऐसे नैरेटिव को संभालना होगा, जिसके तहत केजरीवाल द्वारा राजनीति उत्पीड़न की कहानी कही जाएगी.
सुनीता केजरीवाल - सीएम बने?
अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के बाद सुनीता केजरीवाल की दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में संभावित नियुक्ति ने अटकलों और चिंताओं को जन्म दिया है. हालांकि यह कदम आप के भीतर एक स्वाभाविक प्रगति की तरह लग सकता है, लेकिन यह वंशवादी राजनीति के बारे में गलत संदेश भेजने का जोखिम भी है. यह एक ऐसा आरोप होगा जो पार्टी की योग्यता और पारदर्शिता के मूल मूल्यों को कमजोर कर सकता है.
आम आदमी पार्टी लंबे समय से खुद को राजनीतिक परिवारों के प्रभाव से मुक्त स्वच्छ शासन के लिए प्रतिबद्ध पार्टी के रूप में स्थापित करती रही है. सुनीता केजरीवाल को शीर्ष पद पर बैठाने के बाद आप अपने खिलाफ पार्टी के विरोधी में कुछ लोगों को लामबंद कर सकती है. इस फैसले से ऐसे वोटर्स में पार्टी की छवि धुमिल हो सकती है जो पुरानी शैली वाली वंशवादी पार्टियों के खिलाफ हैं.
इसके अलावा, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) वंशवादी राजनीति को लेकर आम आदमी पार्टी पर तगड़ा प्रहार करेगी. सुनीता केजरीवाल की नियुक्ति के साथ ही बीजेपी को आप की लोकतांत्रिक अखंडता पर सवाल उठाने के लिए नया मौका मिल जाएगा. यह दिल्ली में बीजेपी की अपनी चुनौतियों और विवादों से ध्यान भटका सकता है, जिससे बीजेपी को फायदा पहुंच सकता है.
इसके अलावा, पत्नी को सीएम बनाने से अरविंद केजरीवाल के खिलाफ एक ये धारणा भी बन सकती है कि वे अपने परिवार के जरिए नियंत्रण बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, जैसा आरोप अन्य राजनीतिक पार्टियों पर लगता रहा है. यह आप के प्रति जनता के विश्वास को खत्म कर देगा और आप की स्थिति को कमजोर करेगा. खासकर उन वोटरों में जो राजनीति में भाई-भतीजावाद के खिलाफ हैं.
मनीष सिसोदिया की संभावित पदोन्नति
अरविंद केजरीवाल की जगह मनीष सिसोदिया को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाए जाने की अटकलों ने आम आदमी पार्टी के भीतर और पूरे राजनीतिक परिदृश्य में एक बहस छेड़ दी है. केजरीवाल के लंबे समय तक सहायक और भरोसेमंद सहयोगी के रूप में सिसोदिया प्रमुख नीतियों, विशेष रूप से शिक्षा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं. फिर भी, शीर्ष पद पर उनका उदय अवसरों और महत्वपूर्ण चुनौतियों दोनों के साथ आता है.
सबसे पहले, सिसोदिया की नियुक्ति आप के शासन के लिए निरंतरता का संकेत होगी. दिल्ली की शिक्षा प्रणाली को सुधारने में उनका मजबूत ट्रैक रिकॉर्ड उनकी प्रशासनिक क्षमताओं को प्रदर्शित करता है. यह निरंतरता मतदाताओं को आश्वस्त कर सकती है कि केजरीवाल के इस्तीफे के बावजूद लोक कल्याण पर आप का ध्यान अपरिवर्तित रहेगा.
हालांकि, केजरीवाल वाली छवि बनाना एक कठिन चुनौती होगी. केजरीवाल का करिश्मा और राजनीतिक चपलता आप की सफलता के केंद्र में रही है और सिसोदिया को आंतरिक कलह से बचने और जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए अपनी नेतृत्व शैली को तेजी से परिभाषित करना होगा.
दूसरा, सिसोदिया की पदोन्नति बीजेपी के हमलों के लिए रणनीतिक प्रतिक्रिया के रूप में काम कर सकती है. शराब नीति को लेकर बीजेपी लगातार सिसोदिया पर हमलावर है. सिसोदिया भी इस केस में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. ऐसे में उन्हें सीएम बनाना खुली उपेक्षा जैसी लग सकती है. हालांकि, इसका उल्टा असर हो सकता है और बीजेपी को आप के नेतृत्व और नैतिकता पर सवाल उठाने का नया मौका मिल सकता है.
बीजेपी के लिए सिसोदिया की नियुक्ति एक अवसर और जोखिम दोनों हो सकती है. हालांकि यह उन्हें आप पर अपने हमले जारी रखने के लिए आधार प्रदान करता है, अगर सिसोदिया प्रभावी ढंग से शासन करने और जनता का समर्थन हासिल करने में कामयाब रहते हैं, तो यह उनकी आलोचना को बेअसर कर सकता है और दिल्ली पर आप की पकड़ को और मजबूत कर सकता है.
(लेखक स्तंभकार और रिसर्च स्कॉलर हैं और सेंट जेवियर्स कॉलेज (स्वायत्तशासी), कोलकाता में पत्रकारिता पढ़ाते हैं. वह @sayantan_gh पर ट्वीट करते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं.द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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