7 राज्यों- हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, तमिलनाडु, पंजाब, पश्चिम बंगाल और बिहार - की 13 सीटों पर हुए उपचुनाव (Bypolls Result 2024) के नतीजे बीजेपी के लिए निराशा वाले रहे हैं.
एक तरफ विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने 10 सीटें जीतीं. वहीं एनडीए ने केवल दो सीटें जीतीं जबकि अन्य के खाते में एक सीट आई. वोट शेयर के मामले में, जहां इंडिया ब्लॉक को 51 प्रतिशत वोट मिले, वहीं एनडीए को 46 प्रतिशत वोट मिले. इंडिया ब्लॉक को पांच सीटों का फायदा हुआ है, वहीं एनडीए और अन्य को क्रमश: दो और तीन सीटों का नुकसान हुआ.
कांग्रेस के नेतृत्व वाला इंडिया गुट इन नतीजों को देश भर में लोगों के बीजेपी विरोधी मूड का सबूत बता रहा है. वहीं बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए इसे कम महत्व दे रहा है, इसकी अति-स्थानीय प्रकृति (hyper local nature) पर जोर डाल रहा है, और इन परिणामों का राष्ट्रीय स्तर पर कोई निहितार्थ नहीं होने के कारण खारिज कर रहा है.
लेकिन सच्चाई इन दोनों छोड़ के कहीं बीच में है. यहां जानिए इन नतीजों के सात अहम निचोड़.
1. हिंदी हार्टलैंड में कांग्रेस धीरे-धीरे बेहतर हो रही है
हिमाचल, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में छह सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी का आमना-सामना हुआ. कांग्रेस ने हिमाचल (देहरा और नालागढ़) और उत्तराखंड (मंगलौर और बद्रीनाथ) में चार सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी ने हिमाचल (हमीरपुर) और मध्य प्रदेश (अमरवाड़ा) में दो सीट जीती.
कांग्रेस ने 2022 में हिमाचल में विधानसभा चुनाव जीता. उसे 68 सीटों में से 40 सीटें मिली थीं. अब यह साबित हो रहा है कि वह जीत कोई तुक्का नहीं थी.
तब से नौ उपचुनाव हुए हैं, जून 2024 में छह सीटों पर और जुलाई 2024 में तीन सीटों पर. इनमें से कांग्रेस ने छह और बीजेपी ने तीन सीटें जीती हैं. उत्तराखंड में, जहां बीजेपी की सरकार है, कांग्रेस ने बद्रीनाथ सीट बरकरार रखी है और मंगलौर में उसने बीजेपी उम्मीदवार को हराया है. यह सीट पहले बीएसपी के पास थी.
यह 2024 के आम चुनावों के बाद से बीजेपी के खिलाफ सीधे मुकाबले में कांग्रेस पार्टी की बेहतर स्ट्राइक रेट के अनुरूप है. इसने अपनी स्ट्राइक रेट को 2019 में आठ प्रतिशत से बढ़ाकर 2024 में 29 प्रतिशत कर लिया. 2024 में बीजेपी के खिलाफ पार्टी ने 62 सीधी लड़ाई जीती, जबकि 2019 में यह सिर्फ 15 थी.
2. बंगाल में बीजेपी नैरेटिव हारती जा रही है
पश्चिम बंगाल में 2021 में होने वाले उपचुनाव में बीजेपी ने चार में से तीन सीटों पर जीत हासिल की थी. इस बार वह एक भी सीट नहीं बचा सकी. लोकसभा चुनावों के बाद से टीएमसी ने अपना मजबूत प्रदर्शन जारी रखा है. लोकसभा में उसने 42 में से 29 सीटें जीती हैं, जबकि बीजेपी को छह सीटों के नुकसान के साथ 12 पर धकेल दिया है.
बीजेपी ये सभी सीटें 33,000-62,000 वोटों के बड़े अंतर से हारी है. जहां टीएमसी ने औसतन 60 प्रतिशत वोट शेयर दर्ज किया, वहीं बीजेपी सिर्फ 29 प्रतिशत वोट हासिल कर सकी.
आम चुनाव में न तो सीएए काम आया और न ही संदेशखाली मुद्दा. पार्टी अभी भी अपना 'बाहरी' का टैग नहीं हटा पाई है.
बीजेपी के पास अभी भी पूरे राज्य में स्वीकार्यता वाला कोई नेता नहीं है जो ममता बनर्जी के करिश्मे की बराबरी कर सके. न तो इसका आक्रामक हिंदुत्व और न ही इसकी जाति-आधारित राजनीति काम कर रही है.
3. दल-बदलूओं को जनता कर रही नापसंद
बीजेपी ने इन उप-चुनावों में अन्य दलों से आए छह उम्मीदवारों को मैदान में उतारा. इनमें से एक-एक पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में था, जबकि हिमाचल में तीन दलबदलुओं (तीन निर्दलीय जिन्होंने पिछले साल बीजेपी के राज्यसभा उम्मीदवार का समर्थन किया था) को मैदान में उतारा. इनमें से चार हार गए जबकि दो जीते- जीतने वाले उम्मीदवार अमरवाड़ा और हमीरपुर से हैं.
इस साल जून में, हिमाचल में छह सीटों पर उपचुनाव हुए. यहां बीजेपी ने उन छह कांग्रेस विधायकों को मैदान में उतारा, जिन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने राज्यसभा चुनाव में अपने आधिकारिक उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी का समर्थन नहीं किया था. उनमें से चार हार गए जबकि दो जीते थे.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा विश्लेषण किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि कुल मिलाकर, 2016 से 2020 के बीच दल छोड़कर चुनाव लड़ने वाले 433 विधायकों और सांसदों में से 52 प्रतिशत अपनी सीटें बरकरार रखने में सक्षम थे.
विधानसभा उपचुनावों में, दलबदलुओं की सफलता दर बहुत अधिक थी, 48 दलबदलुओं में से 39 (81 प्रतिशत) फिर से निर्वाचित हुए. लेकिन इसमें अब कमी आती दिख रही है.
4. पंजाब और तमिलनाडु में बीजेपी/एनडीए को बढ़त मिल रही है
बीजेपी उम्मीदवार ने जालंधर पश्चिम सीट पर कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल से आगे रहते हुए दूसरा स्थान हासिल किया. हालांकि जालंधर एक शहरी और हिंदू समुदाय से प्रभावित सीट है और बीजेपी का उम्मीदवार आम आदमी पार्टी का विधायक था, फिर भी यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है.
यहां तक कि 2024 के आम चुनावों में भी, जिसमें वह एक भी सीट नहीं जीत सकी, बीजेपी 117 विधानसभा क्षेत्रों में से 23 में लगभग 19 प्रतिशत वोट शेयर के साथ नौ प्रतिशत अंकों की बढ़त के साथ आगे थी. अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा अकाली दल राज्य में बीजेपी के लिए एक अवसर प्रदान करता है.
तमिलनाडु की विक्रवंडी सीट पर बीजेपी समर्थित पट्टाली मक्कल काची उम्मीदवार आम चुनावों में अपना अच्छा प्रदर्शन जारी रखते हुए उपविजेता बनकर उभरे. एनडीए ने 2024 के चुनावों में सूबे में कोई सीट नहीं जीती, लेकिन उसने 19 प्रतिशत वोट शेयर दर्ज किया. जबकि AIADMK (अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) के लिए यह आंकड़ा 21 प्रतिशत था.
AIADMK का उपचुनावों का बहिष्कार करना एक खराब रणनीति साबित हुई और इससे बीजेपी को मौका मिल गया. 2021 में, DMK ने इस सीट पर 49 प्रतिशत वोट शेयर दर्ज किया, जबकि AIADMK ने 44 प्रतिशत वोट शेयर दर्ज किया. उपचुनाव में DMK को 63 फीसदी और PMK को 29 फीसदी वोट मिले. AIADMK के वोट शेयर में से, लगभग 29 प्रतिशत PMK (⅔) ने हासिल किया, जबकि लगभग 15 प्रतिशत DMK (⅓) ने हासिल किया. इसलिए, AIADMK के कमजोर होने से बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को राज्य में और बढ़त हासिल करने में मदद मिल सकती है.
5. गुजरात के बाद बीजेपी के लिए सबसे मजबूत किला बनता जा रहा एमपी
पिछले साल राज्य चुनावों में देखी गई अपनी मजबूत फॉर्म को जारी रखते हुए, बीजेपी मध्य प्रदेश में उपचुनाव जीतने में कामयाब रही. यहां उसने विधानसभा चुनावों में दो-तिहाई बहुमत और 2024 के आम चुनावों में क्लीन स्वीप हासिल किया है. यह एक ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस पार्टी एकजुट होकर काम नहीं कर पाई है (यहां तक कि वह आम चुनावों में बीजेपी के गढ़ गुजरात में एक सीट जीतने में भी कामयाब रही).
बीजेपी के पास बहुत मजबूत संगठनात्मक उपस्थिति और जमीनी स्तर के नेता हैं, जबकि कांग्रेस कमल नाथ और दिग्विजय सिंह के बाद एक पीढ़ीगत बदलाव से गुजर रही है, और अभी भी ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथियों के पलायन की समस्या से जूझ रही है.
6. RJD को बिहार में अपनी रणनीति में बदलाव की जरूरत है
बिहार की रूपौली विधानसभा सीट पर एक निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की और इसे जनता दल (यूनाइटेड) से छीन लिया. राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी की उम्मीदवार बीमा भारती तीसरे स्थान पर रहीं. वह जेडी (यू) से अलग हो गई थीं और पप्पू यादव से लोकसभा चुनाव हार गईं, लेकिन फिर भी उन्हें टिकट दिया गया, जिससे यह संदेश गया कि पार्टी खराब प्रदर्शन का भी इनाम देती है.
बिहार में आरजेडी के नेतृत्व वाला इंडिया गुट आम चुनावों के दौरान भी एनडीए की सीटों में कोई खास सेंध नहीं लगा सका. पार्टी की अपनी एमवाई (मुस्लिम-यादव) छवि को छोड़ने में असमर्थता और पप्पू यादव के विरोध और खराब टिकट वितरण के कारण आसपास के दो या तीन सीटों का नुकसान हुआ. तेजस्वी को अखिलेश से सीखने की जरूरत है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में नीतीश सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का पूरा फायदा कैसे उठाया जाए.
7. भारतीय राजनीति में बढ़ती द्विध्रुवीयता
उपचुनाव के नतीजे भारतीय राजनीति में बढ़ती द्विध्रुवीयता को भी उजागर करते हैं. इन 13 सीटों में से चार पर बहुजन समाज पार्टी और निर्दलियों का कब्जा था, हिमाचल और उत्तराखंड में वे ये सभी हार गए. उन्हें बिहार में एक सीट हासिल हुई, जिससे तीन सीटों का शुद्ध नुकसान हुआ.
मुकाबला अब तेजी से बीजेपी/एनडीए समर्थक या विरोधी होता जा रहा है. बीजेपी विरोधी मतदाता छोटे दलों/निर्दलीय उम्मीदवारों पर अपना वोट बर्बाद नहीं कर रहे हैं.
यह ट्रेंड आम चुनाव में भी दिखा. 2024 के आम चुनावों में क्षेत्रीय दलों (गैर-कांग्रेस, गैर-बीजेपी) का कुल वोट शेयर भारत के चुनावी इतिहास में अपने सबसे निचले स्तर पर गिर गया. BSP, BJD, YSRCP, SAD, AIADMK आदि जैसे गुटनिरपेक्ष दल, जिन्होंने 2019 में 58 सीटें जीती थीं, 2024 में महज 18 सीटों पर सिमट कर रह गईं.
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