सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) के पेपर कई बार लीक हो चुके हैं, जिसकी हालिया कड़ी क्लास 10 के मैथ्स और क्लास 12 के इकनॉमिक्स के पेपर का लीक होना है. इस मसले को प्रशासनिक, सामाजिक, अपराध और राजनीतिक नजरिये से देखने की जरूरत है.
सीबीएसई, दिल्ली यूनिवर्सिटी की तरह पेपर तैयार करता है. इसे फूलप्रूफ होना चाहिए, जैसा कि डीयू में होता है. हालांकि पेपर तैयार करने से लेकर उसे एग्जाम हॉल तक पहुंचाने की जो मजबूत प्रक्रिया डीयू में है, वैसी सीबीएसई में नहीं है.
डीयू के पेपर लीक नहीं होते
डीयू के प्रश्न पत्र विरले ही लीक होते हैं. वहां कई लोग पेपर सेट करते हैं. उन्हें एग्जाम से 6-8 हफ्ते पहले यह काम सौंपा जाता है. उसके बाद तैयार पेपर को एक सीडी के जरिये संबंधित डिपार्टमेंट हेड के पास भेजा जाता है, जो अज्ञात जगह से उसका प्रिंटआउट लेते हैं. इस प्रिंटेड पेपर को बंद लिफाफे में डालकर घंटों पहले एग्जाम सेंटर्स पर भेजा जाता है.
इस सिस्टम में खुद पेपर सेट करने वालों को ही नहीं पता होता कि एग्जाम में उनके सवाल लिए जाएंगे या नहीं. यहां अथॉरिटीज एग्जाम से थोड़ा पहले यह तय करते हैं कि किस पेपर का इस्तेमाल करना है. परीक्षा से आधा घंटे पहले इसे सेंटर्स पर भेजा जाता है. पेपर लीक होने से बचाने के लिए इससे बेहतर तरीका भला और क्या होगा?
CBSE में कई हाथों से गुजरते हैं पेपर
सीबीएसई भी इनमें से ज्यादातर प्रक्रियाओं का पालन करता है, बल्कि वह सीलबंद पेपर को बैंक लॉकर में भी रखता है, जिसका एक्सेस बहुत कम लोगों के पास होता है. इसके बावजूद उसके पेपर लीक होते रहते हैं. इसकी वजह बड़ी आसान है.
हर साल करोड़ों छात्र सीबीएसई की परीक्षा में बैठते हैं. डीयू में छात्रों की संख्या कुछ हजार तक सीमित रहती है. डीयू में परीक्षा बड़े स्तर पर नहीं होती, इसलिए क्वेश्चन पेपर तैयार करने की प्रक्रिया में बहुत कम लोगों को शामिल किया जाता है. सीबीएसई के पास यह लग्जरी नहीं है.
सीबीएसई में एक क्वेश्चन पेपर कई हाथों से होकर गुजरता है और यही समस्या की असल जड़ है. अब वह इलेक्ट्रॉनिक कोड वाले पेपर तैयार करने पर विचार कर रहा है, जिन्हें बैंक लॉकर्स में रखा जाएगा.
इस सिस्टम में लॉकर की चाबी सेंटर्स को एक घंटा पहले दी जाएगी और वे पर्यवक्षेकों की मौजूदगी में क्वेश्चन पेपर को प्रिंट कर पाएंगे. लेकिन इससे भी पेपर लीक को रोकने में बहुत मदद नहीं मिलेगी. सीबीएसई को ऐसा सिस्टम अपनाना चाहिए, जिससे क्वेश्चन पेपर कम हाथों से गुजरे.
बढ़ रहा है छात्रों का गुस्सा
सीबीएसई ऐसी राष्ट्रीय संस्था है, जिसे शिक्षा के एक महत्वपूर्ण पहलू परीक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है. इसलिए साल में कई बार पेपर लीक को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. सीबीएसई के साथ दशकों से यह समस्या बनी हुई है.
पेपर लीक से छात्रों पर बुरा असर पड़ता है. वे एग्जाम के लिए रात-रात भर जाकर तैयारी करते हैं. पेपर लीक होने पर उन्हें दोबारा इम्तहान के लिए उतनी ही कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, इसलिए उनका गुस्सा बढ़ रहा है, जो इस हफ्ते देश में कई जगहों पर सड़कों पर उनके विरोध के तौर पर सामने आया था.
इस बीच, कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन पेपर लीक की समस्या खत्म नहीं हुई. यह बड़े ही शर्म की बात है कि जो देश एक साथ 100 सैटेलाइट छोड़ सकता है, वह पेपर लीक को रोकने के लिए जरूरी तकनीक का इस्तेमाल क्यों नहीं कर पा रहा. सिर्फ क्लास 10 के मैथ्स और क्लास 12 के इकनॉमिक्स की परीक्षा दोबारा लेने से 20 लाख से अधिक छात्र प्रभावित होंगे.
पेपर लीक पर पॉलिटिक्स
आखिर में मैं पेपर लीक पर चल रही राजनीति की बात करूंगा. भारत में हर चीज का राजनीतिकरण करने की परंपरा रही है. पेपर लीक मामले में कांग्रेस पार्टी का रिएक्शन देखिए. कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन ने ट्वीट किया कि उनके बेटे ने एग्जाम के लिए कड़ी मेहनत की थी और पेपर कैंसल होने से वह बहुत निराश है. यह अभिभावक का सामान्य रिएक्शन है.
लेकिन एक और कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने सारी सीमाएं लांघते हुए ट्वीट किया, ''मोदी सरकार का नाम पेपर लीक सरकार कर देना चाहिए. एसएससी एग्जाम से 2 करोड़ युवाओं का भविष्य खतरे में पड़ गया है. सीबीएसई के क्लास 10 और क्लास 12 के पेपरलीक मामले से कड़ी मेहनत करने वाले लाखों छात्र प्रभावित हुए हैं. मोदीजी आपकी सरकार हमारे एग्जाम वॉरियर्स के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है.''
एक और कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने ट्वीट किया, ''सीबीएसई लीक शर्मनाक घटना है और इसमें जवाबदेही तय की जानी चाहिए. इसके लिए दोषी अधिकारी हैं, लेकिन सजा छात्रों को मिलेगी.''
किसी भी सरकार के खिलाफ विपक्ष ऐसे मौकों का फायदा उठाने की कोशिश करता है. इसलिए सरकार को ऐसी नौबत नहीं आने देनी चाहिए.
यह भी सही है कि एग्जाम कराने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं होती. एग्जाम में किसी गड़बड़ी के लिए सीबीएसई जिम्मेदार है. लेकिन सच यह भी है कि इस तरह के मामलों में सरकार की भी आलोचना होती है और चुनाव राजनीतिक दलों को लड़ना होता है सीबीएसई को नहीं.
(राजीव शर्मा स्वतंत्र पत्रकार हैं और रणनीतिक मामलों के विश्लेषक हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @Kishkindha. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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