तो क्या बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के उम्मीदवार होंगे? वैसे तो मीडिया से बातचीत में नीतीश ने इस सवाल को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस तरह का कोई विचार उनके मन में नहीं है लेकिन हाल के दो माह में तेजी से घूमता राजनितिक घटनाक्रम इस सवाल को जन्म दे रहा है.
देश के वर्तमान राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के पांच साल का कार्यकाल इसी साल के 25 जुलाई को समाप्त हो रहा है. इसके चलते इस पद के उम्मीदवार को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं.
वैसे तो राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को लेकर देश के कई प्रमुख रजनीतिक हस्तियों जैसे 'मराठा सरदार' शरद पवार और बीएसपी चीफ मायावती का नाम चर्चा के केंद्र में है लेकिन अब इसमें JDU के नेता नीतीश कुमार का भी नाम जुड़ गया है. इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत इस महीने के आरम्भ से शुरू होती है जब हैदराबाद के बंद कमरे में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की मुलाकात प्रमुख चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से होती है. किशोर ने अपनी रणनीतिक कौशल से कई मुख्यमंत्रियों के लिए सत्ता का मार्ग प्रशस्त किया है और यही वजह है कि नेता उनकी बातों को काफी गंभीरता से लेते हैं.
ऐसा माना जा रहा है कि राव-किशोर की मुलाकात के दरम्यान ही नीतीश को राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष का उम्मीदवार बनाने की बात पर चर्चा हुई. क्योंकि इसके बाद ही राव अचानक से देश में बिखरे विपक्ष को एक राजनीतिक प्लेटफार्म पर लाने के लिए निकल पड़े हैं. इस पूरे मिशन में राव का पहला दौरा 19 फरवरी को मुंबई का हुआ जहां उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और एनसीपी के प्रमुख पवार से बात की. राव का नेक्स्ट मिशन पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी अपने 'फ्रंट' में शामिल करना है.
वैसे इसके पहले राव बिहार के प्रमुख विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव से भी मुलाकात कर चुके हैं. तेजस्वी-राव के बीच मुलाकात पिछले महीने (जनवरी) की 11 तारीख को हैदराबाद में हुई. इस मुलाकात के राजनीतिक महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने तेजश्वी से मिलने के लिए पटना में एक चार्टर्ड प्लेन भेजा.
RJD ने प्रत्यक्ष तौर पर नीतीश के राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की चर्चा पर उन्हें कठघरे में खड़ा किया लेकिन जानकर लोगों का कहना है कि नीतीश के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को लेकर RJD का रुख "सकारात्मक" है. इसी रुख को लोग नीतीश के उस बयान से जोड़कर देख रहे हैं जो उन्होंने लालू के चारा घोटाले के पांचवें केस में सजा पर दी. उन्होंने कहा कि मामला उन्होंने नहीं दर्ज करवाया था. नीतीश ने पहले कहा है कि वो लालू को जेल भेजने के जिम्मेदार नहीं हैं.
नीतीश ने मीडिया को बताया है कि जब लालू प्रसाद पर (चारा घोटाले) में केस होने जा रहा था तो कुछ लोग (उनका सिग्नेचर लेने के लिए) उनके पास भी आये थे. नीतीश उस समय समता पार्टी में थे.
उनका कहना था- "हमने कहा कि केस करना है तो आप लोग कीजिये. यह सब मेरा काम नहीं है". नीतीश का यह 'स्पष्टीकरण' 21 फरवरी को आया था. तब रांची में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने RJD प्रमुख लालू प्रसाद को चारा घोटाले के पांचवे मामले में पांच साल की सजा सुनाई और 60 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स नीतीश के इस बयान को RJD की तरफ बढ़ते दोस्ती के हाथ के रूप में देख रहे हैं.
वैसे इस पूरे घटनाक्रम में एक दिलचस्प ट्विस्ट तब आया जब पिछले सप्ताह (18 फरवरी को) दिल्ली में नीतीश की मुलाकात प्रशांत किशोर से हुई. वैसे तो इस मीटिंग को नीतीश ने केवल एक "कर्टसी मीटिंग" बताया लेकिन राजनीतिक जानकर इसे नीतीश के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी से जोड़कर देख रहे हैं. यह वही प्रशांत किशोर हैं जिनको खुद नीतीश ने "पार्टी विरोधी" गतिविधियों में लिप्त रहने के आरोप में दो साल पहले JDU से निष्कासित कर दिया था. प्रशांत उस समय JDU के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे और वे लगातार पार्टी से अलग लाइन लेकर नागरिकता कानून और NRC का विरोध कर रहे थे. ये पूरा बैकग्राउंड इस मीटिंग की अहमियत को खुद बे खुद बयान करता है.
राजनीतिक विश्लेषक सत्यनारायण मदन कहते हैं, "ये कोई कल्पना नहीं बल्कि सच्चाई है कि नीतीश की नजर राष्ट्रपति की कुर्सी पर है. वह जान चुके हैं कि प्रधानमंत्री नहीं बनने वाले हैं क्योंकि विपक्ष की तरफ से भी इसके कई उम्मीदवार हैं. इमेज भी नहीं रहा जो राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने पहले बनाया था." मदन के अनुसार आज नीतीश कुमार की छवि और विश्वसनीयता दोनों पर सवाल हैं और यह सारा कुछ उनके फिर से अपने धुर सियासी दुश्मन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाने के बाद हुआ है.
क्यों राष्ट्रपति चुनाव लड़ना नीतीश के लिए सही कदम हो सकता है?
राजनीतिक जानकर बताते हैं कि नीतीश के राष्ट्रपति चुनाव के बारे में सोचने के प्रमुख तीन कारण हैं-
पहला सबसे महत्वपूर्ण कारण यह माना जा रहा कि उम्र के इस पड़ाव पर वे सक्रिय राजनीति से 'सम्मानजनक' तरीके से सन्यास लेना चाहते हैं. नीतीश पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से केंद्र और राज्य कि राजनीति में सक्रिय हैं और पिछले 17 साल से तो लगातार (बीच में नौ महीना छोड़कर जब उन्होंने जीतन राम मांझी को अपनी गद्दी सौंप दी थी) बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हैं.
दूसरा कारण है बीजेपी और JDU के बीच लगातार बढ़ता विवाद जो अब गंभीर रूप धारण करता जा रहा है. इन दोनों पार्टियों के बीच विवाद कई मुद्दों को लेकर है. जैसे केंद्र सरकार द्वारा मगध के सम्राट अशोक के "चरित्र हनन" करने वाले को पुरस्कृत करना, बिहार को विशेष दर्जा दिए जाने की पुरानी मांग पर विचार नहीं किया जाना, जातिगत जनगणना नहीं करना और बीजेपी द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाए जाने की मांग. खासकर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलना और जातिगत जनगणना नहीं होना JDU के लिए बेहद शर्मिंदगी भरा है क्योंकि राज्य और केंद्र दोनों जगहों पर "डबल इंजन" की ही सरकार है.
तीसरी महत्वपूर्ण वजह यह बताई जा रही कि बीजेपी की नजर अब मुख्य मंत्री की कुर्सी पर आ टिकी है. अभी हाल ही में बीजेपी के एक सांसद छेदी पासवान ने यह मांग की है कि मुख्यमंत्री का आधा कार्यकाल पूरा करने बाद नीतीश कुमार को अपनी कुर्सी बीजेपी को सौंप देनी चाहिए. वैसे तो बीजेपी नेतृत्व ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन नीतीश इसे 'समझदार के लिए इशारा ही काफी' के तौर पर देख कर सतर्क हो जाएं तो कोई ताज्जुब नहीं.
नीतीश राष्ट्रपति चुनाव लड़े तो जीतेंगे?
हमारे देश में राष्ट्रपति का चुनाव एक इलेक्ट्रोल कॉलेज द्वारा अप्रत्यक्ष तरीके से होता है. इस इलेक्ट्रोल कॉलेज में संसद के दोनों सदनों के सदस्य, राज्य की विधानसभाओं के चुने गए सदस्य और केंद्र शासित प्रदेशों के चुने सदस्य होते हैं. वैसे तो पांच राज्यों --उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा-- में चल रहे चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आएंगे लेकिन ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि उत्तर प्रदेश और पंजाब में विपक्ष अच्छा प्रदर्शन करेगा. चुनावी विश्लेषक बता रहे हैं कि यदि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस सत्ता में नहीं भी आती है तो उन्हें अच्छी-खासी सीटें आएगी जो राष्ट्रपति चुनाव को काफी रोचक बना सकता है. इन चुनावों के बाद अगर संयुक्त विपक्ष के पास लगभग 50 प्रतिशत सीटें हो जाएं तो उसके उम्मीदवार के लिए मौका बन सकता है.
वैसे नीतीश के लिए राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी जोखिम से काफी भरा हुआ लगता है, क्योंकि यदि वे इसके लिए हां करते हैं तो पहले तो उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़नी पड़ेगी. फिर बीजेपी से गठबंधन भी तोड़ना पड़ेगा. एनसीपी, RJD और कांग्रेस समेत कई पार्टियां ऐसा मांग करेंगी. फिर यह भी निश्चित नहीं कि वह चुनाव जीत ही जाएंगे. वैसे राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं हैं. खास कर आज की राजनीति में जहां शिवसेना कांग्रेस से हाथ मिला लेती हो और बीजेपी अपने धुर विरोधी पीडीपी से जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के लिए हाथ मिला लेती हो. इसमें एक थ्योरी ये भी है कि अगर नीतीश को RJD को सपोर्ट करता है तो क्या पता बिहार में भी दोस्त-दुश्मन बदल जाएं?
पॉलिटिकल एक्सपर्ट सोरूर अहमद कहते हैं, "नीतीश को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बताकर शायद विपक्ष उन्हें अपनी तरफ खींचना चाहता है. वैसे राजनीति संभावनाओं का खेल है और इसमें कुछ भी संभव है."
(लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे ट्विटर पर @patnastory पर संपर्क किया जा सकता है. इस आर्टिकल में लिखे विचार लेखक के अपने हैं, और क्विंट का इसमें सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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