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कश्मीर: जब कयामत के डर से लॉकडाउन तोड़ आधी रात दरगाह पर जुटी भीड़

अंधविश्वास, अफवाह के चलते कई कश्मीरी कोविद -19 से बचने के रात 12 बजे जमा हुए

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बुधवार 25 मार्च के दिन कश्मीर को जब रात ने अपनी आगोश में लेना शुरू किया, रहस्यमय और बाद में षडयंत्रपूर्ण तरीके से गले लगाया, तो यह केवल दस्तक थी. मेरी बहन (डर से) पीली पड़ गयी, परेशान, हकलाती हुई, कुछ अशुभ का संकेत देती हुई दरवाजे पर दिखी. उसने बताया, वे लोग श्राइन पर इकट्ठा हो रहे हैं.

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मैं मध्य कश्मीर के शेख नूरुद्दीन नूरानी शहर के टीले पर रहता हूं, जो समान रूप से मुसलमानों और पंडितों के लिए मशहूर है. दुनिया भर में इतिहासकारों के बीच, जिन्होंने सूफीवाद और मध्य एशिया का अध्ययन किया है, यह समान रूप से आलमदर-ए-कश्मीर के तौर पर जाना जाता है. हिमालय क्षेत्र में इस्लाम का यह अग्रदूत है.

मैं बेहद खुशकिस्मत हूं कि ऐसी पहाड़ी पर मेरा घर है, जिसके सामने भव्य श्राइन है, अपने इतिहास में यह दो बार खाक में मिल चुका है, लेकिन हर सदमे के बाद और मजबूत होकर उभरा है.

बहन ने तब अपनी बात पूरी नहीं की थी, जब दूर से आती आवाज सामूहिक गर्जना में बदलने लगी. यह आवाज श्राइन के पास मुख्य बाजार से आ रही थी और जिसके चारों ओर लगभग आधे दर्जन मस्जिद हैं.

आखिरकार अब यह कोई षडयंत्र नहीं था. बातचीत जल्द ही कुरान की आयतों के पाठ के रूप में गर्जना में बदल गयी. और मानो तांता लग गया. एक के बाद एक मस्जिदों के मुअज्जिन अजान का आह्वान करने लगे. (आधी रात को? सचमुच?)

“लेकिन लॉकडाउन के बारे में क्या?”

क्यों सभी लोग सरकारी आदेशों की अवहेलना करेंगे और रात के अंधेरे में श्राइन के बाहर इकट्ठा होंगे? खासकर जब कोरोनावायरस का खतरा हमारे सिर पर तलवार की तरह मंडरा रहा हो? सामूहिक आत्महत्या के लिए इस आग्रह के पीछे कौन सी बात थी?

हर सही कश्मीरी की तरह मैं भी सोशल मीडिया की ओर मुखातिब हुआ. इसी प्रकार मध्यरात्रि अजानों और इकट्ठा होने की बेचैन करने वाली खबरें घाटी के अलग-अलग हिस्सों से आने लगीं.

सब वापस आने लगे.

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“कयामत की अफवाह”

कई दिनों तक विभिन्न धार्मिक आकार की अफवाहें थीं, जिनमें व्यक्तित्व भी थे और स्थान भी. यह इस बात पर निर्भर कर रहा था कि आप किस विचार से जुड़े हैं. खुले आकाश ही इसके गवाह थे. कई ‘खबरें’ बता रही थीं कि तेजी से एक उल्कापिंड धरती की ओर आ रहा था और अब कयामत आने जा रहा था. कुछ ने कहा कि वास्तव में चार उल्कापिंड थे. इसने डर को कई गुणा बढ़ाने का काम किया.

WhatsApp यूनिवर्सिटी भी मंथन के बाद कचरे निकाल रही थी. दज्जल (कयामत का ट्रंप बजाने वाला) इमाम मेहदी जो ईसाई विरोधी हैं, उनको चाहे जो कह लें, आखिरकार श्रीनगर में पकड़ लिए गये. एक उल्कापिंड ने बडगाम में ‘मस्जिद पर हमला’ कर दिया है और इसका अंत होने वाला था. धरती पर कहीं छाते में लोगों की एक समूह ‘बेला सियाओ’ गा रहा था. वे बातें कर रहे थे कि इटली का नेतृत्व जो कोविड-19 के कारण पराजित और निराश है, वे ईश्वर से मदद मांगें.

पाकिस्तान के एक मौलवी ने दुनिया भर के मुसलमानों के लिए फरमान जारी किया कि वे अपने-अपने मस्जिदों में बुधवार की रात 10.30 बजे कोरोनावायरस से लड़ाई के लिए नमाज अदा करें. उन्होंने यह नहीं बताया कि यह अपील पाकिस्तान स्टैंडर्ड टाइम या इंटरनेशनल स्टैंडर्ड टाइम या स्थानीय समय किस हिसाब से थी. कुछ दिनों से घाटी में तापमान बढ़ता जा रहा था. अब यह समय ज्वालामुखी के फटने का था.

जल्द ही सैकड़ों लोग जिनमें महिलाएं भी थीं, गले फाड़-फाड़ कर चीख रहे थे, रो रहे थे और श्राइन के बाहर सृष्टि के रचयिता के सामने दया की भीख मांग रहे थे.

पेशेवर स्वास्थ्यकर्मी हमें बताते हैं कि कोरोनावायरस से सुरक्षित रहने का सबसे अच्छा तरीका है घरों में रहें और लक्षण पाए जाने पर रिपोर्ट करें.

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“अल्लाह पर भरोसा करें मगर ऊंट बांध लें”

हमारे पैगम्बर मोहम्मद से जुड़ी मशहूर कहानी है जो बताती है कि एक खानाबदोश ने एक बार एक ऊंट को रेगिस्तान में आजाद छोड़ दिया था और जब उससे सवाल किया गया, तो उसका जवाब था कि उसे अल्लाह पर पूरा भरोसा है.

तब पैगम्बर ने जवाब दिया, “पहले ऊंट को बांध लें, तब अल्लाह पर भरोसा करें”

तब क्यों हम अपने ऊंटों को ढीला कर रहे थे? हमारी अपनी सुरक्षा के लिए हमारे शहर में इस सामूहिक अवहेलना का क्या मतलब है? क्या इसके लिए कोई धार्मिक स्वीकृति थी और अल्लाह के लिए, आधी रात ही क्यों?

चार में से एक कश्मीरी तनाव संबंधी विकारों से पीड़ित हैं। उनमें से ढाई मेरे घर पर हैं, आधी रात के इस पालगलपन का उन पर क्या असर होने जा रहा है?

जैसा कि मैंने अपने दहशतजदा परिवार को (मेरी चाची करीब-करीब बेहोश हो गयी थी) आश्वस्त कर रहा था कि कुछ भी नहीं है, बस सामूहिक रूप से लोग दुख प्रकट कर रहे थे जो बाद में खामोशी में बदल गयी. पहाड़ी पर श्राइन के चारों ओर पुलिस की कारें चक्कर लगा रही थीं और सायरनें बजा रही थीं.

एक वीडियो में दिखाया गया है कि पुलिसकर्मियों का एक समूह सैकड़ों लोगों की भीड़ की ओर बढ़ रहा है. उस भीड़ में महिलाएं और पुरुष, युवा और बुजुर्ग हैं, जो श्राइन के चारों ओर इकट्ठा हैं. तभी भीड़ उनकी ओर कांगड़ी उड़ेल देती है. यह चारकोल की आग वाला बर्तन होता है, जिसका इस्तेमाल कश्मीरी सर्दियों में करते हैं.

अगले कुछ मिनटों तक मैंने अपने परिवार को सांत्वना देने की कोशिशें कीं क्योंकि फिर कानों को बहरा कर देने वाली आंसू गैस की आवाजें और एके-47 के गोले ठंडी हवा को चीर रहे थे.
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जल्द ही भयानक शांति शहर में लौट आयी. आखिरकार सबकुछ खत्म हो गया.

सुबह कश्मीर में इस खबर के साथ जागा कि कोविड-19 से पहली मौत हुई है, जो श्रीनगर का रहने वाला है.

हमारे पड़ोसी को इस संदेह के कारण ले जाया गया है कि मृतक के संपर्क में आने के कारण उनमें भी वायरस का संक्रमण हुआ है. ये लोगों के उसी चेन का हिस्सा हैं जो कथित तौर पर राष्ट्रीय राजधानी में एक धार्मिक स्थान पर इकट्ठी भीड़ में संक्रमित हुए या फिर शायद कहीं और श्रीनगर में मृतक का इलाज करने वाले कथित डॉक्टर का बगैर तारीख वाला और अपुष्ट ऑडियो कश्मीर में संदिग्ध संक्रमितों की तादाद को लेकर भयावह तस्वीर सामने रखता है.

डॉक्टर को यह दावा करते सुना जा सकता है कि हाल में मरा व्यक्ति एक भीड़ के सामने डींग मार रहा था कि उसका समुदाय वायरस से इम्यून है यानी प्रतिरक्षित है.

अब जम्मू कश्मीर सरकार ने चूक स्वीकार कर ली है. एक आधिकारिक संवाद से पता चलता है कि कोविड-19 के लक्षण वाले उस मरीज को डॉक्टरों ने उसकी बीमारी और उसका यात्रा इतिहास जान लेने के बावजूद उसके घर जाने दिया.

मुझे नहीं पता किस पर विश्वास करें, किस पर नहीं.

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‘मूर्खता का इलाज नहीं’

बीती रात का प्रकरण प्रदर्शित करता है कि कोरोनावायरस का जल्द इलाज हो भी सकता है, लेकिन मूर्खता का कोई इलाज नहीं है. माना जाता है कि शिक्षा से प्रकाश फैलता है लेकिन हममें से कई लोग अंधविश्वास, अर्धसत्य और व्हाट्स एप को आगे बढ़ाने में विश्वास करते हैं.

हमारे शहर के पवित्र संत निश्चित रूप से शर्मिंदा होंगे कि धर्म के नाम पर हमने किस तरह उनके नाम को मैला कर दिया.

मैं केवल यही आशा कर सकता हूं कि हमारे पड़ोसी का टेस्ट निगेटिव हो, मैं आशा करता हूं कि उन्होंने दूसरे शहरवासियों में इसे नहीं फैलाया होगा. मैं यह भी उम्मीद करता हूं कि संक्रमित लोगों की दूसरी पांत ने इसे किसी और को संक्रमित नहीं किया हो.

क्या मैं बहुत ज्यादा उम्मीद कर रहा हूं? आशा है कि ऐसा नहीं है.

यह भी पढ़ें: कोरोना लॉकडाउन: 1.70 लाख Cr. का राहत पैकेज, बड़ी बीमारी-अधूरा इलाज

(जहांगीर अली श्रीनगर में पत्रकार हैं. उनका ट्वीट है @gaamuk. यह उनका व्यक्तिगत ब्लॉग है. इसमें व्यक्त विचार निजी हैं. क्विंट का इससे कोई सरोकार नहीं है.)

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