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अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी: BJP ने 2025 दिल्ली चुनाव थाली में सजाकर AAP को दे दिया है?

Arvind Kejriwal Arrest: यह दिल्ली में AAP कार्यकर्ताओं को प्रेरित कर सकता है, जो BJP पर पिछले दरवाजे से कुर्सी हासिल करने की कोशिश करने का आरोप लगाएंगे

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Arvind Kejriwal Arrest: दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को ईडी ने कथित शराब घोटाले में गिरफ्तार किया और आम चुनाव से पहले राष्ट्रीय राजनीति में सरगर्मी बढ़ गई. इस कवायद ने विपक्ष को फिर से जीवंत कर दिया है जो बीजेपी की दुर्जेय मशीनरी के सामने कमजोर दिखाई दे रहा था.

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एक तरफ कई लोग तर्क दे रहे हैं कि यह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की "भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस" के नैरेटिव को मजबूत करता है. वहीं दूसरों का तर्क है कि यह अरविंद केजरीवाल के लिए सहानुभूति पैदा कर सकता है जिन्हें खुद टकराव की राजनीति पसंद है.

सवाल है कि क्या इस गिरफ्तारी से आम चुनाव और अगले साल की शुरुआत में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को मदद मिलेगी?

केजरीवाल मिनी मोदी हैं

केजरीवाल कई मायनों में एक मिनी मोदी हैं- एक ईमानदार, सरल व्यक्ति की छवि (कम से कम उनकी गिरफ्तारी से पहले) हैं. पीएमओ (प्रधान मंत्री कार्यालय) की तरह सीएमओ (मुख्यमंत्री कार्यालय) में शक्ति केंद्रित है. हिंदी में अच्छा भाषण देने के योग्यता है. प्रशासनिक अनुभव है (आईआरएस रह चुके हैं). अपनी पार्टी के भीतर सर्वेसर्वा हैं. साथ ही दीर्घकालिक दृष्टिकोण और वास्तविक राजनीति की समझ रखते हैं.

2020 के विधानसभा चुनावों में AAP का समर्थन करने वाले 30 प्रतिशत वोटर्स ने AAP को वोट ही नहीं दिया होता अगर केजरीवाल सीएम का चेहरा नहीं होते (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के अनुसार). इसे दिल्ली में "केजरीवाल फैक्टर" कहा जा सकता है.

यह 'मोदी फैक्टर' के समान है जो राष्ट्रीय चुनावों में बीजेपी के लिए काम करता है. अगर मोदी प्रधानमंत्री पद का चेहरा नहीं होते तो 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी का समर्थन करने वाले 32 प्रतिशत वोटर्स ने पार्टी को वोट नहीं दिया होता.

2020 के विधानसभा चुनाव में AAP को 53.6 फीसदी वोट मिले, जिसमें से 16 फीसदी 'केजरीवाल फैक्टर' के कारण है. 2020 में बीजेपी के खिलाफ AAP की बढ़त 15 फीसदी थी. इसका मतलब यह है कि दिल्ली में AAP और बीजेपी के बीच सारा अंतर 'केजरीवाल फैक्टर' के कारण है.

इसी तरह, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को 2019 में 27.5 करोड़ वोट मिले, और यूपीए को 16.5 करोड़ वोट मिले. यानी बढ़त 11 करोड़ की थी. इसमें से 8.5 करोड़ मोदी फैक्टर (लगभग 80 प्रतिशत) के कारण थे.

केजरीवाल की गिरफ्तारी से AAP के वोट बैंक पर क्या असर पड़ेगा?

आम आदमी पार्टी दिल्ली के उपराज्यपाल, दिल्ली बीजेपी और यहां तक ​​कि कांग्रेस इकाई के साथ टकराव के दौरान फली-फूली है. AAP सत्ता में रहते हुए विपक्ष की राजनीति करती है और उसका आनंद लेती है, और केजरीवाल की गिरफ्तारी से उसे अपनी ताकत दिखाने का मौका मिल रहा है.

यह सच है कि पार्टी की मूल विचारधारा कमजोर हो गई है, लेकिन AAP ने दिल्ली और पंजाब में लाभार्थियों का एक मजबूत समूह तैयार किया है, जैसे मोदी ने पूरे भारत में बनाया है.

लेटेस्ट सीवोटर सर्वे में 45 प्रतिशत उत्तरदाताओं को लगता है कि यह मुद्दा आम चुनावों पर असर डाल सकता है. 48 फीसदी का मानना ​​है कि इससे बीजेपी को भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई में मदद मिलेगी, जबकि 52 फीसदी का मानना ​​है कि इससे केजरीवाल के प्रति सहानुभूति पैदा हो सकती है.

दिल्ली में बंटा हुआ वोटिंग पैटर्न देखा गया, जिसमें वोटर्स ने आम चुनावों (2014, 2019) में बीजेपी और राज्य चुनावों (2015, 2020) में AAP का भारी समर्थन किया. इससे पता चलता है कि वोटर्स का एक बड़ा हिस्सा स्विंग वोट का है- यानी वो दोनों पार्टियों के बीच झूलता रहता है.

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गिरफ्तारी से दिल्ली और पंजाब में AAP के कोर वोटर्स पर असर नहीं पड़ सकता है, लेकिन बाकी भारत में इसकी विस्तार करने की योजनाओं पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. केजरीवाल AAP के एकमात्र प्रचारक हैं और उनकी अनुपस्थिति से हरियाणा, गोवा और गुजरात में पार्टी की बढ़ने की योजनाओं को नुकसान होगा.

लोकसभा चुनाव दिल्ली और कुछ हद तक पंजाब में मोदी और केजरीवाल के बीच एक व्यक्तित्व प्रतियोगिता है. चूंकि लोकसभा चुनाव पीएम को चुनने के लिए है, सीएम को नहीं, इसलिए यह मुद्दा दिल्ली में केजरीवाल के फायदे के लिए काम नहीं करेगा.

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है. AAP कांग्रेस की कीमत पर ही आगे बढ़ी है और उनके वोट बैंक काफी हद तक एक हैं.

इसका मतलब यह है कि यह न्यूनतम खामियों के साथ गठबंधन के इन दो सहयोगियों के बीच आसानी से वोट ट्रांसफर में मदद करेगा.

विधानसभा चुनाव पर असर

विधानसभा चुनाव में केजरीवाल का टिकट दांव पर है और यहीं पर उनकी गिरफ्तारी का असर अहम होगा.

यह संभवतः दिल्ली में AAP कार्यकर्ताओं को प्रेरित करेगा, एकजुट करेगा. वे बीजेपी पर पिछले दरवाजे से दिल्ली की कुर्सी पर कब्जा करने का प्रयास करने का आरोप लगाएंगे. पार्टी पीड़ित की भूमिका निभाकर जनता के सामने एक चुने हुए सीएम की गिरफ्तारी को 'लोकतंत्र की हत्या' के रूप में दिखा रही है.

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इससे पार्टी को 10 साल की प्राकृतिक सत्ता विरोधी लहर को बेअसर करने और राज्य में विपक्ष को एकजुट करने में मदद मिल सकती है. कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए AAP के साथ पहले ही गठबंधन कर लिया है, जिसे विधानसभा चुनाव तक भी बढ़ाया जा सकता है.

बीजेपी केजरीवाल सरकार के खिलाफ स्वाभाविक सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाकर 2025 के राज्य चुनाव जीतने की उम्मीद कर रही होगी. संभवत: राज्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कुछ मौजूदा सांसदों को हटा दिया गया है क्योंकि मौजूदा दिल्ली इकाई को कमजोर माना जाता है.

केजरीवाल ने ही "गारंटी" देनी शुरू की थी. उन्होंने गरीबों के लिए मुफ्त बिजली-पानी, बेहतर शिक्षा और चिकित्सा का एक मॉडल बनाया है. उनकी अधिकांश गारंटी कांग्रेस पार्टी द्वारा कॉपी की गई है. उन्हें उम्मीद है कि 2025 में बड़ी संख्या में लाभार्थी फिर से उनके साथ आएंगे और शानदार जीत दिलाएंगे.

हमने अतीत में देखा है कि जेल जाने से जरूरी नहीं कि नेता का दबदबा कम हो जाए. वास्तव में, इससे उनका समर्थन बढ़ता है, कम से कम जयललिता, लालू यादव, जगन मोहन रेड्डी आदि जैसे मामलों में यही हुआ.

जब तक केजरीवाल को अगले साल होने वाले राज्य चुनावों से पहले दोषी नहीं ठहराया जाता है, जो मुश्किल है क्योंकि न्यायपालिका को समय लग सकता है, क्योंकि यह एक जटिल मामला है, उनकी गिरफ्तारी वास्तव में उनके खिलाफ काम करने के बजाय उनकी मदद कर सकती है.

क्या केजरीवाल की गिरफ्तारी AAP की हैट्रिक के लिए जरूरी टॉनिक है और क्या बीजेपी ने 2025 का विधानसभा चुनाव तश्तरी में सजाकर केजरीवाल को दे दिया है? यह केवल समय बताएगा.

(अमिताभ तिवारी एक स्वतंत्र राजनीतिक टिप्पणीकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @politicalbaaba है. यह एक ओपिनियन पीस है. ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

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