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बिहार चुनाव 2020: एक तरफ तेजस्वी यादव, दूसरी तरफ पूरी सेना

तेजस्वी यादव की रैलियों में उमड़ती भीड़ ने बीजेपी की नींद हराम कर रखी है

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महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव (Tejashwi yadav) की रैलियों में उमड़ती भीड़ ने बीजेपी की नींद हराम कर रखी है लेकिन बीजेपी की चिंता का असली कारण एक दूसरा भी है. जहां तेजस्वी की रैलियां अटेंड करने के लिए युवाओं के बीच उत्साह दिख रहा है, वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की कई रैलियों में खाली कुर्सियां और एंटी इंकमबेंसी फैक्टर बीजेपी के लिए चिंता का सबब बना हुआ है. कोई ताज्जुब नहीं कि एक तरफ तेजस्वी लगभग अकेले मोर्चा संभाले हुए हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी ने अपनी पूरी सेना ही उतार दी है.

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एक के मुकाबले तीस

बीजेपी ने तीस लोगों कि भारी-भरकम सेना उतार दी है. इन तीस लोगों में 10 केंद्रीय मंत्री, यूपी के सीएम योगी, अध्यक्ष जेपी नड्डा, बिहार सरकार में मंत्री और बीजेपी के कई प्रवक्ता हैं. इसके अलावा बीजेपी ने पार्टी के यूथ विंग के अध्यक्ष और कर्नाटक से सांसद तेजस्वी सूर्या को भी बिहार में लगाया है और वो लगातार तेजस्वी के खिलाफ आग उगल रहे हैं. राहुल गांधी की रैलियां जरूर हैं लेकिन 2020 के मैच में तेजस्वी कुल मिलाकर अकेले ही बैटिंग कर रहे हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी मैदान में हैं. अक्टूबर 28 तक वो बिहार में छह रैलियां कर चुके हैं जबकि छह और करने वाले हैं.

मैच में 'नेगेटिव बॉलिंग' कौन करता है?

अपनी रैलियों में बीजेपी राजद के 15 साल के "जंगल राज" पर जोरदार तरीके से लगातार चोट कर रही है. राजनितिक विश्लेषक सत्यनारायण मदन कहते हैं-

"एक नींबू को बार-बार कितना निचोड़ेंगे? आखिर आप 15 साल से लगातार निचोड़ ही तो रहे हैं. बार-बार निचोड़ने से अब नींबू तीखा हो चुका है जो इस बार के चुनाव में दिख भी रहा है. यह एक इशारा है जिसे बीजेपी और नीतीश कुमार नहीं समझ पा रहे हैं."
सत्यनारायण मदन, राजनितिक विश्लेषक

वो फिर कहते हैं, "आज की तारीख में तेजस्वी का जनता के साथ एक संवाद स्थापित हो चुका है. संयोग ऐसा है कि अभी बीजेपी के पास प्रधानमंत्री मोदी को छोड़कर कोई दूसरा ऐसा नेता नहीं, जिसका जनता के साथ डायरेक्ट कनेक्शन है. पहले नीतीश कुमार भी करते थे, लेकिन आज नहीं. जब आपके के पास कोई मुद्दा नहीं हो, भाषण में ताजगी नहीं हो तो फिर जनता आपको नकार ही देगी न!"


एक दूसरे राजनितिक विश्लेषक प्रोफेसर डीएम दिवाकर कहते हैं-

"आज बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है. लॉकडाउन ने लाखों परिवारों को तबाह कर दिया है. लोग आज नौकरी की बात छोड़कर कुछ और नहीं सुनना चाहते जबकि बीजेपी उनको धारा 370, राम मंदिर और नागरिकता कानून परोसे जा रही है जिसमे लोगो का इंटरेस्ट नहीं है."
डीएम दिवाकर, राजनितिक विश्लेषक

वो कहते हैं, "नीतीश अपने भाषणों में लगातार लालू परिवार पर हमला कर रहे हैं लेकिन लोग अब इसे सुनने को तैयार नहीं दिख रहे. आखिर नीतीश जी को भी सत्ता में बने हुए 15 साल हो गए? उनकी विकास की बातें खोखली साबित हो चुकी हैं.''

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नीतीश तो ऐसा न थे!

नीतीश के भाषणों का लगातार गिरता स्तर भी लोगों को उनसे दूर ले जा रहा है. नीतीश कुमार अपनी भाषा पर नियंत्रण के लिए जाने जाते रहे हैं लेकिन इस चुनाव में उनकी भाषा अलग है. जरा बानगी देखिए-

  • "कुछ लोग 10 लाख नौकरी देने का दावा कर रहे हैं लेकिन यह नहीं बता रहे हैं कि इसके लिए आखिर पैसा कहां से आएगा—जिसके लिए जेल गए उसी पैसे को निकालकर नौकरी देंगे क्या या नकली नोट बाटेंगे? ''

  • ''अगर पढ़ना चाहते हो तो अपने बाप से पूछो, अपनी माता से पूछो कि कहीं कोई स्कूल था, कहीं कोई स्कूल बन रहा था, कहीं कोई कॉलेज बन रहा था? जरा पूछ लो…राज करने का मौका मिला तो ग्रहण करते रहे और जब अंदर चले गए, तो पत्नी को बैठा दिया गद्दी पर.''

  • ''किसी को चिंता है? 8-8—9-9 बच्चा-बच्ची पैदा कर रहा है. बेटी पर भरोसा ही नहीं. कई बेटियां हो गयीं तब बेटा हुआ. कैसा बिहार बनाना चाहते हैं? अगर यही लोगों का आदर्श है तो बिहार का क्या हाल होगा? सब का सब बर्बाद हो जाएगा.''

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तेजस्वी की पिच पर उतरी बीजेपी

तेजस्वी की एक बड़ी कामयाबी ये है कि उन्होंने जिसे सबसे बड़ा मुद्दा बनाया उसी पर फिर बीजेपी को भी आना पड़ा. बीजेपी ने भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में 19 लाख नौकरियां देने करने की बात कही है.

शुरू-शुरू में नीतीश के साथ-साथ बीजेपी ने भी तेजस्वी की 10 लाख नौकरियां देने की घोषणा का मजाक उड़ाया था. पूछा था कि अभी कर्मचारियों के सैलरी भुगतान पर 52,000 करोड़ खर्च हो रहे हैं और 10 लाख और लोगों को नौकरी देने के बाद कुल खर्च 1.11 लाख करोड़ हो जाएगा तो ये पैसे कहां से आएंगे. लेकिन खुद बीजेपी ने ही अब 19 लाख नौकरियों देने का वादा किया है लेकिन आश्चर्य की नीतीश ने इसपर चुपी लगा रखी है.

नीतीश से किनारा?

और तो और, बीजेपी अब नीतीश को किनारे करके जनता से वोट मांग रही है. अखबारों में छपे बीजेपी के कई हालिया विज्ञापनों से नीतीश पूरी तरह से गायब थे. पूरे विज्ञापन में केवल प्रधानमंत्री की तस्वीर के साथ एक टैग लाइन था, "भाजपा है तो भरोसा है, एनडीए को जिताएं."

तो क्या बीजेपी को अब नीतीश पर भरोसा नहीं रहा या नीतीश के साथ दिखने से उसे भी भारी नुकसान उठाने का डर सताने लगा है?

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