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वैक्सीन पॉलिसी पर सरकार का U-टर्न, PM से पूछे जाने चाहिए ये 9 सवाल

केंद्र ने अब कोरोना महामारी से जुड़ी दवाओं और कोरोना के वैक्सीन खरीदने का काम राज्यों से वापस ले लिया है.

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देश की वैक्सीनेशन पॉलिसी ने अपना एक ‘चक्कर’ पूरा कर लिया है. मतलब ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 जून को 5 बजे देश को संबोधित करते हुए वैक्सीनेशन फेज-3 की रणनीति को वापस ले लिया है, ये रणनीति अभी करीब एक महीने पहले ही लागू हुई थी. केंद्र ने अब कोरोना महामारी से जुड़ी जीवन रक्षक दवाओं और कोरोना के वैक्सीन खरीदने का काम राज्यों से वापस ले लिया है. प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन में इस फैसले को राज्यों की असमर्थता की वजह से लिया गया फैसला जैसा बताया गया. ऐसा जाहिर किया गया है राज्य सरकारें खुद से वैक्सीन की खुराक खरीदने में असमर्थ हैं तो अब केंद्र सरकार उनकी मदद की पहल कर रही है.

ऐसे में जब केंद्र सरकार ने यू-टर्न लिया है तो ये कुछ सवाल हैं जो पीएम मोदी से पूछे जाने चाहिए-

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  1. जब वैक्सीन हैं ही नहीं तो केंद्र ने ये कैसे अपेक्षा की कि राज्य खुद ही वैक्सीन डोज खरीद लेंगे?
  2. क्या इस पॉलिसी को अपनाने से पहले किसी पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट से से सलाह ली गई थी? अगर ऐसा हुआ होगा तो वो बता चुके होंगे कि इस पॉलिसी में असमानता थी.
  3. एक्सपर्ट वन नेशन-वन प्राइस-वन बायर पॉलिसी की मांग करते रहे हैं. दोहरी कीमत तय करने पीछे क्या पॉलिसी थी और निजी अस्पतालों के लगातार संरक्षण के पीछे क्या सोच थी?
  4. ऐसे में जब सबसे ज्यादा खतरे वाले लोग बचे ही थे तो सबके लिए वैक्सीनेशन ड्राइव चलाने की क्या जरूरत थी? बीमार रहने वाले, मेंटल हेल्थ की दिक्कतों से जूझने वाले, युवा जो डायबिटीज से पीड़ित हैं, बेघर लोग, कैदी इन लोगों का पूरी तरह वैक्सीनेशन नहीं हुआ लेकिन देश में वैक्सीनेशन ड्राइव सबके लिए चलाया जाने लगा. UK का उदाहरण देखें तो यहां वैक्सीनेशन ड्राइव शुरू होने के 6 हफ्ते बाद 30 साल से अधिक उम्र वालों के लिए वैक्सीनेशन शुरू की गई है.
  5. वैक्सीन मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए क्या किया गया? वैक्सीन के ऑर्डर इतनी धीमी गति से क्यों दिए गए?
  6. सरकार को ये अहसास करने में एक साल से अधिक का समय क्यों लगा कि वो सप्लिमेंट वैक्सीने के लिए फार्मा PSUs का इस्तेमाल कर सकते हैं?
  7. क्या हेल्थ अब 'राज्य का विषय' नहीं रह गया है? जिसे केंद्रीय मंत्रियों ने खुद सरकार की रणनीति के बचाव के लिए इस्तेमाल किया है?
  8. कंट्रोल वापस लेना तो ठीक है, लेकिन केंद्र उन राज्यों के लिए वैक्सीन को मुहैया कराने की कैसे सोच रहा है जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है?
  9. हो सकता है कि दुनिया COWIN चाहती हो लेकिन ज्यादातर भारतीयों तक इसकी पहुंच नहीं है. क्या आपको वैक्सीनेशन से तकनीकी बाधाओं को दूर नहीं करना चाहिए?
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मास्टरस्ट्रोक से वापसी तक: हम यहां तक कैसे पहुंचे?

अप्रैल में जब कोरोना की दूसरी लहर चरम पर थी, एक आम भारतीय सांस लेने के लिए गिड़गिड़ा रहा था और सोशल मीडिया पर कभी मिन्नतें कर रहा था. कभी निराशा तो कभी गुस्सा जाहिर कर रहा था उस वक्त केंद्र सरकार ने वैक्सीनेशन का 'मास्टर स्ट्रोक' लॉन्च करने का फैसला किया. 1 मई से केंद्र सरकार ने कोविड-19 वैक्सीनेशन का तीसरा फेज शुरू किया.

इस फेज की खास बातें थीं:

  • 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोग कोविड-19 वैक्सीन लगवा सकेंगे.
  • वैक्सीन निर्माताओं को अपनी सप्लाई का 50% तक राज्य सरकारों को और ओपन मार्केट में पहले से तय कीमत पर देने की छूट दी गई.
  • राज्यों को ये अधिकार दिया गया कि सीधा वैक्सीन मैन्युफेक्चरर से वैक्सीन खरीद सकते हैं. साथ ही 18 साल से अधिक उम्र के लोगों में किसी भी कैटेगरी में वैक्सीनेशन ड्राइव राज्य चला सकते हैं.
  • भारत सरकार का वैक्सीनेशन ड्राइव पहले की तरह चलता रहेगा, फ्री वैक्सीनेशन और प्राथमिकता पहले के आधार पर ही 45 साल से अधिक उम्र के लोगों को दिए जाने की बात थी.
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इस बदलाव के समय, देश में टीकाकरण के प्रयास पहले से ही लड़खड़ा रहे थे. अप्रैल की शुरुआत में 44 लाख खुराक के बाद, रोजाना वैक्सीनेशन में गिरावट आ रही थी.

राज्यों में भी नाराजगी पैदा हो रही थी, जो चाहते थे कि आने वाले टीकों का एक बड़ा हिस्सा उनके पास हो.

और वैक्सीन की सप्लाई एकदम कम हो चुकी थी.

ऐसे में, केंद्र के पास ये कहने का मास्टरस्ट्रोक था, “आपने ऐसा करने को कहा, तो लीजिए.”

प्रधानमंत्री ने 7 जून को अपने संबोधन में कहा कि दबाव बनाया जा रहा था, सवाल खड़े हो रहे थे और केंद्र से मांगें की जा रही थीं, तो सरकार ने इन्हें सुना और वैक्सीन लेने का जिम्मा राज्यों को दे दिया.

इस स्ट्रैटेजी के साथ बस एक समस्या थी:

कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई की अगुवाई कर रही सरकार के लिए ये जिम्मेदारी से भागना दिखा.

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